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'नशा नहीं रोजगार दो' आंदोलन के 40 साल, चौखुटिया में शुरू हुई मुहिम, आज भी प्रासंगिक हैं इसके नारे

Nasha Nahi Rojgar Do Movement, Uttarakhand historic Movement 'नशा नहीं रोजगार दो' आंदोलन के 40 साल ऐतिहासिक रहे हैं. इस आंदोलन में पहाड़ के संसाधनों के साथ ही युवाओं पर फोकस किया गया था. ये आंदोलन चौखुटिया से शुरू हुआ था. इस आंदोलन के नारे आज भी प्रासंगिक लगते हैं.

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'नशा नहीं रोजगार दो' आंदोलन के 40 साल
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 27, 2024, 6:13 PM IST

देहरादून: 'नशा नहीं रोजगार दो, काम का अधिकार दो' उत्तराखंड का एक ऐतिहासिक जन आंदोलन रहा. 2 फरवरी को 'नशा नहीं रोजगार दो, काम का अधिकार दो' आंदोलन को 40 साल पूरे होने जा रहे हैं. 'नशा नहीं, रोजगार दो' आंदोलन की शुरुआत 2 फरवरी 1984 को अल्मोड़ा के एक छोटे से गांव घुंगोली- बसभीड़ा (चौखुटिया) से शुरू हुई थी. इन 40 वर्षों में इस जन आंदोलन में अलग अलग मुद्दों पर काम किया गया. इस आंदोलन की वर्षगांठ पर उत्तराखंड की ज्वलंत समस्याओं पर सामूहिक विचार विमर्श किया जाएगा.

नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन का नेतृत्व आंदोलन के शुरुआती दौर में प्रखर युवा आंदोलन की प्रतीक रही उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के हाथों में था. बसभीड़ा, चौखुटिया, मासी, भिक्यासैंण, सल्ट, स्यालदे, द्वाराहाट, सोमेश्वर, रामनगर, गैरसैंण, गरमपानी, भवाली, रामगढ़, नैनीताल आदि जैसे क्षेत्रों में आंदोलन का जबरदस्त प्रभाव रहा. इस आंदोलन में 'जो शराब पीता है परिवार का दुश्मन है', 'जो शराब बेचता है समाज का दुश्मन है, जो शराब बिकवाता है देश का दुश्मन है, नशे का प्रतिकार न होगा, पर्वत का उद्धार न होगा' जैसे नारे गूंजते थे.

पढ़ें- नई शराब नीति के खिलाफ कांग्रेस का प्रदर्शन, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार को घेरा

2 फरवरी 1984 को बसभीड़ा में हुई आंदोलन की पहली जनसभा में सर्वसम्मति से क्षेत्र में हर हाल में जुए व शराब पर रोक लगाने की घोषणा के साथ ही आंदोलन शुरू हुआ. इससे एक दिन पहले चौखुटिया में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के नेताओं ने आबकारी विभाग के अधिकारियों को गाड़ी में अवैध शराब ले जाते हुए पकड़ा. इसके साथ ही आंदोलनकारियों के जत्थों ने स्वयं नशे के तस्करों के यहां छापे डालने, अवैध मादक पदार्थों के गोदाम ध्वस्त करने और तस्करों का मुंह काला कर बाजार में घुमाना शुरू किया. 7 फरवरी 1984 को चौखुटिया में हजारों आंदोलनकारियों ने शराब के तस्करों को स्वयं गिरफ्तार कर उनके मुंह काले कर बाजार में घुमाया. 26 फरवरी 1984 को ब्लॉक मुख्यालय चौखुटिया में तत्कालीन जिलाधिकारी एवं जिला न्यायाधीश की उपस्तिथि में आयोजित वृहद कानूनी सहायता शिविर में हजारों लोगों ने नगाड़े निशानों के साथ प्रदर्शन कर जिला अधिकारी अल्मोड़ा को शराब के पुख्यात तस्करों को गिरफ्तार न करने पर सबने अपनी गिरफ्तारी देने की घोषणा की थी. इस प्रदर्शन के डर से तमाम नशे के बड़े व्यापारी रामगंगा नदी के किनारे भागते देखे गए. यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा.

पढ़ें- राम मंदिर के बाद साधु संतों में मथुरा और ज्ञानवापी की जगी उम्मीद, 2024 में इन्हें जिताने की अपील

26 मार्च 1984 को जिला मुख्यालय अल्मोड़ा में आंदोलनकारियों के विरोध के बावजूद हो रही शराब की नीलामी का जबरदस्त प्रतिकार हुआ. इसमें आंदोलन के 40 से अधिक नेता गिरफ्तार किए गए. इस दौरान घुंगोली, बसभीड़ा, बाखली, चौखुटिया क्षेत्र से आई महिलाओं ने कलेक्ट्रेट अल्मोड़ा में सारे सुरक्षा अवरोध ध्वस्त कर दिए. जिस कारण नीलामी रोक दी गई. नीलामी में आए शराब व्यवसायी भाग गए. 31 मई 1984 को तत्कालीन सांसद हरिश रावत के साथ हुए टकराव में 12 आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज हुए. जिसके बाद 2 जून 1984 को चौखुटिया, 17 जून 1984 को नैनीताल में विशाल प्रर्दशन हुए. यह मुकदमे 12 वर्षों तक रानीखेत न्यायलय में चलते रहे.

