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चुनाव विशेष : अजमेर लोकसभा सीट से 5 बार जीते रासा सिंह, अंतिम समय तक रहे किराए के मकान में

Ajmer Lok Sabha Seat, अजमेर लोकसभा क्षेत्र से सबसे अधिक समय तक सांसद रहने का रिकॉर्ड रासा सिंह रावत के नाम है. रावत अजमेर लोकसभा क्षेत्र से पांच बार सांसद रहे. उनका राजनीतिक सफर आसान नहीं था. पहला चुनाव लड़ने से पहले वे तीन बार विधायकी का चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. अजमेर से पहली बार सांसद का चुनाव लड़ने के बाद उनकी किस्मत पलट गई. जानिए यहां के लंबे समय तक सांसद रहे रासा सिंह के बारे में...

Senior BJP Leader Rasa Singh
अजमेर लोकसभा सीट से 5 बार जीते रासा सिंह
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 22, 2024, 8:12 AM IST

समाजसेवी सोमरत्न आर्य ने क्या कहा सुनिए...

अजमेर. लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों की ओर से तैयारियां जोर-जोर से की जा रही हैं. राजस्थान की 25 विधानसभा सीटों पर योग्य उम्मीदवारों के नामों की चर्चा हो रही है, लेकिन भाजपा में एक समय ऐसा भी था जब अजमेर लोकसभा का नाम आते ही रासा सिंह रावत का नाम पहले आता था. रावत राजनीति के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी काफी सक्रिय थे. लयबद्ध भाषण देने का अंदाज और विनम्रता राजनीतिज्ञों में कम ही देखने को मिलती है. रासा सिंह रावत से जो भी पहली बार मिलता, वह बिल्कुल भी अंदाजा नहीं लगा सकता था कि रासा सिंह सांसद हैं.

रासा सिंह रावत के व्यवहार में पद का अहम नहीं था. यही वजह थी कि क्षेत्र के बड़े से बड़े और छोटे-छोटे कार्यकर्ता भी उनसे खुश थे. इधर कांग्रेस के लिए रासा सिंह एक बड़ी चुनौती बने रहे. हालांकि, कांग्रेस के स्थानीय नेता भी उनकी विनम्रता और व्यवहार के कायल थे. रावत को हराना कांग्रेस के लिए काफी मुश्किल बन गया था. हालांकि, 12वीं लोकसभा चुनाव में रावत हार गए थे, लेकिन उन्होंने वापस 13वीं लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी.

पढ़ें : अजमेर : 5 बार सांसद रहे BJP के वरिष्ठ नेता रासा सिंह रावत का निधन...अजमेर की सियासत गमगीन

सादगी पसंद और मृदु भाषी थे रावत : भाजपा के वरिष्ठ नेता सोम रत्न आर्य ने बताया कि अजमेर क्षेत्र से पांच बार जीतने के बाद भी रासा सिंह रावत के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया. वह जिस किसी से भी मिलते, पूरे उत्साह के साथ मिलते और सामने वाला भी उनसे मिलने पर अपनापन महसूस करता था. छोटे-बड़े सबको सम्मान देना और उनसे प्रेमपूर्वक बात करना, रावत के स्वभाव में था.

राजनीति को समझते थे सेवा : पूर्व सांसद रासा सिंह रावत को करीब से जाने वाले और उनके साथ समाज सेवा में रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता सोमरत्न आर्य ने बताया कि रासा सिंह रावत राजनीति को सेवा समझते थे. सांसद होने के बावजूद वह कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे. रावत आर्य समाज अजमेर से रहे हैं. रेड क्रॉस सोसाइटी के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे. इसके अलावा दयानंद बाल सदन के भी प्रधान रहे.

मरते दम तक किराए के मकान में रहे : आर्य बताते हैं कि रासा सिंह रावत का जीवन सादगी से परिपूर्ण था. जब तक वह जिंदा रहे, तब तक वह चांद बावड़ी स्थित आर्य समाज के एक मकान में किराए पर रहे. पांच बार सांसद रहने के बाद भी वह उसी किराए के मकान में रहे. यहीं पर वह लोगों से मिला-जुला करते थे. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में रावत जनसेवा में सक्रिय थे. इस दौरान ही 2021 में उनका निधन हो गया. रावत का निधन अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है. रासा सिंह रावत की पत्नी, तीन बेटे और एक बेटी हैं.

शिक्षक से सांसद तक : अजमेर लोकसभा सीट से पूर्व सांसद रासा सिंह रावत अजमेर के डीएवी कॉलेज में शिक्षक थे और उसके बाद वह हेड मास्टर बन गए थे. सन 1977 में राजनीति में उन्होंने कदम रखा और भीम विधानसभा सीट से पहला चुनाव लड़ा. इसी तरह 1980 और 1984 में भी रावत ने भीम सीट से विधायक का चुनाव लड़ा. इन तीनों ही चुनाव में रावत को शिकस्त मिली थी. इसके बाद सन 1989 में रासा सिंह को भाजपा ने अजमेर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. अजमेर वापस आने के बाद रावत की किस्मत ही पलट गई. रावत 1989 से 2009 में 9वीं से 14वीं लोकसभा तक 5 बार सांसद बने. हालांकि, 12वीं लोकसभा चुनाव में उन्हें शिकस्त मिली थी.

