शिमला: इस समय राज्य से लेकर देश की राजनीति में हिमाचल प्रदेश के कर्ज का मामला सुर्खियों में है. हालांकि इस बार सरकार ने दिवाली से पहले ही कर्मचारियों को वेतन व पेंशनर्स को पेंशन सहित चार फीसदी डीए के भुगतान का ऐलान किया है, लेकिन आने वाले समय में वित्तीय स्थिति को लेकर चिंता की लकीरें अभी से सरकार के माथे पर हैं.
हिमाचल प्रदेश की सियासत में कर्ज को लेकर भाजपा व कांग्रेस की सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण करती रही हैं. सरकार कोई भी हो, कर्ज के बिना हिमाचल की आर्थिक गाड़ी चलती नहीं है. ऐसे में ये जानना दिलचस्प होगा कि पांच साल में क्या स्थिति रही है. प्रति व्यक्ति कर्ज की बात करें तो हिमाचल में वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान प्रति व्यक्ति कर्ज का आंकड़ा हजारों में था. अब ये आंकड़ा लाख में हो गया है.
साल 2017-18 में हिमाचल के हर व्यक्ति पर 66 हजार 232 रुपये कर्ज था. अब ये बढ़कर 1.17 लाख रुपये हो गया है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में हर सरकार के समय कर्ज का पहाड़ ऊंचा ही होता जा रहा है. आंकड़ों के आईने में कर्ज की इस तस्वीर को समझते हैं.
ये भी पढ़ें: देश का सबसे कर्जदार राज्य कौन सा है ? जानें क्या है आपके राज्य का हाल ? ये भी पढ़ें: दो महीने में ले लिया 1300 करोड़ का लोन, सुखविंदर सरकार अब तक ले चुकी है 34 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज |
प्रति व्यक्ति कर्ज का आंकड़ा
हिमाचल प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने पिछले साल मानसून सेशन में एक श्वेत पत्र सदन के पटल पर रखा था. ये श्वेत पत्र डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की अगुवाई वाली कैबिनेट सब-कमेटी ने तैयार किया था. उस दौरान पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल में वर्ष 2017-18 में प्रति व्यक्ति कर्ज 66 हजार 232 रुपये था. उस समय राज्य में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा की सरकार सत्ता में थी. तब ये आंकड़ा हजारों में था. फिर वर्ष 2018-19 में ये बढ़कर 69 हजार 743 हो गया.
वर्ष 2019-20 में ये कर्ज प्रति व्यक्ति 76 हजार 575 रुपये हो गया. फिर वर्ष 2020-21 में ये 82 हजार 700 रुपये पहुंच गया. अगले वित्तीय वर्ष यानी 2021-22 में ये बोझ 85 हजार 931 रुपये हो गया.
वर्ष 2022-23 में ये लाख रुपये के आंकड़े को पार कर एक लाख, दो हजार रुपये से अधिक हो गया. अब 2023-24 में एक लाख पांच हजार और वर्तमान में 1.17 लाख रुपये हो गया है. आने वाले पांच साल में ये पौने दो लाख रुपये तक पहुंच सकता है.
इस तरह बढ़ा कर्ज का पहाड़
श्वेत पत्र में बताया गया है कि वर्ष 2017-18 में जब जयराम ठाकुर ने सत्ता संभाली तो कर्ज का आंकड़ा 47 हजार 906 करोड़ रुपये था. फिर वर्ष 2018-19 में ये 50 हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर 50 हजार 773 करोड़ रुपये हो गया. वित्तीय वर्ष 2019-20 में ये 56 हजार 206 करोड़ रुपये पहुंच गया.
अगले वित्तीय वर्ष यानी 2020-21 में कर्ज का बोझ 60 हजार 983 करोड़ रुपये हो गया. इसी प्रकार वर्ष 2021-22 में ये कर्ज 63 हजार 718 करोड़ रुपये की ऊंचाई पर चला गया फिर 2022-23 में ये 76 हजार 630 (प्री-एक्चुअल) हो गया. यानी जयराम सरकार ने सत्ता छोड़ी तो प्रदेश पर 76 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज था. ये कर्ज 12 फीसदी प्रति वर्ष की औसत से बढ़ा. अब राज्य पर वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक यानी मार्च 2025 तक 94 हजार 992 करोड़ रुपये कर्ज हो जाएगा.
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है "सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सिर्फ कर्ज ही ले रही है. विकास के लिए कोई पैसा खर्च नहीं हो रहा." वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है "अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में जयराम ठाकुर सरकार ने 5000 करोड़ रुपए की रेवड़ियां बांटी.
यही नहीं, रेवेन्यू सरप्लस होने के बाद भी जयराम सरकार ने कर्मियों के वित्तीय लाभ जारी नहीं किए. ये सारा बोझ हमारी सरकार पर आया है." सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि उनकी सरकार ने फाइनेंशियल प्रूडेंस अपनाते हुए राज्य के कर्मचारियों को उनके हक दिए हैं. ओपीएस सहित सरकार ने अभी दिवाली पर कर्मचारियों व पेंशनर्स के लिए चार फीसदी डीए का भी इंतजाम किया है.
वहीं, सीनियर जर्नलिस्ट धनंजय शर्मा का कहना है "सरकार कोई भी हो, कर्ज के बिना अब गाड़ी चलने वाली नहीं है. राज्य को आर्थिक संकट से निकालने के लिए केंद्र ही कोई पैकेज दे तो बात बन सकती है."