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ताड़वयली गांव से आए थे छत्तीसगढ़ में नक्सली, ग्रामीणों ने देखा था पहला एनकाउंटर, ईटीवी भारत ने जाना मौजूदा हाल

छत्तीसगढ़ के कांकेर सीमा पर ताड़वयली गांव अब बदल रहा है.ऐसा माना जाता है कि इस जगह पर पहला नक्सली एनकाउंटर हुआ था.

Tadavayli village
नक्सलियों की राजधानी में पहुंचा ईटीवी भारत (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 27, 2024, 6:48 PM IST

Updated : Nov 27, 2024, 9:54 PM IST

कांकेर : प्रकृति की गोद में बसा बस्तर पिछले कई दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. बस्तर अपने अंदर प्रकृति की सुंदरता को समेटे है,लेकिन बस्तर की सुंदरता में नक्सलवाद एक बदनुमा दाग की तरह है.आज भी बस्तर के कई इलाकों में नक्सलवाद के निशान दिखते हैं.ईटीवी भारत की टीम बस्तर में उस जगह पर पहुंची, जहां पर प्रदेश के इतिहास की पहली नक्सली मुठभेड़ हुई थी. भले ही पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से नक्सलवाद की शुरुआत हुई हो,लेकिन इससे सबसे ज्यादा नुकसान छत्तीसगढ़ को हुआ है. आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग के सभी जिले नक्सलवाद का आतंक बरसों से झेलते आ रहे हैं. इस दौरान बहुत से जवानों ने शहादत दी. कई बेगुनाह आदिवासियों के खून से बस्तर की धरती लाल हुई.

नक्सलियों ने बना ली थी राजधानी : बस्तर में नक्सलवाद की शुरुआत कहां से हुई ये जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम उत्तर बस्तर कांकेर जिले के अंतिम छोर पर बसे गांव ताड़वयली पहुंची. ये वो गांव है, जहां से महाराष्ट्र की सीमा शुरु होती है. कहा जाता है कि इसी इलाके से बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों ने प्रवेश किया था. 90 के दशक के आसपास इस इलाके में नक्सलियों के कदम पड़े. इसी इलाके से इनकी सक्रियता की खबरें निकलकर सामने आने लगी. घने जंगल और छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र की सीमा लगे होने के कारण नक्सली,अबूझमाड़ तक पहुंच कर इसे मजबूत किला बनाने लगे. जिसे नक्सलियों की राजधानी के नाम से भी जाना जाता है.

कांकेर के नक्सल प्रभावित इलाके की कहानी (ETV BHARAT)


पहले नक्सली एनकाउंटर का गवाह है गांव : नक्सली जंगलों में डेरा डालकर नक्सल घटनाओं को अंजाम देने लगे. पुलिस तक नक्सलियों की खबरें निकल कर सामने आने लगी. इस दौरान छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार नक्सली और पुलिस के बीच मुठभेड़ छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के अंतिम छोर पर बसे गांव ताड़वयली में हुई, जहां से महाराष्ट्र की सीमा शुरु होती है. यहीं नदी के पास नक्सली डेरा डालकर खाना पका रहे थे. पुख्ता इनपुट मिलने के बाद पुलिस के जवान पहुंचे और दोनों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई. जिसमें एक बड़ा नक्सली लीडर गणपति मारा गया. बाकी नक्सली मौके से भागने में कामयाब रहे. यह नक्सलियों के छत्तीसगढ़ के इलाके में प्रवेश करने के बाद पहली मुठभेड़ थी.

बड़ा नक्सली लीडर हुआ था ढेर : नक्सली लीडर गणपति के मारे जाने के बाद नक्सलियों ने दोनों राज्यों की सीमा के बीच में उसका स्मारक भी तैयार किया. जिसे जवानों ने तोड़ दिया. जिसके अवशेष आज भी उसी स्थान पर पड़े हुए हैं. ग्रामीणों से जब हमने बात की तो उन्होंने दबी जुबान में इस बात को स्वीकार किया कि इस इलाके में ही पहली मुठभेड़ हुई थी. लेकिन एक ग्रामीण ने इससे जुड़ी बातें साझा की.

