शिमला: राजधानी शिमला के सबसे बड़े उपनगर संजौली में मस्जिद में अवैध निर्माण के खिलाफ स्थानीय नागरिकों ने बड़ा प्रदर्शन किया था. ये प्रदर्शन 11 सितंबर को हुआ था और इस दौरान पुलिस पर पथराव के बाद प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज भी किया गया था. संजौली मस्जिद विवाद के बाद शिमला के धामी क्षेत्र में एक फेरीवाले की पिटाई का वीडियो सामने आया था.
उस दौरान राज्य सरकार के शहरी विकास मंत्री ने बयान दिया था कि खाने-पीने की दुकानों के बाहर नाम लिखना आवश्यक किया जाएगा. इन सभी मामलों में शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवर ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की थी. याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि वो प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए वचनबद्ध है. सरकार समाज के सभी वर्गों में उनकी जाति, पंथ और धर्म के बावजूद न्याय, समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए काम कर रही है. माहौल बिगाड़ने वालों के साथ सख्ती से निपटने और किसी भी उपद्रव के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जा रही है. आगे राज्य सरकार ने कहा कि उपद्रव से निपटने के लिए विभिन्न साधनों से संदिग्धों पर नजर रखी जा रही है.
हाईकोर्ट में लंबित जनहित याचिका का जवाब देते हुए सरकार की ओर से कहा गया है कि संजौली मस्जिद मामले में पुलिस स्टेशन ढली जिला शिमला में विभिन्न संगठनों के सदस्यों के खिलाफ 10 एफआईआर दर्ज की गई है. आरोपियों ने मस्जिद के अवैध हिस्से को ध्वस्त करने की मांग को लेकर एक गैरकानूनी विरोध प्रदर्शन किया था. उपरोक्त एफआईआर के तहत उपद्रवियों पर धारा 121 (1), 196 (1), 196 (2), 189 (3), 245, 132, 353 (2), 189, 126 (2), 61 (2) व 299 बीएनएस और संपत्ति विनाश निवारण अधिनियम की धारा 03 सहित विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया गया है. उपरोक्त सभी मामलों की जांच कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार की जा रही है. उपरोक्त एफआईआर में 87 लोगों को आरोपी के रूप में पहचाना गया है और कानून के अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी.
इसके अलावा, धामी, जिला शिमला में प्रवासी फेरीवाले की पिटाई के मामले में पुलिस स्टेशन पश्चिम, जिला शिमला में धारा 126(1), 115(2), 352, 3(5) के तहत पुलिस स्टेशन पश्चिम, जिला शिमला में एफआईआर दर्ज की गई थी. इस मामले की जांच कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार की जा रही है. साथ ही धामी, जिला शिमला के निवासियों को आरोपी के रूप में पहचाना गया है और कानून के अनुसार आगे की कार्रवाई की जा रही है.
क्या है पूरा मामला?
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता टिकेंद्र सिंह पंवर की तरफ से एक याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया कि कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने मीडिया में बताया कि राज्य सरकार ने लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए यूपी सरकार की तर्ज पर आदेश जारी करने का निर्णय लिया है. शहरी विकास मंत्री के बयानों का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है उन्होंने मीडिया को बताया था कि शहरी विकास विभाग और नगर निगम ने एक बैठक में खाद्य स्टालों पर भोजन की उपलब्धता के बारे में लोगों के डर और आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए सामूहिक रूप से उपरोक्त निर्णय लिया है. मंत्री के बयान में कहा गया कि यूपी की तरह हिमाचल में भी नियमों को सख्ती से लागू करने का फैसला किया गया है.
प्रार्थी का कहना है कि यूपी सरकार की इस संबंध में जारी अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है. इसलिए हिमाचल प्रदेश में भी इस तरह की किसी अधिसूचना को जारी करने पर रोक लगनी चाहिए. प्रार्थी का कहना है कि उन्हें दुकानों के बाहर पंजीकरण संबंधी जानकारी लगाने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन दुकान के बाहर उन्हें नाम और पता लगाने पर इसलिए आपत्ति है कि इससे सांप्रदायिकता का माहौल पैदा होगा, जो देश की एकता और अखंडता के साथ साथ संवैधानिक मूल्यों के लिए सही नहीं होगा. इसी सिलसिले में अदालत ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था.