ग्वालियर। साल 1984 की बात है, देश में लोकसभा के चुनाव थे. उस वक्त तक अटल बिहारी वाजपेयी दो बार राज्यसभा के सदस्य और चार बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके थे. राजनीति में 1977 में उन्होंने जनता पार्टी खड़ी की और देश की पहली नॉन कांग्रेस सरकार के तौर पर मोरारजी देसाई की सरकार बनवाकर वे अपना लोहा मनवा चुके थे. उसी सरकार में विदेश मंत्री भी बने, लेकिन दो साल बाद ही 1979 इंदिरा गांधी उस सरकार को गिराने में कामयाब रहीं और दोबारा कांग्रेस सत्ता में आ गई थी. 84 के चुनाव से पहले इंदिरा गांधी की राजनीतिक हत्या हो गई. इसके बाद जब लोकसभा के चुनाव हुए ये किस्सा उसी दौरान का है.
अटल बिहारी वाजपेयी के लिये पूरी तरह सेफ सीट थी ग्वालियर
बताया जाता है कि, लोकसभा के चुनाव की प्रक्रिया जब शुरू हुई तो भारतीय जनसंघ जो 1977 में जनता पार्टी बना और फिर टूटकर 1980 में भारतीय जानता पार्टी का उदय हुआ. उस बीजेपी की सरकार बनाने के लिए पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी को मध्य प्रदेश की ग्वालियर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए भेजा गया, माना गया था कि ये सबसे सेफ सीट है. यहां से अटलजी को जीतने की पूरी उम्मीद थी, इसलिए वे ग्वालियर आये और नामांकन दाखिल कर दिल्ली लौट गये.
कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को बना दिया था प्रत्याशी
कहानी में मोड़ तब आया जब नामांकन का आखिरी दिन था और आखिरी समय पर अचानक उस दौरान कांग्रेस ने ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के माधवराव सिंधिया को अपना प्रत्याशी बना दिया. माधवराव राव सिंधिया पूरे परिवार के साथ स्पेशल प्लेन के जरिये दिल्ली से सीधा ग्वालियर पहुंचे और अपना नामांकन दाखिल कर दिया.
आखिरी समय में इंतजार करते रह गए थे वाजपेयी
ये जानकारी जैसे ही अटल बिहारी वाजपेयी को लगी तो वे तुरंत ग्वालियर के लिये भागे, क्योंकि उन्हें अंदाजा था कि ग्वालियर में सिंधिया राजघराने का कितना वर्चस्व है और इस सीट पर अगर माधवराव सिंधिया चुनाव लड़े तो उनका जीतना नामुमकिन है. ऐसे में आखिरी समय पर बीजेपी ने अटल जी के चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा सीट बदलने का फैसला लिया. चूंकि समय काफी कम बचा था, उन्हें खजुराहो से लड़वाने का निर्णय लिया गया. अटलजी एयरपोर्ट पहुंचे, लेकिन कोई प्लेन नहीं मिला, खजुराहो में तैयारियां पूरी कर ली गई थी, लेकिन ना वे ग्वालियर पहुंच कर अपना नाम वापस ले सके और ना ही खजुराहो से नामांकन दाखिल कर सके और समय पूरा हो गया.
रिजल्ट से पहले स्वीकार कर ली थी हार
राजनीतिक विश्लेषक देव श्रीमाली कहते हैं कि '84 का चुनाव यादगार रहा है. अटल बिहारी वाजपेयी को ना चाहते हुए भी आखिर में ग्वालियर से माधव राव सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ना पड़ा था. जब मतगड़ना हुई तो जैसा की उन्हें पहले से ही अंदाज़ा था, मतगणना के पहले ही राउंड में माधवराव सिंधिया ने खासी बढ़त बना ली. दूसरे राउंड पूरा होने के बाद अटलजी ने दिल्ली में रिजल्ट घोषित होने से पहले ही उन्होंने मीडिया के सामने जनता को धन्यवाद देते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली थी. ये किस्सा आज भी चुनावी मौसम में लोगों लोगों की आपसे चर्चा में आ जाता है.