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उत्तराखंड में इस जगह हुआ था गणेश का जन्म, ऋषिकेश के जंगल से लाया गया था हाथी का सिर

डोडीताल स्थित मां अन्नपूर्णा मंदिर के पुजारियों और केलाशु घाटी के ग्रामीणों की ओर से गंगोरी में अस्सी गंगा और भागीरथी नदी के संगम पर गणेश महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. आगामी 12 सितंबर को गंगोरी संगम में गणेश विसजर्न किया जाएगा.

अस्सी गंगा और भागीरथी नदी के संगम पर गणेश महोत्सव की धूम.

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Published : Sep 10, 2019, 6:16 PM IST

Updated : Sep 10, 2019, 11:52 PM IST

उत्तरकाशी: गंगोरी में अस्सी गंगा और भागीरथी नदी के संगम पर केलाशु घाटी के ग्रामीणों और डोडीताल स्थित मां अन्नपूर्णा मंदिर के पुजारियों की ओर से गणेश महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. जहां जनपद के विभिन्न स्थानों से ग्रामीण भगवान गणेश का आशीर्वाद लेने पहुंच रहे हैं. आराकोट आपदा के चलते इस महोत्सव को इस वर्ष केवल 4 ही दिन मनाया जाएगा. आगामी 12 सितंबर को गंगोरी स्थित संगम में गणेश विसजर्न किया जाएगा.

अस्सी गंगा और भागीरथी नदी के संगम पर गणेश महोत्सव की धूम.

अन्नपूर्णा मंदिर के पुजारी डॉ. राधेश्याम खण्डूड़ी ने बताया कि स्कंदपुराण और शिवपुराण में उल्लेख है कि उत्तरकाशी के केलशु घाटी में मां पार्वती अन्नपूर्णा के स्वरूप में निवास करती थी. वहीं मां अन्नपूर्णा डोडीताल अपनी सखियों के साथ सरोवर में हर दिन स्नान किया करती थी.

एक दिन भगवान शिव अचानक डोडीताल में प्रवेश कर गए. तब मां की सखियों ने डोडीताल के द्वार पर एक द्वारपाल रखने सुझाव दिया. तब मां अन्नपूर्णा ने अपनी दिव्यशक्ति से एक पुत्र उत्पन्न किया. जिनका नाम गणेश रखा गया. मां ने गणेश को डोडीताल के द्वार से किसी भी पुरुष को अंदर ना आने देने का आदेश दिया.

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वहीं एक दिन भगवान शिव डोडीताल के द्वार पर पहुंचे तो गणेश ने उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया. गुस्से में भगवान शिव ने गणेश का सिर काट दिया. जिस पर मां अन्नपूर्णा ने भगवान शिव से उनके पुत्र को जीवित करने के लिए कहा. जिसके बाद शिव के गण ऋषिकेश के जंगलों से एक हाथी के एक बच्चे का सिर लाए. जिसे गणेश के धड़ से जोड़ा गया और भगवान गणेश को गजानन नाम से जाना जाने लगा. तभी से केलशु क्षेत्र के लोग मां अन्नपूर्णा और गणेश की पूजा करते आ रहे हैं.

Last Updated : Sep 10, 2019, 11:52 PM IST

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