पाइंता पर्वः दो कन्याओं के श्राप के बाद यहां लोग गागली के डंठल से करते हैं युद्ध, ये है परंपरा
उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां कोने-कोने में देवी-देवताओं का वास है. यहां पर विराजमान आस्था के केंद्र, संस्कृति, लोक पर्व और परंपराएं इस पावन धरा को अलग पहचान दिलाते हैं. इसी कड़ी में जौनसार बावर के पाइतां पर्व भी शामिल है, जो अपने आप में बेहद अनूठा होता है. यहां पर उदपाल्टा और कुरौली दो गांव के लोग कई सालों से गागली युद्ध की परंपरा निभा कर पाइतां पर्व मना रहे हैं. यह पर्व दो कन्याओं के श्राप के पश्चाताप में मनाया जाता है. मान्यता है कि पाइतां पर्व पर दोनों परिवार में एक ही दिन दो कन्याओं का जन्म होगा तो उसी दिन से सदियों से चली आ रही यह परंपरा भी समाप्त होगी.