1984-1985 के आसपास इस इलाके में नक्सली महाराष्ट्र की ओर से तोडगट्टा के पास से छत्तीसगढ़ की सीमा में दाखिल हुए थे.उससे पहले नक्सलियों के बारे में नहीं सुना था.लेकिन जब गणपति मारा गया तो नक्सली के बारे में जानकारी जिनके साथ मुठभेड़ हुई थी. जवानों ने ही मारे गए नक्सली के स्मारक को ध्वस्त किया है- आरक्षक

रिटायर्ड पुलिस अधिकारी आरपी सिंह ने बताया कि उस घटना के वक्त पखांजूर थाना और बांदे चौकी हुआ करता था. ताड़वयली गांव बांदे चौकी के अंतर्गत आता था. यह घटना इनकी पोस्टिंग के पहले हुई थी. जो आज भी थाना के रिकार्ड में दर्ज है. इस इलाके में नक्सलियों से जुड़ी खबरें आए दिन आते रहती थी. उस दौरान आने-जाने के लिए सड़कें सहित अन्य सुविधाओं से गांव और आसपास का इलाका महरूम था.

पहले वहां बांदे पुलिस चौकी हुआ करती थी. साल 1984 में हमारी टीम को स्थानीय बंगाली युवक ने इनपुट दिया था.जिसके आधार पर हमने ऑपरेशन चलाया था.जिसमें नक्सली कमांडर गणपति की मौत हुई थी-आरपी सिंह, रिटायर्ड पुलिस अधिकारी


समय बदला, हालात बदले, थाना और कैम्प की स्थापना के बाद नक्सलियों की दहशत कम हुई. इलाके में विकास के काम होने शुरू हुए. गांव तक पहुंचने के लिए छत्तीसगढ़ की सीमा तक पक्की डामर की सड़क बन चुकी है. गांव में बिजली, पानी की सुविधा भी मिल रही है. विकास के कार्य हो रहे हैं. नक्सलवाद इस इलाके से पीछे नजर आ रहा है.एसपी की मानें तो अब ताड़वयली गांव के लोग नक्सलवाद का विरोध कर रहे हैं.

साल 2023 में ताड़वयली गांव के पास महाराष्ट्र सीमा पर नक्सली मूवमेंट की सूचना मिली थी.साल 2024 में भी नक्सली मूवमेंट हुआ था.लेकिन पुलिस और फोर्स की मदद से नक्सलियों का एनकाउंटर हुआ है. अब उस जगह पर शांति का माहौल है.सड़क और बिजली आ जाने से काफी बदलाव हुआ है.ग्रामीण नक्सलवाद का विरोध कर रहे हैं- इंदिरा कल्याण एलिसेला, पुलिस अधीक्षक कांकेर

आज भी नक्सली हैं सक्रिय : इस क्षेत्र के आसपास इलाके में नक्सली गतिविधियां आज भी है. आज भी आसपास के क्षेत्रों में जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हो रही है. नक्सली मारे जा रहे हैं. सरकार ने छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खात्मे की तारीख मार्च 2026 तय की है. बस्तर में लगातार एंटी नक्सल ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं. बस्तर संभाग में अब तक 207 नक्सली मारे गए हैं. उत्त्तर बस्तर की बात करें तो 40 नक्सली मुठभेड़ में मारे गए है. इनमें ताड़वयली क्षेत्र के 50 किमी क्षेत्र में बड़ी मुठभेड़ हुई हैं.

नक्सलवाद से मुक्त हो रहा बस्तर : ताड़वयली क्षेत्र के आस-पास के माड़ के जंगलों में नक्सलवाद ने अपनी जड़ें गहरी की थी. आज भी ताड़वयली क्षेत्र के महाराष्ट्र - छत्तीसगढ़ सीमा पर माड़ के जंगलों को नक्सली सुरक्षित ठिकाना मान रहे हैं.लेकिन ऐसा लगने लगा है कि यही नक्सलियों की बड़ी भूल है.जिसके कारण हापाटोला मुठभेड़ में 29 नक्सली और टेकामेटा में 5 बड़े नक्सली ढेर हो चुके हैं.ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार ने नक्सवाद मुक्त प्रदेश की जो समय सीमा तय की है,उससे कहीं पहले प्रदेश लाल आतंक से आजाद हो जाएगा.

