उत्तरकाशीः डुंडा ब्लॉक के वल्या गांव में एक महिला को भालू ने हमला कर घायल कर (Woman Injured in Bear Attack) दिया. गंभीर रूप से घायल महिला को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है. जहां पर उसका इलाज चल रहा है. इस घटना के बाद ग्रामीण दहशत में है.
जानकारी के मुताबिक, उत्तरकाशी जिले के डुंडा ब्लॉक के वल्या गांव की गुजलेश्वरी पत्नी रामनारायण भट्ट रविवार को घास के लिए जंगल थी. तभी पहले से झाड़ियों में घात लगाए बैठे भालू ने उन पर हमला कर दिया. हमले में गुजलेश्वरी के पांव और पीठ पर चोटें आई हैं. गनीमत रही कि महिला के साथ अन्य लोग भी थे. उनके शोर मचाने पर भालू जंगल की तरफ भाग गया.
वहीं, ग्रामीणों ने आनन फानन में एंबुलेंस के जरिए जिला अस्पताल उत्तरकाशी में भर्ती कराया. जहां पर उसका इलाज किया जा रहा है. उधर, इस घटना के बाद ग्रामीणों खौफ में है. उन्होंने वन विभाग से भालू के आतंक (Bear Attack in Uttarakhand) से निजात दिलाने की मांग की है. वहीं, मामले में रेंज अधिकारी नागेंद्र रावत का कहना है कि उन्हें घटना की जानकारी मिली है. विभागीय राहत राशि के लिए कार्रवाई की जा रही है.
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सर्दियों में नींद भूले भालूःबता दें कि सर्दियों में भालू हाइबरनेश यानी शीतनिंद्रा (Bear Hibernation in Uttarakhand) में चले जाते हैं, लेकिन बीते कुछ दशकों से उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के भालुओं की नींद में खलल पड़ रहा है. इतना ही नहीं भालुओं ने अब अपने शीतनिंद्रा पर जाने के स्वभाव को भी बदल दिया है. पहाड़ों पर तो भालुओं का ये बदला हुआ व्यवहार बेहद खतरनाक हो गया है. भालू शीतकाल के दौरान भी लोगों पर हमला कर रहे हैं.
हैरानी की बात ये है कि भालुओं के हमले प्रदेश में किसी भी वन्यजीव के मुकाबले सबसे ज्यादा रिकॉर्ड हो रहे हैं. हिमालय में रहने वाले काले भालू सर्दियों में लंबे समय तक नींद में रहते हैं. यह एक तरह से अपनी ऊर्जा को बचाने के लिए ऐसा करते हैं. यही वजह है कि सर्दियों में लोग भालुओं की परवाह नहीं करते रहे हैं. वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक अब स्थिति बदली है.
शीतनिंद्रा छोड़ बस्तियों में आ रहे भालू:भालुओं को अब इंसानी बस्तियों में देखा जा रहा है. इसकी बड़ी वजह यहां आसानी से मिलने वाला भोजन है. चौंकाने वाली बात यह है कि अब भालू खेतों में तो पहुंच ही रहे हैं, साथ ही पालतू पशुओं को मारने के अलावा इंसान के द्वारा फेंके गए कूड़े या कूड़ेदान में खाना पानी की तलाश में पहुंच रहे हैं. यह सब केवल गर्मियों में या मॉनसून में ही नहीं, बल्कि सर्दियों के मौसम में भी दिखाई दे रहा है.
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भालुओं की शीत निंद्रा क्या है: हाइबरनेशन यानी शीत निंद्रा या सुप्तावस्था जीवन बचाने के लिए जरूरी है. कड़ाके की ठंड में कुछ जानवर, पक्षी और सरीसृप जमीन के नीचे या ऐसी जगह छिप जाते हैं, जहां ठंड से बचे रहते हैं. इस दौरान भालू के शरीर में मौजूद चर्बी उसे जिंदा रखती है. हाइबरनेशन के दौरान भालू के दिल की धड़कन भी हल्की हो जाती है और कोई काम न करने के कारण उसे अधिक ऊर्जा की जरूरत नहीं होती.
माना जाता है कि भालू करीब 3 महीनों तक इस समय बिना खाए रह सकता है. इसके बाद बर्फीला मौसम खत्म होने के बाद वो फिर सक्रिय हो जाता है और पहले की तरह गतिविधियों में जुट जाता है, लेकिन अब इसी हाइबरनेशन के समय को भालू व्यावहारिक रूप से बदलता जा रहा है और पूरे 12 महीने ही इंसानी बस्तियों के आसपास दिखाई दे रहा है. इस कारण उसके हमलों की संख्या भी बढ़ गई है.
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