हैदराबादः ऑटिज्म एक न्यूरो डेवलपमेंटल विकार है जो सामाजिक संपर्क, संचार और व्यवहार में कठिनाइयां उत्पन्न करता है. बच्चों में सही समय से इसके प्रबंधन कर लिए प्रयास करना बेहद जरूरी होता है, जिससे ज्यादा से ज्यादा ऑटिस्टिक बच्चे बेहतर व कुछ हद तक आत्मनिर्भर जीवन जी सके. जानकार मानते हैं कि Autism का प्रभाव प्रत्येक बच्चे पर अलग-अलग होता है. इसलिए उन्हें इस विकार के प्रबंधन की रणनीतियां भी भिन्न हो सकती हैं.
सही समय पर सही प्रयासों से मिल सकता है फायदा : दिल्ली के मनोचिकित्सक डॉ आशीष सिंह बताते हैं कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर/एएसडी एक विकासात्मक विकार है, जिससे पीड़ित लोगों में सामाजिक संपर्क व संचार में, बोलने में व व्यवहार संबंधी समस्याएं देखने में आती है. यह एक जेनेटिकल विकार है जिसमें पीड़ित की अवस्था व गंभीरता के आधार पर कम या ज्यादा तथा अलग-अलग लक्षण नजर आ सकते हैं. इसका पूरी तरह से इलाज संभव नहीं है, लेकिन चूंकि इसका पता बचपन में ही चल जाता है ऐसे में यदि समय से पीड़ित की अवस्था के आधार पर सही रणनीति बनाकर थेरेपी व जरूरी प्रशिक्षण तथा प्रबंधन के लिए प्रयासों को शुरू कर दिया जाए तो ना सिर्फ हल्के लक्षण वाले बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने तथा काफी हद तक सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार किया जा सकता है, वहीं ऐसे बच्चे जिनमें गंभीर लक्षण नजर आते हैं उनकी अवस्था को बेहतर करने के लिए प्रयास किया जा सकता है. गौरतलब है कि ऑटिज्म के साथ पीड़ित में कई प्रकार की चिकित्सीय स्थितियां भी नजर आती हैं जिनमें दौरे, नींद की समस्याएं, ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार (एडीएचडी) और जठरांत्र संबंधी विकार शामिल हैं.
प्रबंधन के लिए जरूरी बातें
वह बताते हैं कि Autism से पीड़ित बच्चों की विशेष आवश्यकताओं को समझकर उनके लिए प्रबंधन नीतियां बनाकर उनका पालन करने तथा सही समय पर सही दिशा में प्रयासों की शुरुआत से आटिस्टिक बच्चों को एक बेहतर और स्वावलंबी जीवन जीने में मदद की जा सकती है. वह बताते हैं कि Autism के प्रबंधन में कुछ बातों व सावधानियों का ध्यान रखना काफी लाभकारी हो सकता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
शुरुआती पहचान और हस्तक्षेप
ऑटिज्म के संकेतों की शुरुआती पहचान अत्यंत महत्वपूर्ण है. जब बच्चे में Autism के संकेत दिखाई दें, तो जल्द से जल्द विशेषज्ञ से परामर्श लें. शुरुआती हस्तक्षेप से बच्चे की संज्ञानात्मक और सामाजिक कौशल में सुधार करने में मदद मिलती है.
व्यक्तिगत शिक्षा योजना
Autism से प्रभावित प्रत्येक बच्चे के लिए एक व्यक्तिगत शिक्षा योजना बनाना आवश्यक है. व्यक्तिगत शिक्षा योजना या IEP एक विशेष दस्तावेज होता है जिसमें बच्चे की विशेष आवश्यकताओं और लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए शिक्षण और समर्थन की योजना बनाई जाती है. यह योजना बच्चे की शैक्षिक और व्यवहारिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
ऑटिज्म प्रबंधन में विभिन्न प्रकार की थेरेपी उपयोगी हो सकती हैं
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संरचित वातावरण
Autism प्रभावित बच्चों को एक संरचित और नियमित वातावरण में अधिक आराम महसूस होता है. दिनचर्या में स्थिरता और स्पष्टता बच्चे को सुरक्षा और स्थिरता का अनुभव कराती है, जिससे वे बेहतर ढंग से सीख सकते हैं और व्यवहार कर सकते हैं. ऐसे में उनके लिए इस तरह का वातावरण तैयार करने के लिए प्रयास करना चाहिए.
माता-पिता और परिवार का सहयोग
माता-पिता और परिवार का सहयोग ऑटिज़्म प्रबंधन में अत्यंत महत्वपूर्ण है. परिवार के सदस्य बच्चे की विशेष आवश्यकताओं को समझकर और उन्हें उचित समर्थन देकर उनकी प्रगति में योगदान कर सकते हैं. बहुत जरूरी है कि ऑटिस्टिक बच्चों के माता-पिता ऑटिज्म के बारे में जानकारी रखते हो और समर्थन समूहों में प्रतिभाग करते हों. इससे उन्हे कई आपात अवस्थाओं में व्यवहार तथा बच्चों की देखभाल के तरीकों के बारे में जानकारी मिलेगी.
स्कूल और समुदाय का समर्थन
स्कूल और समुदाय का समर्थन भी ऑटिज्म प्रबंधन में बहुत महत्वपूर्ण है. ऐसे बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो बहुत जरूरी है कि उनके शिक्षकों और सहपाठियों को Autism के बारे में जागरूक किया जाए. जिससे वे बच्चे के प्रति सहानुभूति और समझदारी दिखा सकें. विशेषकर स्कूल में शिक्षकों की मदद और संसाधनों की उपलब्धता से बच्चे की शिक्षा में सुधार हो सकता है.
खेल और सामाजिक गतिविधियां
Autism प्रभावित बच्चों को खेल और सामाजिक गतिविधियों में शामिल करना उनके सामाजिक कौशल को बढ़ाने में सहायक हो सकता है. इससे उन्हें सामाजिक संपर्क बनाने और समझने में मदद मिलती है.
तकनीकी सहायता
वर्तमान समय में, कई तकनीकी उपकरण और एप्लिकेशन उपलब्ध हैं जो ऑटिज़्म प्रबंधन में सहायक हो सकते हैं. इन उपकरणों का उपयोग बच्चे की शिक्षा और संचार को सुधारने में किया जा सकता है.
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