जयपुरः राजस्थान हाईकोर्ट ने विधि विज्ञान प्रयोगशाला में बढ़ते लंबित मुकदमों के मामले में कहा है कि राज्य सरकार की ओर से अपनी रिपोर्ट में दूसरे राज्यों का हवाला देते हुए यह बताने का प्रयास किया गया है कि वहां भी स्थिति संतोषजनक नहीं है. दूसरे राज्यों से तुलना करके राज्य सरकार की ओर से अपनी कमियों को छिपाने का प्रयास निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है. राज्य सरकार के जिम्मेदार अधिकारी यदि इस प्रकार अनुचित तुलना करने के बजाए व्यवस्था सुधार पर ध्यान देते तो ज्यादा बेहतर होगा. इसके साथ ही अदालत ने मुख्य सचिव को शपथ पत्र पेश कर बताने को कहा है कि एफएसएल को संसाधन उपलब्ध कराने के राज्य सरकार की ओर से बजट आवंटन को लेकर क्या किया गया है?.
इसके अलावा मुख्य सचिव यह भी बताएं कि क्या प्रकरण में न्यायिक अभिरक्षा में चल रहे आरोपी को सांकेतिक तौर पर मुआवजा देने के लिए सहमत हैं या नहीं. जस्टिस उमाशंकर व्यास की एकलपीठ ने यह आदेश अर्जुन नरवाला की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. सुनवाई के दौरान अदालती आदेश की पालना में एसीएस गृह आनंद कुमार, डीजीपी यूआर साहू और एफएसएल निदेशक अजय शर्मा अदालत में पेश हुए. एसीएस और डीजीपी ने अदालत के समक्ष स्वीकार किया कि एफएसएल और डीएनए रिपोर्ट समय पर तैयार करने के लिए पर्याप्त संसाधन मुहैया कराना राज्य सरकार का दायित्व है.
इस संबंध में वर्ष 2014 से हाईकोर्ट निरंतर आदेश पारित कर रहा है. इसके बावजूद अभी भी भारी संख्या में जांच लंबित हैं और उपलब्ध संसाधन अपर्याप्त है. इस दौरान राज्य सरकार की ओर से वर्ष 2019 से वर्षवार लंबित मामलों का रिकॉर्ड भी पेश किया गया. जिसमें सामने आया कि लंबित मामले छह साल में 3136 से बढक़र 20 हजार से अधिक हो गए हैं. अदालत ने अधिकारियों को कहा कि गंभीर मामलों में यदि आरोपी को जमानत दी जाती है तो पीड़ित पक्ष के साथ अन्याय हो सकता है. वहीं, राज्य सरकार की निष्क्रियता के कारण आरोपी को अकारण जेल में रखा जाता है तो उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है. प्रकरण 13 साल की बालिका से दुष्कर्म से जुड़ा है, लेकिन सरकार की संवेदनशीलता प्रकट नहीं हुई है. अदालत ने कहा कि बीते 14 सालों से बार-बार निर्देश देने के बावजूद व्यवस्था में सुधार नहीं है. ऐसे में यह विकल्प हो सकता है कि रिपोर्ट में देरी के चलते सरकार पर हर्जाना लगाकर राशि आरोपी को दी जाए. ऐसे में राज्य सरकार इस संबंध में भी अपना पक्ष रखें, ताकि इस संबंध में भी आदेश दिया जा सके.