देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) में शादी और उत्तराधिकारी को लेकर भी कई तरह के फैसले लिए गए हैं. उत्तराखंड विधानसभा में 6 फरवरी को धामी सरकार ने ड्राफ्ट को विधानसभा पटल पर रखा था, जिस पर चर्चा हुई. चर्चा 7 फरवरी को भी जारी रही. यूसीसी में शादी की उम्र को न्यूनतम रखा गया है. जबकि हर शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है. इस कानून के राज्य में लागू होने के बाद उत्तराधिकारी को लेकर भी प्रावधान स्पष्ट किया गया है.
बहुविवाह पर लगेगी रोक: यूनिफॉर्म सिविल कोड में कई तरह के प्रावधान दिए गए हैं. इसमें तलाक, शादी और बच्चों के उत्तराधिकार को लेकर भी सीमाएं तय की गई हैं. बिना तलाक के किसी तरह की कोई शादी, महिला या पुरुष में से कोई भी नहीं कर सकेगा. यानी प्रदेश में पूरी तरह से बहुविवाह पर रोक लग जाएगी. हालांकि, फिलहाल इन सभी कानून से जनजातियों को बाहर रखा गया है.
शादी को लेकर मुख्य बिंदु: शादी को लेकर भी उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल में कई तरह के बदलाव किए गए हैं. किसी भी धार्मिक मान्यताओं, प्रथाओं, संस्कारों, अनुष्ठानों से किया विवाह मान्य होगा. हालांकि, लड़का और लड़की की उम्र में किसी तरह की कोई तब्दीली नहीं की गई है. लड़की की न्यूनतम उम्र 18 साल और लड़के की न्यूनतम उम्र 21 साल शादी के लिए पहले से ही अनिवार्य है और वही लागू रहेगी. लेकिन शादी का रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होगा. बिना रजिस्ट्रेशन वाली शादी पूरी तरह से अमान्य होगी. पंजीकरण के बाद ही सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया जा सकेगा. विवाह पंजीकरण के लिए महानिबंधक, निबंधक, उपनिबंधक और अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी. महिला या पुरुष की पहली शादी अमान्य नहीं हो जाती तब तक कोई भी दूसरी शादी नहीं कर सकता है. इसके अलावा अगर पति या पत्नी में से किसी की मृत्यु हो जाती है तो माता-पिता की देखभाल भी जीवित को करनी होगी.
कोर्ट में एक साल तक दायर नहीं होगी तलाक की याचिका: वहीं, शादी के 1 साल बाद तक किसी भी तरह की तलाक की याचिका कोई भी न्यायालय में दायर नहीं कर पाएगा. कानून में यह साफ कहा गया है कि शादी के 1 साल तक इस तरह की कोई भी याचिका स्वीकार नहीं होगी. हां इतना जरूर है कि अगर दोनों में से किसी एक को कोई असाधारण कष्ट या अन्य कोई दिक्कत होती है तो वह 1 साल से पहले भी याचिका दायर कर सकता है. हालांकि, कानून में यह भी कहा गया है कि अगर जांच के दौरान 1 साल से पहले दायर किए गए व्यक्ति के बारे में जानकारी झूठी या षड्यंत्र या छिपाकर कोई भी बात न्यायालय में पेश की गई है तो कोर्ट व्यक्ति के ऊपर अपने मुताबिक कार्रवाई कर सकता है. इतना ही नहीं, 1 साल बाद अगर वह व्यक्ति कोर्ट में दोबारा से याचिका दायर करता है तो उसको निरस्त भी किया जा सकता है. इसके साथ ही अगर 1 साल के भीतर कोई बच्चा पति-पत्नी से होता है तो कोर्ट बच्चे को ध्यान में रखकर भी अपना पक्ष या फैसला सुनाएगी.
तलाक को लेकर ये रहेंगे मुख्य नियम-
- यूसीसी लागू होने के बाद ये नियम सभी पुराने विवाह और नए विवाह पर लागू होंगे.
