कुल्लू: जाइका वानिकी परियोजना के तहत स्वयं सहायता समूह अब स्वरोजगार को अपना रहे हैं. जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में कई लोगों को रोजगार प्राप्त हो रहा है. जाइका के तहत निर्मित हिमाचल के पारंपरिक परिधानों की बुनाई ने ग्रामीणों की आर्थिकी में नई जान भरी है. ग्राम वन विकास समिति बाराहार कुल्लू के तहत नारायण स्वयं सहायता समूह बरोगी ने शॉल, स्टॉल और बास्केट यानी हाफ जैकेट तैयार की है. जिनकी मार्केट में अच्छी कीमत मिल रही है. इसके लिए उन्होंने 45 दिन की ट्रेनिंग ली. यहां तक कि ट्रेनिंग के दौरान ही 35 हजार रुपए की बिक्री भी हो गई.
स्वयं सहायता समूह को मिला 5 लाख कुल्लू-किन्नौरी स्टॉल का ऑर्डर
जाइका के तहत हैंडलूम के मास्टर ट्रेनर जुगत राम अब तक कुल्लू जिले में 16 स्वयं सहायता समूहों को ट्रेनिंग दे चुके हैं. जिन स्वयं सहायता समूहों को जुगत राम ने ट्रेनिंग दी है, अब वे समूह बेहतरीन क्वालिटी के कुल्लवी शॉल व स्टॉल तैयार कर रहे हैं. जिसकी ओपन मार्केट में भी अच्छी कीमत मिल रही है. जुगत राम ने बताया कि नारायण स्वयं सहायता समूह को शमशी स्थित कुल्लू-किन्नौरी स्टॉल उद्योग ने पांच लाख कुल्लू एवं किन्नौरी स्टॉल तैयार करने का ऑर्डर दिया है. ऐसे में जाहिर है कि जाइका वानिकी परियोजना से जुड़े स्वयं सहायता समूह द्वारा निर्मित पारंपरिक परिधान को पहचान मिल चुकी है.
2021 से स्वयं सहायता समूहों को दे रहे ट्रेनिंग
मास्टर ट्रेनर जुगत राम ने कहा कि जाइका के मुख्य परियोजना अधिकारी नागेश कुमार गुलेरिया के अथक प्रयासों के कारण ये संभव हुआ है. जिसके कारण आज प्रदेशभर में ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को आजीविका कमाने और अपनी आर्थिकी सुधारने का मौका मिला है. उन्होंने बताया कि वे साल 2021 से जाइका वानिकी परियोजना के हैंडलूम सेक्टर में एक मास्टर ट्रेनर के तौर पर काम कर रहे हैं. जुगत राम ने इसके लिए जाइका के मुख्य परियोजना निदेशक नागेश कुमार गुलेरिया का आभार व्यक्त किया.
कुल्लू जिले में हैंडलूम सेक्टर में 106 एसएचजी
मास्टर ट्रेनर जुगत राम ने बताया कि जाइका वानिकी परियोजना हैंडलूम सेक्टर में बेहतरीन काम कर रही है. जाइका से जुड़े विभिन्न स्वयं सहायता समूहों के जरिए तैयार हो रहे हथकरघा एवं बुनकर उत्पादों को नई पहचान मिल रही है. कुल्लू जिले में हैंडलूम सेक्टर से 106 स्वयं सहायता समूह जुड़े हुए हैं. जिनमें 72 ग्रुप एक्टिव तरीके से काम कर रहे हैं. परियोजना के तहत स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार किए गए उत्पादों की ब्रांडिंग भी की जाती है. जिसके बाद हिम ट्रेडिशन नामक ब्रांड से उत्पादों की ब्रिकी की जाती है.
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