लखनऊ: उत्तर प्रदेश की कला और संस्कृति अपनी समृद्ध और विविध परंपराओं के लिए जानी जाती है. यह राज्य न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी लोक कला, शास्त्रीय संगीत, नृत्य, साहित्य, हस्तशिल्प और उत्सवों की विविधता के लिए पहचाना जाता है. आईए जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक, शास्त्रीय संगीत की धरोहर के बारे में.
शास्त्रीय संगीत में अलग पहचान: उत्तर प्रदेश का बनारस, लखनऊ और बदायूं घराना कथक और गायन में अपनी खासियत के लिए पहचाना जाता है. ठुमरी, दादरा और ख्याल जैसे शास्त्रीय संगीत विधाओं ने इसे और समृद्ध किया है. संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष शोभित कुमार नहर ने प्रदेश सरकार के कार्यक्रमों की सराहना करते हुए बताया कि लोक और शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की जा रही हैं.
भारतीय शास्त्रीय नृत्य का प्राचीन इतिहास: भारतीय शास्त्रीय नृत्य की अद्भुत शैली कथक का शाब्दिक अर्थ है ‘कहानी कहने वाला’. यह कला लखनऊ, जयपुर और बनारस घरानों में विकसित हुई. लखनऊ घराना, जिसे ईश्वर प्रसाद ने पुनर्जीवित किया, सौंदर्य और स्वाभाविकता के लिए प्रसिद्ध है. जयपुर घराना तात्कालिकता और चक्करदार गतियों के लिए जाना जाता है. वहीं, बनारस घराना तांडव और लास्य का अद्भुत संतुलन प्रस्तुत करता है.
पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास: पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने बताया कि 2023 में उत्तर प्रदेश में 48 करोड़ पर्यटक आए, और 2024 में यह आंकड़ा 60 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। अयोध्या के दीपोत्सव, बनारस की देव दीपावली, और मथुरा-वृंदावन की होली जैसे कार्यक्रमों ने पर्यटकों को आकर्षित किया है.
काशी महोत्सव और होली का पर्व: मथुरा और वृंदावन की होली में रंग और संगीत का अद्वितीय संगम होता है. उत्तर प्रदेश के प्रमुख आकर्षणों में से एक है. वाराणसी का देव दीपावली उत्सव गंगा के घाटों को स्वर्गिक रोशनी से भर देता है. बनारस संगीत महोत्सव और लखनऊ महोत्सव कला प्रेमियों के लिए सांस्कृतिक खजाने के समान हैं.
स्थानीय महोत्सवों और कलाकारों को मंच देने की पहल: प्रदेश के सभी जिलों को अपने स्थापना दिवस पर स्थानीय कलाकारों को मंच देने का निर्देश दिया गया है. आगरा का ताज महोत्सव, अयोध्या का रामायण महोत्सव और गोरखपुर महोत्सव जैसे आयोजन न सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं, बल्कि स्थानीय कलाओं को भी नया जीवन दे रहे हैं.
सांस्कृतिक स्थलों का संरक्षण: प्रदेश के ऐतिहासिक स्थलों को विकसित करने का कार्य भी तेजी से हो रहा है. अयोध्या, प्रयागराज, बनारस और मथुरा-वृंदावन जैसे धार्मिक स्थलों को टूरिस्ट सर्किट का हिस्सा बनाया गया है. बुंदेलखंड और बटेश्वर जैसे क्षेत्रों में वीरगाथाओं और प्राचीन धरोहरों को संरक्षित किया जा रहा है.
हिंदी साहित्य का योगदान: प्रोफेसर रश्मि कुमार ने प्रेमचंद और दिनकर की रचनाओं को समाज के लिए प्रेरणा बताते हुए कहा कि इनकी रचनाओं में परंपरा, संस्कार और मानवीय मूल्यों की झलक मिलती है. प्रेमचंद की "गोदान" और दिनकर की "कुरुक्षेत्र" जैसी रचनाएं आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं.
लोक कथाएं और परंपराएं: रामलीला और कृष्णलीला जैसे नाटकों ने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक जड़ों को गहराई दी है. ये कहानियां धार्मिक और सामाजिक मूल्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी संप्रेषित करती हैं.
गांधार कला, भारतीय और यूनानी कला का संगम: प्राचीन भारतीय मूर्तिकला में गांधार कला विशेष स्थान रखती है. यह शैली ग्रीक-रोमन प्रभाव से प्रेरित है और बुद्ध की मूर्तियों के निर्माण में प्रसिद्ध है. सफेद और काले पत्थरों का उपयोग कर बनाई गई इन मूर्तियों में आभूषणों और कपड़ों की सिलवटों का बारीकी से प्रदर्शन किया गया है.
काशी, लोक कलाओं की धरोहर: वाराणसी की लोक कलाएं जैसे बांस और ताड़ की वस्तुएं, काष्ठकला और भित्ति चित्रकला भारतीय संस्कृति की पहचान हैं. बनारसी साड़ियां, जिनमें जरी और रेशम का मेल है, काशी की वैश्विक पहचान हैं.
इत्र नगरी कन्नौज: इत्र निर्माण कला के लिए कन्नौज प्रसिद्ध है. सदियों से गुलाब, चंदन और चमेली के इत्र का उत्पादन यहां होता आ रहा है, जो इसकी खुशबू भरी गलियों में महसूस किया जा सकता है.
पीतल नगरी मुरादाबाद: पीतल की नक्काशी ने मुरादाबाद को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई. यहां निर्मित कारीगरी आज भी दुनियाभर में निर्यात की जाती है. इसके साथ ही आगरा का ताजमहल अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. सफेद संगमरमर का यह अद्भुत मकबरा मुगल वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है.
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: मथुरा और वृंदावन कृष्ण भक्ति का केंद्र हैं, जबकि अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है. प्रयागराज का कुंभ मेला और वाराणसी के घाट धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के प्रमुख स्थल हैं.
ये भी पढ़ेंः मलाई मक्खन...सर्दियों की खास मिठाई; मुंह में रखते ही घुल जाए, बनाने का है स्पेशल लखनवी अंदाज