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सेब काश्तकारों को नहीं मिल रही दवाइयां, कीटनाशक तक सीमित है उद्यान विभाग

उत्तरकाशी जिले में सालाना 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. लेकिन जिले की हर्षिल घाटी के काश्तकारों को उद्यान विभाग सेब की दवाइयां समेत मधुमक्खियों के डिब्बे मुहैया नहीं करवा रहा है. इससे काश्तकारों को बाजार से महंगे दामों पर दवाइयां खरीदनी पड़ रही है.

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Published : Apr 13, 2021, 10:43 AM IST

Updated : Apr 13, 2021, 1:52 PM IST

उत्तरकाशीः हर्षिल घाटी सेब की उत्कृष्ट गुणवत्ता के लिए देश की मंडियों में अपना एक विशेष स्थान रखती है. सरकार सेब के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई बहुआयामी योजनाओं के दावे तो करती है, लेकिन धरातल पर योजनाएं सिफर साबित हो रही हैं. हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों का कहना है कि उद्यान विभाग की ओर से अभी तक उन्हें मधुमक्खी के डिब्बे समेत दवाइयां नहीं मिल पाई हैं तो वहीं, सेब के पेड़ों को पतझड़ से बचाने के लिए जो पावरफुल दवाइयां होती हैं वो भी विभाग के पास मौजूद नहीं हैं. इस कारण काश्तकारों को महंगे दामों पर यह दवाइयां खरीदनी पड़ती हैं. इसके लिए भी सरकार की ओर से आज तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं.

परेशान सेब काश्तकार.

हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों का कहना है कि उद्यान विभाग की ओर से जो दवाइयां सब्सिडी पर दी जाती हैं, वो मात्र कीटनाशक होती हैं. जबकि, डोडीन, कोविट, ओमाइट जैसी कारगर दवाइयां आज तक उद्यान विभाग और सरकार उपलब्ध नहीं करवा पाई है. जो कि सेब के पेड़ों को पतझड़ से बचाती हैं और साथ ही सेब के फल को तरोताजा रखती हैं. काश्तकारों को इन दवाइयों को बाजार से महंगे दामों पर खरीदना पड़ता है. वहीं, कई काश्तकार इन दवाइयों को नहीं खरीद पाते हैं तो उन्हें सेब उत्पादन में नुकसान उठाना पड़ता है. इन दवाइयों का प्रावधान अभी तक प्रदेश सरकार नहीं बना पाई है.

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सेब उत्पादन में मधुमक्खियों की अहम भूमिका

सेबों की अच्छी सेटिंग के लिए पराग कणों की अहम भूमिका रहती है. मधुमक्खियां सेब के फूलों पर परागण की क्रिया करती हैं. मधुमक्खियां एक फूल से दूसरे फूल पर बैठकर परागण को ट्रांसफर करती हैं. जिससे अलग-अलग वैरायटी के सेबों के बीच निषेचन की क्रिया होती है. जिससे सेब की सेटिंग अच्छी होती है. लेकिन इस बार हर्षिल घाटी में बर्फबारी होने से ठंड अभी भी बरकार है. लिहाजा, बगीचों में खिले फूलों की ओर मधुमक्खियां आकर्षित नहीं हो पा रही हैं. इतना ही नहीं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड होने के कारण सेब बगीचों में फूल ही नजर नहीं आ रहे हैं.

वहीं, ठंड से सेब के परागण की प्रक्रिया बुरी तरह से प्रभावित हो गई है. विभाग भी सेब काश्तकारों को मधुमक्खियों के डिब्बे तक मुहैया नहीं करा रहा है. उधर, आरोकोट बंगाण क्षेत्र के बागवान खुद ही निजी खर्चे पर मधुमक्खियों के डिब्बे मंगवाकर बगीचों में रख रहे हैं. ऐसे में सेब बागवानों को ये सौदा महंगा साबित हो रहा है.

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सेब काश्तकारों का कहना है कि इस साल भी अभी तक मधुमक्खी के डिब्बे भी काश्तकारों को नहीं मिल पाए हैं. साथ ही सब्सिडी वाली दवाइयां भी विभाग ने काश्तकारों को नहीं दी है. इस मामले में काश्तकारों ने ब्लॉक प्रमुख भटवाड़ी विनीता रावत से समस्या को अवगत करवाकर सरकार से कारगर दवाइयां उपलब्ध करवाने की मांग रखी है. जिला उद्यान अधिकारी डॉ. रजनीश का कहना है कि विभाग की दवाइयां हर्षिल घाटी में भेज दी गई हैं. साथ ही जिन कारगर दवाइयों की मांग काश्तकार कर रहे हैं, वह टेंडर प्रक्रिया में शामिल नहीं हैं. इसकी मांग पूरी करने के लिए निदेशालय को पत्र भेजा जा रहा है.

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उत्तरकाशी जिले में 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन

बता दें कि सेब उत्पादन के मामले में उत्तरकाशी जिला उत्तराखंड का सिरमौर बनता जा रहा है. उत्तरकाशी जिले में सालाना 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. इसमें से सबसे ज्यादा उत्पादन आराकोट बंगाण क्षेत्र में होता है. यहां पर 10 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है तो बाकी उत्पादन हर्षिल घाटी समेत पुरोला और नौगांव में होता है. उत्तरकाशी के सेब अपनी मिठास और साइज के लिए मंडियों में अलग पहचान रखते हैं.

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में सेब रोजगार का एक अहम जरिया है. यहां की भौगोलिक परिस्थितियां और अनुकूल माहौल के कारण पर्वतीय इलाकों में सेब की खेती काफी अच्छी है, लेकिन सरकार एक ओर बागवानी मिशन की बात करती है तो दूसरी ओर किसानों के लिए दवाइयां, खाद समेत अन्य सामान तक मुहैया नहीं करा पा रही है.

Last Updated : Apr 13, 2021, 1:52 PM IST

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