शिमला: हिमाचल सरकार के प्रधान सचिव रैंक के अफसर आरडी नजीम पर हाईकोर्ट की अवमानना की तलवार लटक गई है. राज्य सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के प्रधान सचिव पर एक अदालती आदेश की अनुपालना से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है.
हालांकि, मामले में संबंधित विभाग की तरफ से अदालत में कुछ फैसलों को तर्क के रूप में शामिल करने की मांग को हाईकोर्ट ने शर्त सहित स्वीकार कर लिया, लेकिन ये स्पष्ट किया कि विभाग ने जिन फैसलों को तर्क के रूप में शामिल करने की मांग उठाई है, वह मंजूर करने लायक नहीं हुई तो प्रधान सचिव आरडी नजीम को अपनी जेब से 1 लाख रुपए भरने होंगे. ये रकम अदालत का बहुमूल्य समय बर्बाद करने की एवज में भरनी होगी.
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की तरफ से कुछ फैसलों को तर्क के रूप में शामिल करने की मांग पर भी फैसला सुरक्षित रख लिया. इस प्रकार हाईकोर्ट ने फिलहाल खाद्य विभाग के प्रधान सचिव आरडी नजीम पर कोई कॉस्ट नहीं लगाई है. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ कर रही है.
खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि वह अनुपालना अदालत के रूप में फैसले की अक्षरश: अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए कानूनन बंधे हुए हैं. खंडपीठ ने कहा कि वो अनुपालना अदालत होने के कारण फैसले के व्यापक प्रभाव को न देखते हुए फैसले की अक्षरश: अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है.
क्या है मामला ?
मामले के अनुसार प्रार्थियों के पक्ष में प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने एक फैसला दिया था. फैसले के अनुसार प्रार्थियों के अनुबंध काल को वरिष्ठता के लिए गिने जाने के बाद वाले लाभ दिए जाने थे. उदाहरण के लिए खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी के पद पर आगे प्रमोशन आदि का लाभ. इन आदेशों के अंतिम रूप लेने के बाद खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता विभाग ने हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग में 23 अक्टूबर को आयोजित विभागीय प्रोन्नति समिति की सिफारिशों पर विभाग में कार्यरत निरीक्षक ग्रेड-वन को खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी के पद पर प्रमोट करने के आदेश दिए. यह प्रमोशन आदेश उपयुक्त तिथि से न होकर आगामी अवधि से प्रभावी माने गए.
कोर्ट ने इसे अदालत के आदेशों की अक्षरश: अनुपालना न पाते हुए इस मामले में हलफनामा दाखिल करने वाले प्रधान सचिव आरडी नजीम के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया था. अदालत ने कहा कि उन्हें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उक्त प्रधान सचिव ट्रिब्यूनल की तरफ से याचिकाकर्ताओं की याचिका को स्वीकार करते समय इस्तेमाल की गई भाषा को समझने की स्थिति में होंगे. ट्रिब्यूनल ने प्रतिवादियों को निजी प्रतिवादियों संख्या 3 से 23 के अलावा इंस्पेक्टर ग्रेड-वन के रूप में सीनियोरिटी प्रदान करने के लिए संबंधित आवेदकों के मामलों पर विचार करने का निर्देश दिया था. साथ ही कहा था कि पूरी सेवा, चाहे वह अनुबंध पर हो या नियमित, सभी परिणामी लाभों के साथ सीनियोरिटी में गिनी जाएगी.
हाईकोर्ट ने अनुपालना याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि स्पष्ट रूप से यह एक ऐसा मामला है, जहां हलफनामे के अभिसाक्षी ने अदालत का कीमती समय बर्बाद करने के अलावा गुमराह करने की कोशिश भी की है. हाईकोर्ट ने कहा था कि इसलिए आईएएस आरडी नजीम के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया जाए. हाईकोर्ट के इस सख्त आदेश के बाद राज्य के एडवोकेट जनरल सुनवाई में शामिल हुए.
एडवोकेट जनरल ने अदालत में इस आधार पर सुनवाई स्थगन के लिए प्रार्थना की कि वे प्रमोशन से जुड़े कुछ फैसलों का हवाला इस केस में देना चाहते हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि हम इस तरह के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं, फिर भी न्याय के हित में मामले को अनिच्छा से स्थगित किया जाता है. खंडपीठ ने इसके साथ ये भी स्पष्ट किया कि यदि अदालत में राज्य का तर्क स्वीकार नहीं किया गया तो संबंधित प्रधान सचिव को 1,00,000/- रुपये की कॉस्ट का भुगतान अपनी जेब से करना होगा. अदालत ने साथ ही विभाग के प्रधान सचिव के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई को भी लंबित रखने के आदेश जारी किए.
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