उत्तरकाशी: रवांई घाटी में डेढ़ दशक पहले शुरू हुई फूलों की खेती अब धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर है. डेढ़ दशक पहले रवांई घाटी के कुछ काश्तकारों ने प्रयोग के तौर पर फूलों की खेती शुरू की थी. अच्छे परिणाम आने पर काश्तकारों ने इसे व्यापार का रूप दे दिया, लेकिन बाजार नहीं मिलने के चलते अब घाटी के काश्तकार फूलों की खेती करना बंद कर रहे हैं.
हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर हार्क संस्था के सहयोग से 2009 में नैणी, पिसाउं, किममी, मटियाली, कृष्णा, उपराड़ी, धारी, देवलसारी, मुराड़ी तुनालका, सौली, बिगराड़ी और राजगढ़ी क्षेत्र के 297 काश्तकारों ने गुलदाउदी, 64 काश्तकारों ने लिलियम और 63 काश्तकारों ने गेंदे के फूलों की खेती करनी शुरू की थी लेकिन अब ये खेती गायब होने की स्थिति में है.
काश्तकारों ने बताया कि अन्य नकदी फसलों की अपेक्षा फूलों की खेती में मेहनत कम लगती है. फूलों की खेती पर ना तो बीमारी लगती है और ना ही खाद और दवा की जरूरत पड़ती है. उन्होंने टमाटर, फ्रेंचबीन, मटर आदि नकदी फसलों के साथ-साथ फूलों की खेती को अतिरिक्त आय के लिए विकल्प के तौर पर चुना था, लेकिन बाजार की उपलब्धता न होने से अब उन्होंने फूलों की खेती करने से हाथ खड़े कर दिए हैं.