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12वीं सदी में उत्तराखंड के इस गांव में हुई थी भगवान जगन्नाथ के मंदिर की स्थापना, ये है रोचक कथा - उत्तरकाशी न्यूज

जानकारों की मानें तो 12 वीं शताब्दी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर की स्थापना साल्ड में हुई थी और यहां पर भी भगवान जगन्नाथ को पुरी की तरह चावल का भोग लगाया जाता है. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

भगवान जगन्नाथ
भगवान जगन्नाथ

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Published : Jun 23, 2020, 8:24 PM IST

Updated : Jun 23, 2020, 9:08 PM IST

उत्तरकाशी: आज तक आपने भगवान जगन्नाथ के दर्शन जगन्नाथ पुरी में किये होंगे. लेकिन भगवान जगन्नाथ आज भी दक्षिण की पुरी की तरह ही उत्तरकाशी जनपद में हिमालय की वरुणाघाटी में विद्यमान हैं. भगवान जगन्नाथ को वरुणा घाटी के करीब 10 से 12 गांवों के आराध्य देव के रूप में पूजा जाता है. भगवान जगन्नाथ का मुख्य मंदिर घाटी के साल्ड गांव में है. वहीं, वरुणाघाटी के अन्य गांव में भी भगवान के मंदिर बने हुए हैं.

यहां पर भगवान जगन्नाथ की मूर्ति काले पत्थर के रूप में विराजमान है और जिस पर आज भी सात लकीरें लगी हुई है. इसके पीछे भी रोचक दंतकथा है. जानकारों की मानें तो 12 वीं शताब्दी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर की स्थापना साल्ड में हुई थी और यहां पर भी भगवान जगन्नाथ को पुरी की तरह चावल का भोग लगाया जाता है.

12वीं सदी में हुई थी जगन्नाथ मंदिर की स्थापना.
साल्ड गांव के निवासी और जगन्नाथ मंदिर पर शोध कर रहे शिक्षक बलवीर सिंह राणा ने बताया कि दंत कथाओं के अनुसार, साल्ड गांव के नौटियाल जाती के एक ब्राह्मण, जिनकी संतान नहीं हो रही थी, तो संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने जगन्नाथ पुरी की यात्रा की. जहां पर भगवान जगन्नाथ ने उन्हें दर्शन देते हुए कहा कि मैं तेरे घर मे जन्म लूंगा. लेकिन विधि के अनुसार मात्र 11 वर्ष तक ही तेरे पास रहूंगा. नौटियाल जाती के ब्राह्मण के घर में एक वर्ष बाद बालक ने जन्म लिया, जो 11 वर्ष का होते ही गेंद खेलते हुए जमीन में विलुप्त हो गया. उसके कई वर्षों बाद गांव के बीचों-बीच उस खेत मे एक किसान हल लगा रहा था, तभी जमीन से आवाज आई कि खेत के बीच में हल मत लगाओ.
12 वीं शताब्दी में हुई थी मंदिर की स्थापना.

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ऐसा माना जाता है कि किसान नहीं माना और सात बार वहीं पर हल लगा दिया. कुछ ही देर में उसने वहां पर आग भी लगाई. दंत कथाओं के अनुसार, किसान पर बैल सहित मधुमखियों ने हमला कर दिया और कुछ दिन बाद उसी खेत मे भगवान जगन्नाथ की सात लकीरों लगी और काले पत्थर की मूर्ति प्रकट हुई. जिसे बाद में मन्दिर में स्थापित किया गया. मन्दिर वाले स्थान का भी भगवान ने स्वयं ग्रामीणों को एहसास करवाया था.

बलवीर आगे बताते हैं कि उनको मिले दस्तावेजों में भगवान जगन्नाथ की पूजा बुधवार और रविवार को बताई गई है. साथ ही पूजा कर रहा ब्राह्मण ग्रामीणों के दिये गए चावलों का भोग ही भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है. साथ ही हर वर्ष बैशाख माह में जगन्नाथ मंदिर में थोलु और अप्रैल माह में होने वाली पंचकोशी यात्रा का भी यह मुख्य पड़ाव है.

Last Updated : Jun 23, 2020, 9:08 PM IST

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