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14 हजार रुपये किलो के हिसाब से बिक रही ये सब्जी, पीएम मोदी भी हैं इसके स्वाद के मुरीद - GUCCHI MUSHROOM

लवी मेले में गुच्छी इन दिनों 14 हजार रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रही है. इससे व्यापारियों की अच्छी आमदनी हो रही है.

लवी मेले में 14 हजार रुपये किलो बिक रही गुच्छी
लवी मेले में 14 हजार रुपये किलो बिक रही गुच्छी (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 1, 2024, 7:43 PM IST

रामपुर बुशहर: अंतरराष्ट्रीय लवी मेला हिमाचल का मुख्य व्यापारिक मेला है. यहां पर प्राकृतिक और स्थानीय उत्पादों की भारी बिक्री होती है. इस मेले में किन्नौरी राजमाह, पैजा चावल और अन्य स्थानीय उत्पाद आसानी से मिल जाते हैं. स्वाद और गुणवत्ता में इनका कोई मुकाबला नहीं है. इन दिनों लवी मेले में पहाड़ों पर प्राकृतिक तौर पर उगने वाली गुच्छी की भी खूब बिक्री हो रही है. ये अद्वितीय प्रकार का मशरूम केवल हिमालयी क्षेत्रों में ही पाया जाता है. इसे पहाड़ी सब्जी के नाम से भी जाना जाता है.

गुच्छी को खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने के साथ साथ इसे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है. इसे ताजा या सूखा कर भी सब्जी के तौर पर खाया जाता है. इसे पहाड़ों में खुख, टटमोर के नाम से भी जाना जाता है. लवी मेले में किन्नौर से आए व्यापारी रवी नेगी ने बताया कि, 'गुच्छी प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाई जाती है. इसकी महक और स्वाद इसे एक विशेष स्थान दिलाता है. पहाड़ों में उगने वाली ये मशरूम आमतौर पर शिमला, किन्नौर,चंबा, कुल्लू-मनाली, सिरमौर के इलाकों में फरवरी से लेकर अप्रैल तक उगती है. स्थानीय लोग इसे जंगल या पहाड़ी इलाकों से इकट्ठा कर बाजार में अच्छी कीमतों पर बेचते हैं. ये उनकी आय का एक अच्छा स्त्रोत है. इसकी पैदावार प्राकृतिक तौर पर होती है और काफी कम मात्रा में ही मिलती है. ऐसे में इसकी अधिक मांग के कारण इसकी कीमत भी बढ़ जाती है. इस बार अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले में ये 14 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेची जा रही है. लोग दूर दूर से इसकी खरीदारी करने के लिए आते हैं.'

लवी मेले में गुच्छी के मिल रहे अच्छे दाम (ETV BHARAT)

स्वास्थ्य के लिए लाभदायक

गुच्छी को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है. ये विटामिन, औषधीय गुणों से भरपूर होती है. इसमें फाइबर, आयरन प्रचूर मात्रा में होता है. इसके सेवन से दिल के रोग भी दूर होते हैं. जानकारी देते हुए आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी रामपुर डॉक्टर प्रदीप शर्मा ने बताया कि, गुच्छी का स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. उनके मुताबिक-

  • आयुर्वेद में इसे कई रोगों के इलाज में उपयोगी माना गया है.
  • ये एंटीऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन और अन्य पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है.
  • जो शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करता है.
  • इसके अलावा, गुच्छी का सेवन दिल की बीमारी, कैंसर और बीपी जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव करने में भी मदद कर सकता है.
  • यह खून की कमी, शारीरिक कमजोरी और हड्डियों से संबंधित समस्याओं के लिए भी लाभकारी है.

किसानों बागवानों तक नहीं पहुंचा बीज

पहाड़ों पर उगने वाली गुच्छी के बारे में आज भी वैज्ञानिक ज्यादा कुछ समझ नहीं पाए हैं. ये कैसे उगती है, कैसे इसके बीज को तैयार किया जाए आज भी ये सवाल बने हुए हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के निदेशालय की स्थापना 1983 में हुई थी. तब से ही गुच्छी के कृत्रिम उत्पादन को लेकर कोशिश की जा रही थी, लेकिन इतने सालों तक असफलता मिलने के बाद खुम्भ अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों को सफलता हासिल हुई है. इससे भारत भी उन देशों की सूची में शामिल हो गया है, जो कृत्रिम तौर पर गुच्छी को उगाने का दावा करते हैं. किसानों-बागवानों तक इस विधि के पहुंचने में अभी कुछ समय लग सकता है. इसके अलावा यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कृत्रिम उत्पादन से तैयार गुच्छी की औषधीय गुणवत्ता बनी रहती है या फिर इन गुणों में कुछ फर्क पड़ता है.

