उत्तरकाशीः हर्षिल घाटी सेब की उत्कृष्ट गुणवत्ता के लिए देश की मंडियों में अपना एक विशेष स्थान रखती है. सरकार सेब के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई बहुआयामी योजनाओं के दावे तो करती है, लेकिन धरातल पर योजनाएं सिफर साबित हो रही हैं. हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों का कहना है कि उद्यान विभाग की ओर से अभी तक उन्हें मधुमक्खी के डिब्बे समेत दवाइयां नहीं मिल पाई हैं तो वहीं, सेब के पेड़ों को पतझड़ से बचाने के लिए जो पावरफुल दवाइयां होती हैं वो भी विभाग के पास मौजूद नहीं हैं. इस कारण काश्तकारों को महंगे दामों पर यह दवाइयां खरीदनी पड़ती हैं. इसके लिए भी सरकार की ओर से आज तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं.
हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों का कहना है कि उद्यान विभाग की ओर से जो दवाइयां सब्सिडी पर दी जाती हैं, वो मात्र कीटनाशक होती हैं. जबकि, डोडीन, कोविट, ओमाइट जैसी कारगर दवाइयां आज तक उद्यान विभाग और सरकार उपलब्ध नहीं करवा पाई है. जो कि सेब के पेड़ों को पतझड़ से बचाती हैं और साथ ही सेब के फल को तरोताजा रखती हैं. काश्तकारों को इन दवाइयों को बाजार से महंगे दामों पर खरीदना पड़ता है. वहीं, कई काश्तकार इन दवाइयों को नहीं खरीद पाते हैं तो उन्हें सेब उत्पादन में नुकसान उठाना पड़ता है. इन दवाइयों का प्रावधान अभी तक प्रदेश सरकार नहीं बना पाई है.
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सेब उत्पादन में मधुमक्खियों की अहम भूमिका
सेबों की अच्छी सेटिंग के लिए पराग कणों की अहम भूमिका रहती है. मधुमक्खियां सेब के फूलों पर परागण की क्रिया करती हैं. मधुमक्खियां एक फूल से दूसरे फूल पर बैठकर परागण को ट्रांसफर करती हैं. जिससे अलग-अलग वैरायटी के सेबों के बीच निषेचन की क्रिया होती है. जिससे सेब की सेटिंग अच्छी होती है. लेकिन इस बार हर्षिल घाटी में बर्फबारी होने से ठंड अभी भी बरकार है. लिहाजा, बगीचों में खिले फूलों की ओर मधुमक्खियां आकर्षित नहीं हो पा रही हैं. इतना ही नहीं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड होने के कारण सेब बगीचों में फूल ही नजर नहीं आ रहे हैं.
वहीं, ठंड से सेब के परागण की प्रक्रिया बुरी तरह से प्रभावित हो गई है. विभाग भी सेब काश्तकारों को मधुमक्खियों के डिब्बे तक मुहैया नहीं करा रहा है. उधर, आरोकोट बंगाण क्षेत्र के बागवान खुद ही निजी खर्चे पर मधुमक्खियों के डिब्बे मंगवाकर बगीचों में रख रहे हैं. ऐसे में सेब बागवानों को ये सौदा महंगा साबित हो रहा है.