कोरबा: लोकसभा चुनाव में इस बार भावी सांसदों के किस्मत की चाभी युवाओं के हाथ में है. जी हां चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि इस चुनाव में युवाओं का दिल, जिस प्रत्याशी के लिए धड़केगा, उसकी किस्मत खुल जाएगी.
गेमचेंजर साबित हो सकते हैं युवा : दरअसल, प्रदेश में कुल 2 करोड़ 5 लाख 13 हजार 252 मतदाता 11 लोकसभा सीटों के पर मतदान करेंगे. इनमें 18 से लेकर 29 वर्ष तक के युवा मतदाताओं की संख्या 52 लाख 89 हजार 074 है, जो कि कुल मतदाताओं का 25.78 फीसदी है. अब इतने वोट किसी भी प्रत्याशी की किस्मत पलटने के लिए काफी है. प्रदेश में कई लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले चुनाव में काफी करीबी मुकाबला देखने को मिला था. वहां भी इस वर्ष युवा मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है. प्रत्येक सीट का अलग-अलग आंकलन करें, तो युवा निश्चित तौर पर गेमचेंजर बन सकते हैं.
चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं युवा वर्ग: बात अगर कोरबा लोकसभा क्षेत्र की करें तो यहां 16 लाख 14 हजार 885 मतदाता हैं. इनमें 8 लाख 13 हजार 56 महिला वोटर्स हैं, जबकि पुरुष मतदाताओं की संख्या 8 लाख एक हजार 777 है. इसमें 91 हजार 605 की संख्या में युवा मतदाता हैं. आंकड़ों के लिहाज से उम्मीदवारों की जीत में महिला और युवा वोटर्स अहम रोल अदा करेंगे. कोरबा लोकसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला कांग्रेस की उम्मीदवार ज्योत्सना महंत और भाजपा प्रत्याशी सरोज पाण्डेय के बीच है. आठ विधानसभा वाले लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव में ज्योत्सना महंत ने बीजेपी के ज्योतिनंद दुबे को महज 26 हजार वोटों से परास्त किया था.
फर्स्ट टाइम वोटरों की संख्या 5 लाख से अधिक: प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ से अधिक है. इनमें 18 से 19 वर्ष की आयु वर्ग वाले मतदाताओं की संख्या 5 लाख 77 हजार 184 है, जबकि 20 साल से लेकर 29 साल वाले मतदाताओं की संख्या 47 लाख 11 हजार 890 है. अब ये युवा मतदाता किस प्रत्याशी से प्रभावित हैं? कौन सा दल इन्हें रिझाने में कामयाब रहता है? ये तो आने वाले समय में ही तय होगा, लेकिन ये तय है कि इन युवा वोटर्स का मत जिस प्रत्याशी के पक्ष में जाएगा, वह निश्चित तौर पर जीत के बेहद करीब होगा.
सड़कों की होनी चाहिए मरम्मत: कोरबा के युवा वोटरों का मन टटोलने के लिए ईटीवी भारत ने कई युवाओं से बातचीत की. बातचीत के दौरान शहर के पीजी कॉलेज के स्टूडेंट त्रिशान चौहान ने कहा कि, "जनप्रतिनिधि से उम्मीद है कि वह सड़कों की स्थिति सुधारे. जब मैं कॉलेज आता हूं तो सड़क पर ट्रक चलते हैं. सड़कें बनती हैं, लेकिन फिर खराब हो जाती हैं. इस ओर ध्यान देना चाहिए. हमारे कैंपस में एक जिम है, जो काफी जर्जर हो चुका है. सामान भी पुराने हैं, इसे ठीक करने के लिए हमने कई बार लेटर लिखा, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा. नेता चुनाव जीतने के बाद इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें कुछ दिखता ही नहीं. बार-बार लेटर लिखना पड़ता है."
ऐसा सांसद चाहिए जो सक्रिय रहे: वहीं, बीए के स्टूडेंट शिव जासवाल का कहना है कि, "सबसे पहले तो जनप्रतिनिधियों को युवाओं की बात सुननी चाहिए. युवाओं और बड़ों के बीच में जेनरेशन गैप होता है. युवाओं में क्षमता तो है, लेकिन उन्हें सुना ही नहीं जाता. युवाओं की सोच विकासशील होती है. उनमें कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है, लेकिन लोग युवा पीढ़ी को समझ ही नहीं पाते हैं. पढ़ाई के बाद रोजगार के उचित अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए. एक नेता को युवाओं का जीवन बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए. हमें ऐसा सांसद चाहिए जो हमारे बीच सक्रिय रहे, हमारी समस्याओं का समाधान करें."
पढ़ाई के बाद नौकरी की व्यवस्था हो: कंप्यूटर के छात्र तेजस्वी सिंह का कहना है कि, "वर्तमान में पुरुषों से ज्यादा महिला जनप्रतिनिधि अच्छा काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें चाहिए कि युवाओं के पक्ष में काम करें. युवाओं को ध्यान में रखकर योजनाओं का निर्माण करें. हम देखते हैं कि पढ़ाई के बाद एक पोस्ट के लिए सैकड़ों फॉर्म भरे जाते हैं. सरकारी नौकरी के लिए मरामारी रहती है. युवाओं को रोजगार नहीं मिलता, इसकी व्यवस्था की जानी चाहिए."
निश्चित तौर पर युवा साबित होंगे गेम चेंजर: इस बारे में हेल्प सेंटर समिति के अध्यक्ष और सोशल साइंटिस्ट डॉ जफर अली ने कहा कि, "सिर्फ कोरबा लोकसभा की ही बात करें, तो वर्तमान में यहां 91000 युवा मतदाता हैं, पिछली बार जीत का अंतर सिर्फ और सिर्फ 26000 था, जबकि इस बार कोरबा लोकसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 16 लाख है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि युवा मतदाता जिसे वोट करेंगे, जीत उसे मिलेगी. लेकिन यह भी समझना होगा कि युवाओं को क्या चाहिए? जो-जो नए लड़के पहली वार वोट करते हैं, उन्हें उतनी समझ नहीं होती. वर्तमान में जिस तरह का माहौल चल रहा है. उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कई बार वोटों का ध्रुवीकरण भी होता है. युवा समझदार भी हैं. दोनों राष्ट्रीय दलों में, जो भी पार्टी युवाओं को रिझाने में कामयाब रहेगी. उसे इस चुनाव में बेहद लाभ मिलेगा."यानी कि इस बार युवा वोटर्स पर जनप्रतिनिधियों का पूरा फोकस रहने वाला है. क्योंकि ये गेमचेंजर साबित हो सकते हैं.