स्थानीय लोगों को होती है अच्छी आमदनी

गुच्छी हर किसी को दिखाई नहीं देती इसके लिए तेज और पारखी नजर की जरूरत होती है. पहाड़ी इलाकों में रहते हुए लोग गुच्छी को इकट्ठा कर बाजार में बेचने से एक अच्छी आय अर्जित करते हैं. इससे उन्हें अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद मिलती है और उनके जीवन स्तर में सुधार आता है. साथ ही, इस प्रकार के प्राकृतिक उत्पादों की बिक्री स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी सकारात्मक योगदान देती है.

पीएम मोदी भी हैं स्वाद के मुरीद

जब पीएम मोदी वर्ष 1998 से पहले हिमाचल के प्रभारी थे, उसी वक्त से वह इसे पसंद करते हैं. पीएम मोदी ने कहा था कि गुच्छी की सब्जी उन्हें काफी पसंद है. इसके अलावा पीएम मोदी के हिमाचल दौरे के दौरान उन्हें इसकी सब्जी परोसी जा चुकी है. इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह के हिमाचल दौरे के दौरान भी गुच्छी का मदरा बनाया गया था. देश की नामी कंपनियां स्थानीय लोगों से गुच्छी 10 से 15 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीद लेती हैं. बाजार में लगातार बढ़ती मांग के कारण स्थानीय लोग गुच्छी ढूंढने के लिए कई दिनों तक जंगलों में डेरा डालकर रहते हैं. पहाड़ी इलाकों में लोग बारिश के बाद लोग गुच्छी की तलाश में निकल जाते हैं. अब होटल्स में भी गुच्छी की अलग अलग डिश परोसी जाती हैं, लेकिन ये काफी महंगी होती है.

ये भी पढ़ें: अब जंगलों को छोड़ घर में भी उगेगी गुच्छी, पीएम मोदी भी हैं इसके शौकीन

ये भी पढ़ें: यहां उगती है सबसे महंगी और पीएम मोदी की पसंदीदा सब्जी, इसे ढूंढने जंगलों का रुख करते हैं ग्रामीण

रामपुर बुशहर: अंतरराष्ट्रीय लवी मेला हिमाचल का मुख्य व्यापारिक मेला है. यहां पर प्राकृतिक और स्थानीय उत्पादों की भारी बिक्री होती है. इस मेले में किन्नौरी राजमाह, पैजा चावल और अन्य स्थानीय उत्पाद आसानी से मिल जाते हैं. स्वाद और गुणवत्ता में इनका कोई मुकाबला नहीं है. इन दिनों लवी मेले में पहाड़ों पर प्राकृतिक तौर पर उगने वाली गुच्छी की भी खूब बिक्री हो रही है. ये अद्वितीय प्रकार का मशरूम केवल हिमालयी क्षेत्रों में ही पाया जाता है. इसे पहाड़ी सब्जी के नाम से भी जाना जाता है.

गुच्छी को खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने के साथ साथ इसे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है. इसे ताजा या सूखा कर भी सब्जी के तौर पर खाया जाता है. इसे पहाड़ों में खुख, टटमोर के नाम से भी जाना जाता है. लवी मेले में किन्नौर से आए व्यापारी रवी नेगी ने बताया कि, 'गुच्छी प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाई जाती है. इसकी महक और स्वाद इसे एक विशेष स्थान दिलाता है. पहाड़ों में उगने वाली ये मशरूम आमतौर पर शिमला, किन्नौर,चंबा, कुल्लू-मनाली, सिरमौर के इलाकों में फरवरी से लेकर अप्रैल तक उगती है. स्थानीय लोग इसे जंगल या पहाड़ी इलाकों से इकट्ठा कर बाजार में अच्छी कीमतों पर बेचते हैं. ये उनकी आय का एक अच्छा स्त्रोत है. इसकी पैदावार प्राकृतिक तौर पर होती है और काफी कम मात्रा में ही मिलती है. ऐसे में इसकी अधिक मांग के कारण इसकी कीमत भी बढ़ जाती है. इस बार अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले में ये 14 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेची जा रही है. लोग दूर दूर से इसकी खरीदारी करने के लिए आते हैं.'

