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विधायकों के इस्तीफे पर संवैधानिक अदालत विधानसभा स्पीकर को त्यागपत्र मंजूर करने के लिए तय नहीं कर सकती समय सीमा: HC - Himachal High Court

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की अहम व्यवस्था के मुताबिक अगर कोई विधायक अपनी सदस्यता से इस्तीफा देता है तो संवैधानिक अदालत विधानसभा अध्यक्ष के लिए इस मुद्दे पर फैसला लेने की समय सीमा तय नहीं कर सकती. मामला हिमाचल में पूर्व निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे से जुड़ा हुआ है.

HIMACHAL HIGH COURT
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (ETV Bharat File Photo)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 16, 2024, 6:54 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है. हाईकोर्ट की व्यवस्था के अनुसार यदि कोई विधायक अपनी सदस्यता से इस्तीफा देता है तो संवैधानिक अदालत विधानसभा स्पीकर के लिए इस मुद्दे पर फैसला लेने की समय सीमा तय नहीं कर सकती है. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा से तीन निर्दलीय विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था और वे भाजपा में शामिल हो गए थे. निर्दलीय विधायकों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि स्पीकर उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रहे हैं. तीनों ने हाईकोर्ट से आग्रह किया था कि अदालत स्पीकर को निर्देश दे कि इस्तीफा स्वीकार किया जाए. इस मुद्दे पर हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले में एकरूपता न होने के कारण मामला तीसरे न्यायाधीश को रेफर किया गया था. हालांकि मौजूदा समय में स्पीकर कुलदीप पठानिया ने तीनों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और उपचुनाव की तारीख भी तय हो गई है, लेकिन हाईकोर्ट की व्यवस्था आने वाले समय में ऐसी परिस्थितियों में अहम साबित होगी.

न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने दी व्यवस्था

निर्दलीय विधायकों की याचिका पर हाईकोर्ट की खंडपीठ में मत भिन्नता थी. मामला न्यायमूर्ति संदीप शर्मा के पास भेजा गया. न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने अपनी व्यवस्था में कहा-यह न्यायालय उनके (स्पीकर) द्वारा लिए गए नजरिए से सहमत होने के लिए राजी है. इस मामले में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि विधानसभा/विधानसभा के सदस्यों द्वारा उनके समक्ष लाए गए इस्तीफे के मुद्दे, यदि कोई हो तो उस पर निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष के लिए संवैधानिक न्यायालय द्वारा कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती है.

वहीं, न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने आगे कहा-अध्यक्ष राज्य विधानमंडल के एक अधिकारी के रूप में कार्य करता है. इस क्षमता में, अध्यक्ष एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में संवैधानिक न्यायालय के बराबर है. ऐसी स्थितियों में, संवैधानिक अदालतें संविधान के तहत उन्हें विशेष रूप से सौंपी गई भूमिकाओं के संबंध में अन्य संवैधानिक प्राधिकारियों के अधिकार क्षेत्र का सम्मान करती हैं. इस बात को पूर्व में हाईकोर्ट के दोनों माननीय न्यायमूर्तियों ने भी अलग-अलग निर्णय लिखते समय पहले ही स्वीकार कर लिया है.

गौरतलब है कि 8 मई को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने तीन निर्दलीय विधायकों की तरफ से दाखिल याचिका पर दो अलग-अलग फैसले दिए थे. मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव ने अपने अलग फैसले में यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि स्पीकर को एक तय समय सीमा के भीतर त्यागपत्रों पर निर्णय लेने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है. वहीं, न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने स्पीकर विधानसभा को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता विधायकों द्वारा हिमाचल प्रदेश विधानसभा की सदस्यता से दिए गए इस्तीफों पर इस फैसले की तारीख से दो सप्ताह के अंदर फैसला लें.

ये भी पढे़ं: हिमाचल में CPS की नियुक्ति मामले में HC ने सुरक्षित किया फैसला, 2016 में दाखिल हुई थी याचिका

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शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है. हाईकोर्ट की व्यवस्था के अनुसार यदि कोई विधायक अपनी सदस्यता से इस्तीफा देता है तो संवैधानिक अदालत विधानसभा स्पीकर के लिए इस मुद्दे पर फैसला लेने की समय सीमा तय नहीं कर सकती है. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा से तीन निर्दलीय विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था और वे भाजपा में शामिल हो गए थे. निर्दलीय विधायकों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि स्पीकर उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रहे हैं. तीनों ने हाईकोर्ट से आग्रह किया था कि अदालत स्पीकर को निर्देश दे कि इस्तीफा स्वीकार किया जाए. इस मुद्दे पर हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले में एकरूपता न होने के कारण मामला तीसरे न्यायाधीश को रेफर किया गया था. हालांकि मौजूदा समय में स्पीकर कुलदीप पठानिया ने तीनों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और उपचुनाव की तारीख भी तय हो गई है, लेकिन हाईकोर्ट की व्यवस्था आने वाले समय में ऐसी परिस्थितियों में अहम साबित होगी.

न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने दी व्यवस्था

निर्दलीय विधायकों की याचिका पर हाईकोर्ट की खंडपीठ में मत भिन्नता थी. मामला न्यायमूर्ति संदीप शर्मा के पास भेजा गया. न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने अपनी व्यवस्था में कहा-यह न्यायालय उनके (स्पीकर) द्वारा लिए गए नजरिए से सहमत होने के लिए राजी है. इस मामले में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि विधानसभा/विधानसभा के सदस्यों द्वारा उनके समक्ष लाए गए इस्तीफे के मुद्दे, यदि कोई हो तो उस पर निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष के लिए संवैधानिक न्यायालय द्वारा कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती है.

वहीं, न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने आगे कहा-अध्यक्ष राज्य विधानमंडल के एक अधिकारी के रूप में कार्य करता है. इस क्षमता में, अध्यक्ष एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में संवैधानिक न्यायालय के बराबर है. ऐसी स्थितियों में, संवैधानिक अदालतें संविधान के तहत उन्हें विशेष रूप से सौंपी गई भूमिकाओं के संबंध में अन्य संवैधानिक प्राधिकारियों के अधिकार क्षेत्र का सम्मान करती हैं. इस बात को पूर्व में हाईकोर्ट के दोनों माननीय न्यायमूर्तियों ने भी अलग-अलग निर्णय लिखते समय पहले ही स्वीकार कर लिया है.

गौरतलब है कि 8 मई को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने तीन निर्दलीय विधायकों की तरफ से दाखिल याचिका पर दो अलग-अलग फैसले दिए थे. मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव ने अपने अलग फैसले में यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि स्पीकर को एक तय समय सीमा के भीतर त्यागपत्रों पर निर्णय लेने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है. वहीं, न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने स्पीकर विधानसभा को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता विधायकों द्वारा हिमाचल प्रदेश विधानसभा की सदस्यता से दिए गए इस्तीफों पर इस फैसले की तारीख से दो सप्ताह के अंदर फैसला लें.

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