परिसीमन के बाद गड़बड़ाई सियासत : अजमेर लोकसभा सीट का परिसीमन होने के बाद ब्यावर क्षेत्र राजसमंद लोकसभा सीट से मिल गया. इस परिसीमन से अजमेर लोकसभा सीट का सियासी गणित ही बदल गया. पहले ब्यावर क्षेत्र के होने से अजमेर लोकसभा सीट पर रासा सिंह का जबरदस्त दबदबा रहा.

समाजसेवी सोमरत्न आर्य ने क्या कहा सुनिए...

अजमेर. लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों की ओर से तैयारियां जोर-जोर से की जा रही हैं. राजस्थान की 25 विधानसभा सीटों पर योग्य उम्मीदवारों के नामों की चर्चा हो रही है, लेकिन भाजपा में एक समय ऐसा भी था जब अजमेर लोकसभा का नाम आते ही रासा सिंह रावत का नाम पहले आता था. रावत राजनीति के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी काफी सक्रिय थे. लयबद्ध भाषण देने का अंदाज और विनम्रता राजनीतिज्ञों में कम ही देखने को मिलती है. रासा सिंह रावत से जो भी पहली बार मिलता, वह बिल्कुल भी अंदाजा नहीं लगा सकता था कि रासा सिंह सांसद हैं.

रासा सिंह रावत के व्यवहार में पद का अहम नहीं था. यही वजह थी कि क्षेत्र के बड़े से बड़े और छोटे-छोटे कार्यकर्ता भी उनसे खुश थे. इधर कांग्रेस के लिए रासा सिंह एक बड़ी चुनौती बने रहे. हालांकि, कांग्रेस के स्थानीय नेता भी उनकी विनम्रता और व्यवहार के कायल थे. रावत को हराना कांग्रेस के लिए काफी मुश्किल बन गया था. हालांकि, 12वीं लोकसभा चुनाव में रावत हार गए थे, लेकिन उन्होंने वापस 13वीं लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी.

पढ़ें : अजमेर : 5 बार सांसद रहे BJP के वरिष्ठ नेता रासा सिंह रावत का निधन...अजमेर की सियासत गमगीन

सादगी पसंद और मृदु भाषी थे रावत : भाजपा के वरिष्ठ नेता सोम रत्न आर्य ने बताया कि अजमेर क्षेत्र से पांच बार जीतने के बाद भी रासा सिंह रावत के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया. वह जिस किसी से भी मिलते, पूरे उत्साह के साथ मिलते और सामने वाला भी उनसे मिलने पर अपनापन महसूस करता था. छोटे-बड़े सबको सम्मान देना और उनसे प्रेमपूर्वक बात करना, रावत के स्वभाव में था.

राजनीति को समझते थे सेवा : पूर्व सांसद रासा सिंह रावत को करीब से जाने वाले और उनके साथ समाज सेवा में रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता सोमरत्न आर्य ने बताया कि रासा सिंह रावत राजनीति को सेवा समझते थे. सांसद होने के बावजूद वह कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे. रावत आर्य समाज अजमेर से रहे हैं. रेड क्रॉस सोसाइटी के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे. इसके अलावा दयानंद बाल सदन के भी प्रधान रहे.

मरते दम तक किराए के मकान में रहे : आर्य बताते हैं कि रासा सिंह रावत का जीवन सादगी से परिपूर्ण था. जब तक वह जिंदा रहे, तब तक वह चांद बावड़ी स्थित आर्य समाज के एक मकान में किराए पर रहे. पांच बार सांसद रहने के बाद भी वह उसी किराए के मकान में रहे. यहीं पर वह लोगों से मिला-जुला करते थे. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में रावत जनसेवा में सक्रिय थे. इस दौरान ही 2021 में उनका निधन हो गया. रावत का निधन अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है. रासा सिंह रावत की पत्नी, तीन बेटे और एक बेटी हैं.

शिक्षक से सांसद तक : अजमेर लोकसभा सीट से पूर्व सांसद रासा सिंह रावत अजमेर के डीएवी कॉलेज में शिक्षक थे और उसके बाद वह हेड मास्टर बन गए थे. सन 1977 में राजनीति में उन्होंने कदम रखा और भीम विधानसभा सीट से पहला चुनाव लड़ा. इसी तरह 1980 और 1984 में भी रावत ने भीम सीट से विधायक का चुनाव लड़ा. इन तीनों ही चुनाव में रावत को शिकस्त मिली थी. इसके बाद सन 1989 में रासा सिंह को भाजपा ने अजमेर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. अजमेर वापस आने के बाद रावत की किस्मत ही पलट गई. रावत 1989 से 2009 में 9वीं से 14वीं लोकसभा तक 5 बार सांसद बने. हालांकि, 12वीं लोकसभा चुनाव में उन्हें शिकस्त मिली थी.

परिसीमन के बाद गड़बड़ाई सियासत : अजमेर लोकसभा सीट का परिसीमन होने के बाद ब्यावर क्षेत्र राजसमंद लोकसभा सीट से मिल गया. इस परिसीमन से अजमेर लोकसभा सीट का सियासी गणित ही बदल गया. पहले ब्यावर क्षेत्र के होने से अजमेर लोकसभा सीट पर रासा सिंह का जबरदस्त दबदबा रहा.

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