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उत्तराखंड के जंगलों में 40 साल बाद पुराने स्वरूप में दिखेगी फायर लाइन, इन 4 डिवीजन से हुई शुरुआत - FIRE LINE IN UTTARAKHAND

उत्तराखंड के फॉरेस्ट डिवीजन में 40 साल बाद ब्रिटिश काल व्यवस्था फायर लाइन की शुरुआत की गई. 4 फॉरेस्ट डिवीजन से शुरुआत की गई.

FIRE LINE IN UTTARAKHAND
उत्तराखंड के जंगलों में 40 साल बाद पुराने स्वरूप में दिखेगी फायर लाइन (PHOTO-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 27, 2025, 8:10 PM IST

Updated : Feb 27, 2025, 8:38 PM IST

देहरादून (नवीन उनियाल): उत्तराखंड के जंगलों में 40 साल बाद एक बार फिर फायर लाइन पुराने स्वरूप में दिखाई देगी. हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने 2023 में ही इससे संबंधित आदेश जारी कर दिया था. लेकिन वन विभाग अब चार डिवीजन से फायर लाइन को पुराने स्वरूप में लाने के प्रयास में जुट गया है. वनों में फायर लाइन बनाने और ब्रिटिश काल की इस व्यवस्था को फिर से किस तरह सुचारू किया जाएगा? विस्तार से जानते हैं.

उत्तराखंड के जंगलों में विकराल वनाग्नि की घटनाएं हर साल रिकॉर्ड की जाती हैं. हालांकि, वन विभाग नए इक्विपमेंट से लेकर कर्मचारियों की तैनाती का फुल प्रूफ दावा करता है. लेकिन खास बात है कि वनाग्नि की रोकथाम के लिए सबसे जरूरी फायर लाइन व्यवस्था राज्य में ठप है. इसके पीछे का कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वृक्षों के कटान पर लगाई गई पाबंदी है. खास बात यह है कि 80 के दशक में लगी यह रोक लगातार जारी रही. हालांकि, 1996 में भी इस रोक को हटवाने के प्रयास किए गए. लेकिन यह सफल नहीं हो पाए.

उत्तराखंड के चार वन प्रभागों में फायर लाइन की शुरुआत. (VIDEO- ETV Bharat)

उत्तराखंड में हर साल जंगलों में लग रही आग का मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक भी सुनाई देता रहा है. ऐसे में उत्तराखंड सरकार ने फायर लाइन के इस जरूरी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी बात रखी है.

2023 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटाने के दिए आदेश: राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने बताया कि कैसे फायर लाइन जंगलों में होना बेहद जरूरी है. इस ब्रिटिश काल की परंपरागत व्यवस्था को बनाए रखने के लिए 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर पेड़ों का कटान जरूरी है. जिस पर, सुप्रीम कोर्ट ने भी इस विषय को गंभीरता से समझा और उसके बाद इस रोक को हटाने के 2023 में आदेश दिए थे. हालांकि तमाम दूसरी केंद्र सरकार की औपचारिकताओं के कारण इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका और जंगलों में फायर लाइन पर काम नहीं हो सका.

4 डिवीजन में तैयार की जा रही फायर लाइन: ऐसे में अब वन विभाग में तमाम औपचारिकताओं के बाद वन क्षेत्र में फायर लाइन पर काम शुरू कर दिया है. पहले चरण में उत्तराखंड के 4 डिवीजन में 400 किलोमीटर फायर लाइन तैयार की जा रही है. जिसमें फायर लाइन के बीच में आने वाले वर्षों का कटान किया जाएगा.

2 साल में पूरे प्रदेश में फायर लाइन: खास बात यह है कि फिलहाल देहरादून, कालसी, नैनीताल और रामनगर इन चार डिवीजन में काम शुरू किया जा चुका है. जिसमें देहरादून और कालसी डिवीजन में अंतिम चरण का काम जारी है.

