उत्तरकाशी:नारी को शक्ति का प्रतीक यूं ही नहीं कहा जाता है. अगर वो कुछ ठान ले तो करके ही दिखाती है, ऐसी ही कुछ कहानी है 76 वर्षीय बसंती नेगी की. जिन्होंने 90 के दशक में हर्षिल घाटी में ऐसी क्रांति का ऐसा बिगुल फूंका. जिसका लोहा प्रदेश ही नहीं अपितु देश ने भी माना. दो बार ग्राम प्रधान रह चुकी बंसती नेगी को पूर्वराष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.
8 मार्च को हर सालअंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. महिलाओं के प्रति सम्मान, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस. अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर साल 1909 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको एक शख्सियत के रूबरू कराने जा रहा है, जिन्होंने पर्यावरण सरक्षंण की क्रांति के रूप में खुद को स्थापित किया.
पहाड़ में 90 के दशक में एक आम ग्रहणी ने हर्षिल घाटी में एक ऐसी क्रांति ने जन्म लिया, जिसका लोहा पूरे देश ने माना. दो बार पर्यटन ग्राम हर्षिल की प्रधान बन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हुईं.
जी हां, हम बात कर रहे हैं 76 वर्षीय हर्षिल की पूर्व प्रधान बसंती नेगी की, जिन्होंने 1995 में वन विभाग और सरकार के खिलाफ अवैध हरे देवदार के पेड़ों की कटान के खिलाफ महिलाओ के साथ मिलकर आंदोलन किया और 6 महीने तक जेल भी गईं. उनके द्वारा लगाई गई सच्चाई की आग जनपद में इस कदर फैली कि हर्षिल घाटी से लेकर मोरी ब्लॉक तक कई वन विभाग के अधिकारियों अवैध कटान के आरोप में निलंबित होना पड़ा. बसंती नेगी पेड़ों को बचाने के लिए अंधेरे में महिलाओं के साथ कमर में बांधने वाले पागड़े के सहारे खड़ी पहाड़ी पर चढ़ गई थीं.