लवी मेले में गुच्छी के मिल रहे अच्छे दाम (ETV BHARAT)

स्वास्थ्य के लिए लाभदायक

गुच्छी को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है. ये विटामिन, औषधीय गुणों से भरपूर होती है. इसमें फाइबर, आयरन प्रचूर मात्रा में होता है. इसके सेवन से दिल के रोग भी दूर होते हैं. जानकारी देते हुए आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी रामपुर डॉक्टर प्रदीप शर्मा ने बताया कि, गुच्छी का स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. उनके मुताबिक-

  • आयुर्वेद में इसे कई रोगों के इलाज में उपयोगी माना गया है.
  • ये एंटीऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन और अन्य पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है.
  • जो शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करता है.
  • इसके अलावा, गुच्छी का सेवन दिल की बीमारी, कैंसर और बीपी जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव करने में भी मदद कर सकता है.
  • यह खून की कमी, शारीरिक कमजोरी और हड्डियों से संबंधित समस्याओं के लिए भी लाभकारी है.

किसानों बागवानों तक नहीं पहुंचा बीज

पहाड़ों पर उगने वाली गुच्छी के बारे में आज भी वैज्ञानिक ज्यादा कुछ समझ नहीं पाए हैं. ये कैसे उगती है, कैसे इसके बीज को तैयार किया जाए आज भी ये सवाल बने हुए हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के निदेशालय की स्थापना 1983 में हुई थी. तब से ही गुच्छी के कृत्रिम उत्पादन को लेकर कोशिश की जा रही थी, लेकिन इतने सालों तक असफलता मिलने के बाद खुम्भ अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों को सफलता हासिल हुई है. इससे भारत भी उन देशों की सूची में शामिल हो गया है, जो कृत्रिम तौर पर गुच्छी को उगाने का दावा करते हैं. किसानों-बागवानों तक इस विधि के पहुंचने में अभी कुछ समय लग सकता है. इसके अलावा यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कृत्रिम उत्पादन से तैयार गुच्छी की औषधीय गुणवत्ता बनी रहती है या फिर इन गुणों में कुछ फर्क पड़ता है.

स्थानीय लोगों को होती है अच्छी आमदनी

गुच्छी हर किसी को दिखाई नहीं देती इसके लिए तेज और पारखी नजर की जरूरत होती है. पहाड़ी इलाकों में रहते हुए लोग गुच्छी को इकट्ठा कर बाजार में बेचने से एक अच्छी आय अर्जित करते हैं. इससे उन्हें अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद मिलती है और उनके जीवन स्तर में सुधार आता है. साथ ही, इस प्रकार के प्राकृतिक उत्पादों की बिक्री स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी सकारात्मक योगदान देती है.

पीएम मोदी भी हैं स्वाद के मुरीद

जब पीएम मोदी वर्ष 1998 से पहले हिमाचल के प्रभारी थे, उसी वक्त से वह इसे पसंद करते हैं. पीएम मोदी ने कहा था कि गुच्छी की सब्जी उन्हें काफी पसंद है. इसके अलावा पीएम मोदी के हिमाचल दौरे के दौरान उन्हें इसकी सब्जी परोसी जा चुकी है. इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह के हिमाचल दौरे के दौरान भी गुच्छी का मदरा बनाया गया था. देश की नामी कंपनियां स्थानीय लोगों से गुच्छी 10 से 15 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीद लेती हैं. बाजार में लगातार बढ़ती मांग के कारण स्थानीय लोग गुच्छी ढूंढने के लिए कई दिनों तक जंगलों में डेरा डालकर रहते हैं. पहाड़ी इलाकों में लोग बारिश के बाद लोग गुच्छी की तलाश में निकल जाते हैं. अब होटल्स में भी गुच्छी की अलग अलग डिश परोसी जाती हैं, लेकिन ये काफी महंगी होती है.

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