पेड़ों को लेकर अनुमति: प्रमुख वन संरक्षक हॉफ के मुताबिक, इन चार डिवीजन से पेड़ों को हटाने के लिए केंद्रीय अनुमति की आवश्यकता नहीं है. इसलिए इन डिवीजनों से पेड़ों को हटाते हुए फायर लाइन की शुरुआत की गई है. हालांकि प्रदेश में अन्य लगभग एक दर्जन फॉरेस्ट डिवीजनों से पेड़ों को हटाने के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति की आवश्यकता है. जिसके लिए मंत्रालय से पत्राचार किया गया है. अनुमति मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.

वन विभाग के मुताबिक, करीब 2 साल में पूरे प्रदेश में फायर लाइन को पुराने स्वरूप में ला दिया जाएगा. इस तरह देखा जाए तो उत्तराखंड में 40 साल बाद जंगलों के भीतर फायर लाइन व्यवस्थित होने जा रही है. जिसके कारण आगामी फॉरेस्ट फायर सीजन के दौरान इसका असर दिखेगा.

जानिए क्या होती है फायर लाइन: उत्तराखंड में हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन के दौरान लाखों हेक्टेयर जंगल प्रभावित होते हैं. इस दौरान जंगलों के कई छोटे बड़े जीव भी वनाग्नि के चपेट में आते हैं. ऐसे में फॉरेस्ट फायर के दौरान भड़कने वाली आग को कंट्रोल करने के लिए फायर लाइन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. दरअसल, फायर लाइन दो जंगलों के बीच की वो खाली जगह होती है, जहां पर पेड़ों को हटा दिया जाता है. ताकि एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर भड़कने वाली आग इस खाली जगह की वजह से आगे ना बढ़ पाए.

वन प्रभाग, रेंज और बीट के लिए अलग-अलग मानक: इस तरह से दो वन प्रभागों के बीच में फायर लाइन खींचने का नियम ब्रिटिशकाल से वन विभाग में चल रहा है. नियम है कि दो वन प्रभागों के बीच में 100 फीट की फायर लाइन होनी चाहिए. इसके अलावा अलग-अलग रेंज के बीच में 50 फीट की फायर लाइन का नियम है. जबकि रेंज के अंदर पड़ने वाली अलग-अलग बीट के बीच में 30 फीट की फायर लाइन बनाने का नियम है.

ये भी पढ़ेंः फॉरेस्ट फायर से निपटने की तैयारी, वन विभाग खरीदेगा हाईटेक इक्विपमेंट, जल्द भरे जाएंगे खाली पद

ये भी पढ़ेंः फॉरेस्ट फायर को लेकर HC में हुई सुनवाई, पीसीसीएफ धनंजय मोहन ने कोर्ट में पेश किया पूरा प्ला

देहरादून (नवीन उनियाल): उत्तराखंड के जंगलों में 40 साल बाद एक बार फिर फायर लाइन पुराने स्वरूप में दिखाई देगी. हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने 2023 में ही इससे संबंधित आदेश जारी कर दिया था. लेकिन वन विभाग अब चार डिवीजन से फायर लाइन को पुराने स्वरूप में लाने के प्रयास में जुट गया है. वनों में फायर लाइन बनाने और ब्रिटिश काल की इस व्यवस्था को फिर से किस तरह सुचारू किया जाएगा? विस्तार से जानते हैं.

उत्तराखंड के जंगलों में विकराल वनाग्नि की घटनाएं हर साल रिकॉर्ड की जाती हैं. हालांकि, वन विभाग नए इक्विपमेंट से लेकर कर्मचारियों की तैनाती का फुल प्रूफ दावा करता है. लेकिन खास बात है कि वनाग्नि की रोकथाम के लिए सबसे जरूरी फायर लाइन व्यवस्था राज्य में ठप है. इसके पीछे का कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वृक्षों के कटान पर लगाई गई पाबंदी है. खास बात यह है कि 80 के दशक में लगी यह रोक लगातार जारी रही. हालांकि, 1996 में भी इस रोक को हटवाने के प्रयास किए गए. लेकिन यह सफल नहीं हो पाए.