पढ़ें- गणतंत्र दिवस पर बाबा रामदेव बोले- ज्ञानवापी पर दावा छोड़ें मुस्लिम, नीतीश को दिया सुरक्षित भविष्य का नुस्खा

'नशा नहीं रोजगार दो, काम का अधिकार दो' का नारा आज भी प्रासंगिक बनकर खड़ा है. उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण के इस दौर में भी युवा बेरोजगार है. बेरोजगारी के कारण युवा नशे के आदी हो रहे हैं. उनका रुझान इस ओर बढ़ रहा है. हताशा, निराशा युवा नशे के दलदल में धंसते जा रहे हैं.

देहरादून: 'नशा नहीं रोजगार दो, काम का अधिकार दो' उत्तराखंड का एक ऐतिहासिक जन आंदोलन रहा. 2 फरवरी को 'नशा नहीं रोजगार दो, काम का अधिकार दो' आंदोलन को 40 साल पूरे होने जा रहे हैं. 'नशा नहीं, रोजगार दो' आंदोलन की शुरुआत 2 फरवरी 1984 को अल्मोड़ा के एक छोटे से गांव घुंगोली- बसभीड़ा (चौखुटिया) से शुरू हुई थी. इन 40 वर्षों में इस जन आंदोलन में अलग अलग मुद्दों पर काम किया गया. इस आंदोलन की वर्षगांठ पर उत्तराखंड की ज्वलंत समस्याओं पर सामूहिक विचार विमर्श किया जाएगा.

नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन का नेतृत्व आंदोलन के शुरुआती दौर में प्रखर युवा आंदोलन की प्रतीक रही उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के हाथों में था. बसभीड़ा, चौखुटिया, मासी, भिक्यासैंण, सल्ट, स्यालदे, द्वाराहाट, सोमेश्वर, रामनगर, गैरसैंण, गरमपानी, भवाली, रामगढ़, नैनीताल आदि जैसे क्षेत्रों में आंदोलन का जबरदस्त प्रभाव रहा. इस आंदोलन में 'जो शराब पीता है परिवार का दुश्मन है', 'जो शराब बेचता है समाज का दुश्मन है, जो शराब बिकवाता है देश का दुश्मन है, नशे का प्रतिकार न होगा, पर्वत का उद्धार न होगा' जैसे नारे गूंजते थे.

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2 फरवरी 1984 को बसभीड़ा में हुई आंदोलन की पहली जनसभा में सर्वसम्मति से क्षेत्र में हर हाल में जुए व शराब पर रोक लगाने की घोषणा के साथ ही आंदोलन शुरू हुआ. इससे एक दिन पहले चौखुटिया में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के नेताओं ने आबकारी विभाग के अधिकारियों को गाड़ी में अवैध शराब ले जाते हुए पकड़ा. इसके साथ ही आंदोलनकारियों के जत्थों ने स्वयं नशे के तस्करों के यहां छापे डालने, अवैध मादक पदार्थों के गोदाम ध्वस्त करने और तस्करों का मुंह काला कर बाजार में घुमाना शुरू किया. 7 फरवरी 1984 को चौखुटिया में हजारों आंदोलनकारियों ने शराब के तस्करों को स्वयं गिरफ्तार कर उनके मुंह काले कर बाजार में घुमाया. 26 फरवरी 1984 को ब्लॉक मुख्यालय चौखुटिया में तत्कालीन जिलाधिकारी एवं जिला न्यायाधीश की उपस्तिथि में आयोजित वृहद कानूनी सहायता शिविर में हजारों लोगों ने नगाड़े निशानों के साथ प्रदर्शन कर जिला अधिकारी अल्मोड़ा को शराब के पुख्यात तस्करों को गिरफ्तार न करने पर सबने अपनी गिरफ्तारी देने की घोषणा की थी. इस प्रदर्शन के डर से तमाम नशे के बड़े व्यापारी रामगंगा नदी के किनारे भागते देखे गए. यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा.

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26 मार्च 1984 को जिला मुख्यालय अल्मोड़ा में आंदोलनकारियों के विरोध के बावजूद हो रही शराब की नीलामी का जबरदस्त प्रतिकार हुआ. इसमें आंदोलन के 40 से अधिक नेता गिरफ्तार किए गए. इस दौरान घुंगोली, बसभीड़ा, बाखली, चौखुटिया क्षेत्र से आई महिलाओं ने कलेक्ट्रेट अल्मोड़ा में सारे सुरक्षा अवरोध ध्वस्त कर दिए. जिस कारण नीलामी रोक दी गई. नीलामी में आए शराब व्यवसायी भाग गए. 31 मई 1984 को तत्कालीन सांसद हरिश रावत के साथ हुए टकराव में 12 आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज हुए. जिसके बाद 2 जून 1984 को चौखुटिया, 17 जून 1984 को नैनीताल में विशाल प्रर्दशन हुए. यह मुकदमे 12 वर्षों तक रानीखेत न्यायलय में चलते रहे.

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