वाराणसी : काशी में आज रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ माता गौरा के साथ होली खेलेंगे. बाबा भोलेनाथ आज के दिन अपनी अर्धांगिनी माता गौरी को लेकर कैलाश पर्वत के लिए रवाना होते हैं. महाशिवरात्रि पर विवाह के बाद अपनी पत्नी का गौना यानी विदाई करवरकर जब भोलेनाथ भक्तों के कंधे पर रजत पालकी में निकलते हैं तो भक्त अपने आराध्य पर पहले गुलाल चढ़कर अपनी होली की शुरुआत करते हैं और काशी में आज यह त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. सड़के पूरी तरह से गुलाल में रंगीन नज़र आएंगी और भक्त भी होली के रंगों में शराबोर दिखेंगे. वहीं बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में हरिश्चंद्र यानी महाश्मशान पर भी दोपहर 1:00 बजे से चिता भस्म यानी मसान की होली खेली जाएगी. बाबा कीनाराम आश्रम से निकलने वाली शोभायात्रा हरिश्चंद्र घाट पर पहुंचेगी और 2 किलोमीटर लंबी इट्स शोभायात्रा के बाद अद्भुत होली का प्रदर्शन गंगा घाट के किनारे श्मशान पर देखने को मिलेगा.
संजीव रतन मिश्रा का कहना है कि यह प्रतिमा सिर्फ महाशिवरात्रि और रंगभरी पर ही भक्तों के दर्शन के लिए खोली जाती है. पंच बदन रजत प्रतिमा अपने आप में अद्भुत है आज के दिन बाबा का सिंहासन सजाया जाता है. यह रजत सिंहासन भी लगभग 450 वर्ष पुराना है और इसे आज तक सुरक्षित रखा गया है. इस रजत सिंहासन पर भोलेनाथ अपनी अर्धांगिनी माता गौरी और माता गौरी के गोद में गणेश के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं. भक्त कबीर गुलाल चढ़कर भोलेनाथ से अपने होली के साथ आने वाले नए साल के शुभ होने की कामना करते हैं और बाबा भोलेनाथ महंत आवास से निकलकर बाबा विश्वनाथ के मंदिर तक भक्तों के कंधे पर सवार होकर जाते हैं.
वहीं, कल यानी मंगलवार को महंत आवास (गौरा सदनिका) पहुंचने पर बाबा की बारात का अनूठा स्वागत बारातियों को रंगभरी ठंडई पिला कर किया गया. दूल्हा बने बाबा विश्वनाथ पर ठंडई और गुलाबजल की फुहार उड़ाई गई. इसके बाद फल, मेवा और बाबा के लिए खासतौर पर तैयार की गई ‘रंगभरी ठंडई’ से पारंपरिक स्वागत किया गया.
बारात के साथ ही अयोध्या के पारंपरिक रामायणी परिवार के प्रतिनिधि पं. अनिल तिवारी ने रंगभरी एकादशी की तिथि पर शिव और गौर की पालकी पर उड़ने के लिए अबीर भेंट की. साथी मथुरा के जेल में कैदियों द्वारा तैयार की गई खास हर्बल अबीर भी काशी पहुंची. गौरा का गौना कराने बाबा विश्वनाथ के आगमन पर अनुष्ठान का विधान पं.सुनील त्रिपाठी के अचार्यत्व में हुआ. बाबा का ससुराल (गौरा सदनिका) में स्वागत संकठा मंदिर के मंहत पं.अतुल शर्मा व रजनी शर्मा ने किया. वैदिक बटुकों ने मंत्रोचार के साथ बाबा का अभिषेक करने के बाद वैदिक सूक्तों का घनपाठ किया गया. काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ कुलपति तिवारी के सानिध्य में संजीवरत्न मिश्र ने अनुष्ठान किया.
शिव और गौरा बंगीय देवकिरीट धारण करेंगे
बता दें कि इस वर्ष शिव और गौरा अपने शीर्ष पर बंगीय देवकिरीट धारण कर भक्तों को दर्शन देंगे. गौरा के गौना के मौके पर निकाली जाने वाली पालकी यात्रा के दौरान बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती देवी पार्वती के सिर पर बंगीय शैली का देवकिरीट सुशोभित होगा. यह देवकिरीट अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकरपुरी महाराज ने खासतौर पर बंगाल से बनवा कर मंगाया है. पूर्व महंत डाॅ. कुलपति तिवारी के पुत्र पं. वाचस्पति तिवारी ने बताया कि बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के गौना के समय पहली बार बंगाल के कारीगरों द्वारा बनाया गया ‘देवकिरीट’ शिव-पार्वती धारण करेंगे. काशीपुरी पीठाधीश्वरी मां अन्नपूर्णा मंदिर के मंहत गोस्वामी शंकरपुरी महाराज ने शिव-पार्वती के लिए विशेष रूप से बनवाया गया. देवकिरीट शिवांजलि के संयोजक संजीव रत्न मिश्र को शुक्रवार को सौंपा.
पं. वाचस्पति ने बताया कि इस देवकिरीट की बनारसी जरी व सुनहरे लहरों से सज्जा नारियल बाजार के व्यापारी नंदलाल अरोड़ा करेंगे. नंदलाल अरोड़ा का परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से बाबा के मुकुट की साज-सज्जा करता आ रहा है. उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष भगवान शिव और माता पार्वती को अलग-अलग प्रकार के मुकुट धारण कराए जाते हैं. विगत वर्षों में बाबा को विविध प्रकार के राजसी मुकुट धराण कराए जाते रहे हैं. बाबा के सिर पर सुशोभित होने वाले ये मुकुट अथवा पगड़ी प्राचीन भारत के अलग-अलग कालखण्ड में सनातनी शासकों द्वारा धारण किए जाने वाले मुकुट का प्रतिनिधित्व करते हैं.
बाबा की पालकी यात्रा के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष शिवांजलि का सांगीतिक आयोजन किया जाता है. कार्यक्रम संयोजक संजीव रत्न मिश्र ने बताया कि इस वर्ष पूर्व महंत डाॅ. कुलपति तिवारी के गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के कारण सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बदलाव किया गया है. इस वर्ष केवल शहनाई की मंगल ध्वनि के साथ संक्षिप्त सांस्कृतिक कार्यक्रमों की परंपरा का निर्वाह किया जाएगा. गायन और नृत्य के विविध आयोजन इस वर्ष संक्षिप्त रखे जाएंगे.