उत्तराखंड के चार वन प्रभागों में फायर लाइन की शुरुआत. (VIDEO- ETV Bharat)

उत्तराखंड में हर साल जंगलों में लग रही आग का मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक भी सुनाई देता रहा है. ऐसे में उत्तराखंड सरकार ने फायर लाइन के इस जरूरी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी बात रखी है.

2023 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटाने के दिए आदेश: राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने बताया कि कैसे फायर लाइन जंगलों में होना बेहद जरूरी है. इस ब्रिटिश काल की परंपरागत व्यवस्था को बनाए रखने के लिए 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर पेड़ों का कटान जरूरी है. जिस पर, सुप्रीम कोर्ट ने भी इस विषय को गंभीरता से समझा और उसके बाद इस रोक को हटाने के 2023 में आदेश दिए थे. हालांकि तमाम दूसरी केंद्र सरकार की औपचारिकताओं के कारण इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका और जंगलों में फायर लाइन पर काम नहीं हो सका.

4 डिवीजन में तैयार की जा रही फायर लाइन: ऐसे में अब वन विभाग में तमाम औपचारिकताओं के बाद वन क्षेत्र में फायर लाइन पर काम शुरू कर दिया है. पहले चरण में उत्तराखंड के 4 डिवीजन में 400 किलोमीटर फायर लाइन तैयार की जा रही है. जिसमें फायर लाइन के बीच में आने वाले वर्षों का कटान किया जाएगा.

2 साल में पूरे प्रदेश में फायर लाइन: खास बात यह है कि फिलहाल देहरादून, कालसी, नैनीताल और रामनगर इन चार डिवीजन में काम शुरू किया जा चुका है. जिसमें देहरादून और कालसी डिवीजन में अंतिम चरण का काम जारी है.

पेड़ों को लेकर अनुमति: प्रमुख वन संरक्षक हॉफ के मुताबिक, इन चार डिवीजन से पेड़ों को हटाने के लिए केंद्रीय अनुमति की आवश्यकता नहीं है. इसलिए इन डिवीजनों से पेड़ों को हटाते हुए फायर लाइन की शुरुआत की गई है. हालांकि प्रदेश में अन्य लगभग एक दर्जन फॉरेस्ट डिवीजनों से पेड़ों को हटाने के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति की आवश्यकता है. जिसके लिए मंत्रालय से पत्राचार किया गया है. अनुमति मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.

वन विभाग के मुताबिक, करीब 2 साल में पूरे प्रदेश में फायर लाइन को पुराने स्वरूप में ला दिया जाएगा. इस तरह देखा जाए तो उत्तराखंड में 40 साल बाद जंगलों के भीतर फायर लाइन व्यवस्थित होने जा रही है. जिसके कारण आगामी फॉरेस्ट फायर सीजन के दौरान इसका असर दिखेगा.

जानिए क्या होती है फायर लाइन: उत्तराखंड में हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन के दौरान लाखों हेक्टेयर जंगल प्रभावित होते हैं. इस दौरान जंगलों के कई छोटे बड़े जीव भी वनाग्नि के चपेट में आते हैं. ऐसे में फॉरेस्ट फायर के दौरान भड़कने वाली आग को कंट्रोल करने के लिए फायर लाइन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. दरअसल, फायर लाइन दो जंगलों के बीच की वो खाली जगह होती है, जहां पर पेड़ों को हटा दिया जाता है. ताकि एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर भड़कने वाली आग इस खाली जगह की वजह से आगे ना बढ़ पाए.

वन प्रभाग, रेंज और बीट के लिए अलग-अलग मानक: इस तरह से दो वन प्रभागों के बीच में फायर लाइन खींचने का नियम ब्रिटिशकाल से वन विभाग में चल रहा है. नियम है कि दो वन प्रभागों के बीच में 100 फीट की फायर लाइन होनी चाहिए. इसके अलावा अलग-अलग रेंज के बीच में 50 फीट की फायर लाइन का नियम है. जबकि रेंज के अंदर पड़ने वाली अलग-अलग बीट के बीच में 30 फीट की फायर लाइन बनाने का नियम है.

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Last Updated : Feb 27, 2025, 8:38 PM IST
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