उत्तरकाशीःएक समय था, जब पहाड़ों में भेड़ पालन से ऊन का व्यापार और उद्योग करने वाले लोगों का समाज में विशेष स्थान होता था. वहीं, अब नीति निर्धारकों की उदासीनता के कारण ऊन उद्योग अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है. इसके अलावा ये अब बस मात्र बुजुर्ग पीढ़ी तक सीमित रह गया है. बाजार के आभाव में युवा पीढ़ी अपने इस पुश्तैनी और समृद्ध विरासत से दूर हो रहे हैं.
लेकिन वहीं, इस सब के बीच वीरपुर (डुंडा) गांव में किन्नौरी समुदाय के दो भाई अपने पुश्तैनी ऊन उद्योग के सरक्षंण में जुटे हैं. वीरपुर गांव के युवक ने ग्राफिक डिजाइनर का काम छोड़ अपने छोटे भाई के साथ मिलकर 2019 में हथकरघा मशीन एवं चरखे की मदद से ऊन सहित कंडाली (बिच्छू घास) और लिनेन के कपड़े बनाना शुरू किया है. इसे स्थानीय भाषा में थान कहा जाता है.
जापान भेजा जाता है कपड़ा
कहा जाता है कि उत्तरकाशी जिले की जाड़ सहित भोटिया और किन्नौरी समुदाय का भेड़-बकरी पालन के साथ ऊन उद्योग प्रमुख व्यवसाय था. लेकिन अब धीरे-धीरे बाजार के आभाव में युवा पीढ़ी अपने इस पुश्तैनी धरोहर से दूर होते जा रहे हैं. इन सब के बीच वीरपुर (डुंडा) के किन्नौरी समुदाय के दो भाई मनोज कुमार नेगी और विनोद कुमार नेगी अपने पुश्तैनी ऊन उद्योग को पारंपरिक हथकरघा और चरखे के साथ आगे बढ़ाते हुए कपड़ा तैयार कर जापान भेज रहे हैं.
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