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उत्तरकाशीः सैन्य अभ्यास के लिए जमीन देने पर हर्षिल के ग्रामीणों को सता रहा हक-हकूक खोने का डर

उत्तरकाशी में सैन्य अभ्यास के लिए जमीन देने पर हर्षिल गांव के ग्रामीणों को अपने हकहकूक खोने का डर सता रहा है. ग्रामीण को डर है कि वह अपनी भूमि पर मकान तक नहीं बना पाएंगे. ग्रामीणों ने डीएम से मिलकर समस्याएं सामने रखी हैं.

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Published : Dec 2, 2022, 9:04 AM IST

Updated : Dec 2, 2022, 10:40 AM IST

उत्तरकाशी:हर्षिल घाटी में अपने हक-हकूक को बचाने को लेकर घाटी के ग्रामीण सक्रिय हो गए हैं. घाटी में आर्मी को सैन्य अभ्यास के लिए करीब 477 एकड़ वन भूमि देने की तैयारी चल रही है. इससे ग्रामीणों को आशंका है कि उनके हक-हकूक प्रभावित हो जाएंगे. ग्रामीण अपनी भूमि पर मकान तक नहीं बना पाएंगे. इन्हीं आशंकाओं को लेकर हर्षिल ग्रामीणों का प्रतिनिधिमंडल डीएम अभिषेक रुहेला से मुलाकात की. इसके बाद डीएम ने कहा कि 16 दिसंबर को ग्रामीण के साथ राजस्व विभाग और वन विभाग वार्ता करेंगे. ग्रामीणों की जो शिकायत है, उन्हें दूर किए जाएंगे.

उपला टकनौर जन कल्याण मंच (Upla Taknaur Jan Kalyan Manch) के बैनर तले हर्षिल घाटी के ग्रामीण और जनप्रतिनिधि ने जिलाधिकारी से मुलाकात की. ग्रामीणों ने कहा कि सीमांत गांव धराली, मुखवा, हर्षिल, बगोरी, झाला, सुक्की, जसपुर, पुराली गांवों में वन विभाग की भूमि है. जिसे सेना को स्थानांतरित किया जा रहा है. इसके लिए वन विभाग इन दिनों पेड़ों की गिनती कर रहा है. वन विभाग के अनुसार 2023 मार्च और अप्रैल तक पेड़ों की गिनती का कार्य पूरा हो जाना है.

ग्रामीणों ने कहा कि युद्ध अभ्यास के लिए सेना को भूमि देना का विरोध ग्रामीण नहीं कर रहे हैं. परंतु इससे ग्रामीणों के हक-हकूक प्रभावित हो रहे हैं. ग्रामीणों ने कहा कि जब टिहरी राज्य का विलय भारत में हुआ था तो उस समय यहां के ग्रामीणों को जंगलों पर हक-हकूक का अधिकार मिला था. यह अधिकार छीने जाने की आशंका है. साथ ही ग्रामीण अपनी भूमि पर भी मकान नहीं बना पाएंगे. इसके लिए भी सेना से अनुमति लेनी पड़ेगी. जंगलों में गाय व बकरी चुगान पर भी रोक टोक की आशंका है.
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ग्रामीणों की मांग है कि भविष्य में किसी तरह की परेशानी न हो, किसी तरह की अनुमति की आवश्यकता न हो. ग्रामीणों ने कहा कि सीमांत गांवों के ग्रामीण होने के कारण वह हमेशा सीमांत प्रहरी की तरह रहे हैं. नेलांग और जादूंग के ग्रामीणों ने देश रक्षा के लिए 1962 में अपने गांव छोड़े हैं. अभी तक इन ग्रामीणों को विस्थापित तक नहीं किया गया है और इन्हें मुआवजा भी नहीं मिला है.

Last Updated : Dec 2, 2022, 10:40 AM IST

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