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कांकेर : प्रकृति की गोद में बसा बस्तर पिछले कई दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. बस्तर अपने अंदर प्रकृति की सुंदरता को समेटे है,लेकिन बस्तर की सुंदरता में नक्सलवाद एक बदनुमा दाग की तरह है.आज भी बस्तर के कई इलाकों में नक्सलवाद के निशान दिखते हैं.ईटीवी भारत की टीम बस्तर में उस जगह पर पहुंची, जहां पर प्रदेश के इतिहास की पहली नक्सली मुठभेड़ हुई थी. भले ही पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से नक्सलवाद की शुरुआत हुई हो,लेकिन इससे सबसे ज्यादा नुकसान छत्तीसगढ़ को हुआ है. आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग के सभी जिले नक्सलवाद का आतंक बरसों से झेलते आ रहे हैं. इस दौरान बहुत से जवानों ने शहादत दी. कई बेगुनाह आदिवासियों के खून से बस्तर की धरती लाल हुई.

नक्सलियों ने बना ली थी राजधानी : बस्तर में नक्सलवाद की शुरुआत कहां से हुई ये जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम उत्तर बस्तर कांकेर जिले के अंतिम छोर पर बसे गांव ताड़वयली पहुंची. ये वो गांव है, जहां से महाराष्ट्र की सीमा शुरु होती है. कहा जाता है कि इसी इलाके से बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों ने प्रवेश किया था. 90 के दशक के आसपास इस इलाके में नक्सलियों के कदम पड़े. इसी इलाके से इनकी सक्रियता की खबरें निकलकर सामने आने लगी. घने जंगल और छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र की सीमा लगे होने के कारण नक्सली,अबूझमाड़ तक पहुंच कर इसे मजबूत किला बनाने लगे. जिसे नक्सलियों की राजधानी के नाम से भी जाना जाता है.

कांकेर के नक्सल प्रभावित इलाके की कहानी (ETV BHARAT)


पहले नक्सली एनकाउंटर का गवाह है गांव : नक्सली जंगलों में डेरा डालकर नक्सल घटनाओं को अंजाम देने लगे. पुलिस तक नक्सलियों की खबरें निकल कर सामने आने लगी. इस दौरान छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार नक्सली और पुलिस के बीच मुठभेड़ छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के अंतिम छोर पर बसे गांव ताड़वयली में हुई, जहां से महाराष्ट्र की सीमा शुरु होती है. यहीं नदी के पास नक्सली डेरा डालकर खाना पका रहे थे. पुख्ता इनपुट मिलने के बाद पुलिस के जवान पहुंचे और दोनों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई. जिसमें एक बड़ा नक्सली लीडर गणपति मारा गया. बाकी नक्सली मौके से भागने में कामयाब रहे. यह नक्सलियों के छत्तीसगढ़ के इलाके में प्रवेश करने के बाद पहली मुठभेड़ थी.

बड़ा नक्सली लीडर हुआ था ढेर : नक्सली लीडर गणपति के मारे जाने के बाद नक्सलियों ने दोनों राज्यों की सीमा के बीच में उसका स्मारक भी तैयार किया. जिसे जवानों ने तोड़ दिया. जिसके अवशेष आज भी उसी स्थान पर पड़े हुए हैं. ग्रामीणों से जब हमने बात की तो उन्होंने दबी जुबान में इस बात को स्वीकार किया कि इस इलाके में ही पहली मुठभेड़ हुई थी. लेकिन एक ग्रामीण ने इससे जुड़ी बातें साझा की.

