बगहा: बिहार के इकलौते वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की पहचान यहां के बाघों से है, लेकिन काफी कम लोग जानते होंगे कि इस टाइगर रिजर्व में बाघों से ज्यादा तादाद एक जानवर की है, जिससे बाघ भी खौफ रहता है. इस जानवर को देखते ही भाग के पसीने छूट जाते हैं और भाग खड़े होते हैं. बाघ, तेंदुआ जैसे खतरनाक जानवर भी इसके आसपास नहीं भटकते.
आम भाषा में जंगली भैंसः दरअसल, हम गौर जानवर की बात कर रहे हैं. इसे भारतीय बाइसन और आम भाषा में जंगली भैंस कहते हैं. दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में पाए जाने वाला गौजातीय पशु है. दुनिया में इसकी बड़ी आबादी लगभग 21000 है. यह काफी बलवान होता है. मादा गौर की लंबाई 7 और नर गौर की लंबाई 9 तक होती है. इसका सींग C आकार का ऊपर की ओर उठा होता है.
बुढ़ापा तक बदलता रंग: जंगली भैंस की एक खासियत है कि इसका रंग बदलते रहता है. जन्म के दौरान इसका रंग पीला होता है. कुछ समय के बाद यह भूरा होता जाता है. जवान होने के बाद इसका रंग कॉफी की तरह हो जाता है. प्रौढ़ावस्था के दौरान यह काजल जैसा काले रंग का तरह हो जाता है. सिर और आंख का रंग हमेशा भूरा होता है. पैर घुटने से नीचे सफेद होता.
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कितना खतरनाक होता है?: समान्य तौर पर यह खतरनाक जानवर नहीं है लेकिन अक्रामक होने पर जानवर के साथ-साथ मनुष्य के लिए खतरनाक हो जाता है. आमतौर पर इसके दुश्मन बाघ, तेंदुआ आदि होते हैं, क्योंकि बाघ और तेंदुआ जैसे जानवर भोजन की तलाश में इनके बच्चे का शिकार कर देते हैं. बाघ या तेंदुआ बड़े गौर से लड़ने की हिम्मत नहीं करते.
इसके नाम पर वीटीआर की पहचान: नेचर एनवायरनमेंट वाइल्ड लाइफ सोसायटी (Nature Environment and Wildlife Society) के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक वन्यजीव के विशेषज्ञ हैं. वे बताते हैं कि इसी जानवर के नाम पर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व का पहला नाम भैंसालोटन था. दरअसल, बुजुर्गों के मुताबिक गौर जिन्हें स्थानीय लोग जंगली भैंस समझते थे इनकी संख्या काफी ज्यादा थी. त्रिवेणी नदी किनारे नहाते थे अथवा लोट पोट करते रहते थे. लिहाजा इसका नाम भैंसालोटन रखा गया था.
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1964 में वीटीआर का नाम बदला: अभिषेक बताते हैं कि 28 अप्रैल 1963 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल अनंत श्यानम आयंगर निर्माणाधीन गंडक बराज का निरीक्षण पहुंचे थे. उसी दौरान वे वाल्मीकि आश्रम का दर्शन करने गए. एक स्थानीय महंत धनराज पूरी ने भैंसालोटन का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर रखने का अनुरोध किया. जिसके उपरांत 14 जनवरी 1964 को भैंसालोटन का नाम बदलकर सरकारी स्तर पर वाल्मिकीनगर कर दिया गया.
"गौर ऐसा जानवर हैं जो समूह में रहना पसंद करते हैं. गौर का वजन 1500 तक होता है जबकि बाघ का वजन 200 किलो. नतीजतन बाघ , तेंदुआ या गैंडा जैसे जानवर इनके सामने जाने या इनसे भिड़ने की हिम्मत नहीं कर पाते. दुनिया के 21000 के गौर की संख्या में अधिकांशतः भारत में मौजूद है." -अभिषेक, प्रोजेक्ट मैनेजर(NEWS)
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समूह में घूमती है मादा गौर: वन्य जीव विशेषज्ञ वीडी संजू बताते हैं कि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में सैकड़ों की संख्या में गौर हैं. इनकी संख्या तकरीबन बाघों की संख्या से तिगुनी 100 से 150 के बीच है. सभी एक साथ ग्रासलैंड एरिया में घूमते नजर आ जाते हैं. खास बात यह है कि गौर के समूह का हेड फीमेल गौर होती है और मेल गौर अकेला घूमना पसंद करता है.
"वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बड़े पैमाने पर पर्यटक जंगल सफारी के दौरान बाघों को देखने की लालसा लिए आते हैं, लेकिन ये गौर ही VTR की शान हैं. जिनके सामने जाने पर इन वनराजों का पसीना छूटता है. इन गौर की वजह से ही वाल्मिकीनगर की पुरानी पहचान भैंसालोटन के रूप में प्रचलित है." -वीडी संजू, वन्य जीवों के जानकार
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