उत्तरकाशी:उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध चार धाम यात्रा की शुरुआत हो चुकी है. मंगलवार को सुबह 11.30 पर गंगोत्री धाम के कपाट खुलने के बाद रोहिणी नक्षत्र में दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर यमुनोत्री धाम के कपाट भी पूरे विधि-विधान और विशेष पूजा-अर्चना के साथ खोले गए.
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बता दें कि मंगलवार सुबह मां यमुना की डोली को खरसाली गांव से यमुनोत्री धाम के लिए विदा किया गया था. इस भावुक क्षण में गांव की महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग आदि सभी लोग मां यमुना की डोली को गांव के अंतिम छोर तक विदाई देने पहुंचे थे. इसके बाद शनि देवता की अगुवाई में सभी श्रद्धालु मां यमुना की डोली को लेकर यमुनोत्री धाम पहुंचे, जहां विशेष पूजा अर्चना के बाद दोपहर 1:15 बजे के शुभ मुहूर्त में मंदिर के कपाट खोले गए. देवभूमि में यमुना नदी को मां के रूप में पूजा जाता है, जो चार धामों में से एक है. कपाट खुलने के साथ ही यहां भक्तों का तांता लग जाता है.
यमुनोत्री धाम की पौराणिक कथा
यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थान है. पुराणों के अनुसार, यमुना नदी सूर्य देव की पुत्री और मृत्यु के देवता यम की बहन मानी जाती हैं. यमुनोत्री धाम को सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है. पुराणों में जिसका विस्तार से वर्णन मिलता है. मान्यता है कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में सच्चे मन से स्नान करता है उसे यमत्रास (मृत्यु के भय) से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही यहां यम की पूजा का भी विधान है. कहा जाता है कि जो यमुना नदी में स्नान करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.
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यमुनोत्री धाम
यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल में हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.
यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने साल 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था.
यमुनोत्री मंदिर भूकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है.
इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया गया था.
यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है.
मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में मां यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजत है.
इस मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पूरे विधि विधान के साथ की जाती है.
यमुनोत्री धाम में पिंड दान का विशेष महत्व है.