उत्तरकाशीःयमुना घाटी में मंगसीर की बग्वाल (Mangsir Bagwal festival) को देवलांग पर्व के रूप में मनाया जाता है. घाटी के गैर गांव में देवलांग के रूप में मनाए जाने वाले त्योहार में हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. इस दौरान ग्रामीण राजा रघुनाथ मंदिर में पहुंचकर इस पर्व को धूमधाम के साथ मनाते हैं. इसे मनाने के पीछे भी कई मान्यताएं हैं. जो अपने आप में बेहद खास है.
यमुना घाटी के गैर गांव में देवलांग पर्व (Devlang festival in Uttarkashi) को मनाने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जुटती है. जो दीपावली के एक महीने बाद देवलांग पर्व के रूप में दिवाली यानी मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है. ग्रामीण रातभर राजा रघुनाथ मंदिर प्रांगण में पर्व (Raja Raghunath Temple) को मनाने के लिए बेसब्री से इंतजार करते हैं. उजाला होने से पहले एक देवदार के विशालकायी पेड़ को जंगल (देवलांग) से लाकर मंदिर में साठी और पन्साही दो समूह शक्ति बल दिखा कर खड़ा करते हैं.
उत्तरकाशी में देवलांग पर्व की धूम. ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड की संस्कृति का प्रतीक 'मंगसीर बग्वाल', उत्तरकाशी में तिब्बत विजय का है उत्सव इसके बाद विधि विधान, मन्नतों और बुराई में अच्छाई की जीत के साथ पेड़ को आग के हवाले किया जाता है. इसके जलते ही राख को प्रसाद और आशीर्वाद के रूप में घर लेकर जाते हैं. हालांकि, इस बार देव की लांग को उठाते हुए टूट कर गिर गई. जिसमें एक बच्चा समेत दो लोग सामान्य रूप से घायल भी हुए, लेकिन इसके बाद एक बार फिर जंगल से देवदार के लांग को लाया गया. देवलांग को दोबारा खड़ा कर पर्व को विधिवत मनाया गया.
क्या है मान्यताःसदियों से चली आ रही मान्यता के अनुसार जब श्री रामचंद्र जी लंका में विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे तो पूरे देशभर में जश्न यानी दीपावली का पर्व मनाया गया था, लेकिन यमुना घाटी में भगवान राम के पहुंचने का संदेश एक महीने बाद पहुंचा था. यही वजह है कि यहां के लोग दिवाली के ठीक एक महीने बाद देवलांग के रूप में बड़े धूमधाम से मनाते हैं. यमुना घाटी में मुख्य रूप से गैर, गंगटाड़ी और कुथनौर गांव में देवदार की लांग को खड़ा कर पर्व को मनाते हैं.