- यूसीसी में शामिल अधिनियम के अलावा किसी भी अन्य प्रथा, रूढ़ि, परंपरा के तहत तलाक मान्य नहीं होगा. केवल न्यायिक प्रक्रिया से ही तलाक मान्य होगा.
- मुस्लिम वर्ग में पूरी तरह से तीन तलाक जैसी व्यवस्था खत्म हो जाएगी. अगर ऐसे में कोई शादी करता है तो उसे किसी भी तरह की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा.
- UCC में पत्नी को भी पति के बराबर अधिकार दिया गया है.
- अब पत्नी चाहेगी तो पति से तलाक ले सकेगी. अगर विवाह के बाद पति की एक से अधिक पत्नी हो, वो दुष्कर्म का दोषी हो, क्रूरता करता हो, पति किसी अन्य के साथ संभोग, या पत्नी के साथ लगातार दो वर्ष तक दूरी बनाकर रखी गई हो तो महिला इस आधार पर तलाक ले सकती है.
- वहीं, आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पति-पत्नी को मिलकर तलाक की याचिका प्रस्तुत करनी होगी. उसमें ये बताना होगा कि वो दोनों एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं. दोनों की तलाक के लिए आपसी सहमति होनी चाहिए. तलाक की याचिका प्रस्तुत करने के छह महीने के बाद और उस तारीख से 18 महीने के पूर्व दोनों पक्षों की ओर से अगर याचिका वापस नहीं ली गई तो न्यायालय दोनों पक्षों को सुनने व जांच के बाद तलाक का आदेश जारी कर देगा. न्यायालय विवाह के बच्चों के हित व कल्याण का भी ध्यान रखेगा.
- हालांकि, यूसीसी में ये प्रावधान किया गया कि विवाह के एक वर्ष की अवधि बीतने से पहले तलाक की याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी. कुछ विशेष कारण- जैसे याचिताकर्ता के लिए असाधारण कष्ट या याचिताकर्ता के साथ असाधारण दुराचारता पर ही न्यायालय विवाह की एक वर्ष की समाप्ति के पहले तलाक की याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति दे सकेगा. हालांकि, न्यायालय उस स्थिति में याचिका निरस्त कर सकता है अगर कोर्ट को पता चले कि तथ्यों को छिपाकर याचिका दायर की गई है.
- भरण पोषण और स्थायी निर्वाहिका का अधिकार पति व पत्नी दोनों को होगा.
शादी और तलाक को लेकर अगर नहीं माने नियम तो ये होगी सजा: ये बात ध्यान देने योग्य है कि अगर शादी निर्धारित आयु का मानक पूरा किए बिना या प्रतिबंधित रिश्तों में की जाती है तो छह माह की जेल का प्रावधान रखा गया है. इसके साथ 50 हजार का जुर्माना भी भरना होगा. सजा के तौर पर दोनों भी दिए जा सकते हैं. जेल की सजा एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है. इसके साथ ही तलाक के मामलों में अगर यूसीसी प्रावधानों के इतर किसी प्रथा, रूढ़ि या परंपरा के तहत तलाक दिया गया तो तीन साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है. वहीं, पत्नी होने के बावजूद फिर से शादी करने वाले व्यक्ति को तीन साल जेल, एक लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है. जेल की सजा छह महीने तक बढ़ाई जा सकती है.
उत्तराधिकार के लिए विशेष प्रावधान: यूसीसी के उत्तराखंड में लागू होने के बाद मुस्लिम महिलाएं भी बच्चा गोद ले पाएंगी. कानून के मुताबिक अगर पत्नी घर में एकलौती है और उसकी किसी कारण मौत हो जाती है तो पति की लड़की के माता-पिता की देखभाल करेगा. इसके साथ ही कानून में यह भी कहा गया है कि माता-पिता का अपना और गोद लिया बच्चा, मां-बाप की संपत्ति का बराबर का हकदार होगा. इसके साथ ही लड़कियों को भी पुरानी संपत्ति में अधिकार मिलेगा. इस कानून के बाद बुजुर्ग माता-पिता के लिए भी कई तरह के बेहतर प्रावधान किए गए हैं.
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