1984-1985 के आसपास इस इलाके में नक्सली महाराष्ट्र की ओर से तोडगट्टा के पास से छत्तीसगढ़ की सीमा में दाखिल हुए थे.उससे पहले नक्सलियों के बारे में नहीं सुना था.लेकिन जब गणपति मारा गया तो नक्सली के बारे में जानकारी जिनके साथ मुठभेड़ हुई थी. जवानों ने ही मारे गए नक्सली के स्मारक को ध्वस्त किया है- आरक्षक

रिटायर्ड पुलिस अधिकारी आरपी सिंह ने बताया कि उस घटना के वक्त पखांजूर थाना और बांदे चौकी हुआ करता था. ताड़वयली गांव बांदे चौकी के अंतर्गत आता था. यह घटना इनकी पोस्टिंग के पहले हुई थी. जो आज भी थाना के रिकार्ड में दर्ज है. इस इलाके में नक्सलियों से जुड़ी खबरें आए दिन आते रहती थी. उस दौरान आने-जाने के लिए सड़कें सहित अन्य सुविधाओं से गांव और आसपास का इलाका महरूम था.

पहले वहां बांदे पुलिस चौकी हुआ करती थी. साल 1984 में हमारी टीम को स्थानीय बंगाली युवक ने इनपुट दिया था.जिसके आधार पर हमने ऑपरेशन चलाया था.जिसमें नक्सली कमांडर गणपति की मौत हुई थी-आरपी सिंह, रिटायर्ड पुलिस अधिकारी


समय बदला, हालात बदले, थाना और कैम्प की स्थापना के बाद नक्सलियों की दहशत कम हुई. इलाके में विकास के काम होने शुरू हुए. गांव तक पहुंचने के लिए छत्तीसगढ़ की सीमा तक पक्की डामर की सड़क बन चुकी है. गांव में बिजली, पानी की सुविधा भी मिल रही है. विकास के कार्य हो रहे हैं. नक्सलवाद इस इलाके से पीछे नजर आ रहा है.एसपी की मानें तो अब ताड़वयली गांव के लोग नक्सलवाद का विरोध कर रहे हैं.

साल 2023 में ताड़वयली गांव के पास महाराष्ट्र सीमा पर नक्सली मूवमेंट की सूचना मिली थी.साल 2024 में भी नक्सली मूवमेंट हुआ था.लेकिन पुलिस और फोर्स की मदद से नक्सलियों का एनकाउंटर हुआ है. अब उस जगह पर शांति का माहौल है.सड़क और बिजली आ जाने से काफी बदलाव हुआ है.ग्रामीण नक्सलवाद का विरोध कर रहे हैं- इंदिरा कल्याण एलिसेला, पुलिस अधीक्षक कांकेर

आज भी नक्सली हैं सक्रिय : इस क्षेत्र के आसपास इलाके में नक्सली गतिविधियां आज भी है. आज भी आसपास के क्षेत्रों में जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हो रही है. नक्सली मारे जा रहे हैं. सरकार ने छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खात्मे की तारीख मार्च 2026 तय की है. बस्तर में लगातार एंटी नक्सल ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं. बस्तर संभाग में अब तक 207 नक्सली मारे गए हैं. उत्त्तर बस्तर की बात करें तो 40 नक्सली मुठभेड़ में मारे गए है. इनमें ताड़वयली क्षेत्र के 50 किमी क्षेत्र में बड़ी मुठभेड़ हुई हैं.

नक्सलवाद से मुक्त हो रहा बस्तर : ताड़वयली क्षेत्र के आस-पास के माड़ के जंगलों में नक्सलवाद ने अपनी जड़ें गहरी की थी. आज भी ताड़वयली क्षेत्र के महाराष्ट्र - छत्तीसगढ़ सीमा पर माड़ के जंगलों को नक्सली सुरक्षित ठिकाना मान रहे हैं.लेकिन ऐसा लगने लगा है कि यही नक्सलियों की बड़ी भूल है.जिसके कारण हापाटोला मुठभेड़ में 29 नक्सली और टेकामेटा में 5 बड़े नक्सली ढेर हो चुके हैं.ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार ने नक्सवाद मुक्त प्रदेश की जो समय सीमा तय की है,उससे कहीं पहले प्रदेश लाल आतंक से आजाद हो जाएगा.

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Last Updated : Nov 27, 2024, 9:54 PM IST
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