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क्रिस्टल एडवेंचर ने गुप्तखाल पास पर लहराया तिरंगा, रूस के बाद फतह करने वाला बना दूसरा दल - उत्तरकाशी  न्यूज

19,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित गुप्तखाल पास पर क्रिस्टल एडवेंचर ने तिरंगा लहराते हुए शानदार सफलता हासिल की.पर्वतारोहियों के इस दल ने इस ट्रैक में 10 से 12 दिन की कैंपिंग की.

क्रिस्टल एडवेंचर

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Published : Jun 7, 2019, 12:46 PM IST

उत्तरकाशीः उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आज भी कई ऐसे बर्फीले पास हैं, जिनको पार करना नामुमकिन है. एक ऐसा ही पास जो कि चमोली जिले के घांघरिया से शुरू होता है और 19,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यह पास गढ़वाल हिमालय से सबसे दुर्गम पास में से एक है. वहीं क्रिस्टल एडवेंचर के दल ने गुप्तखाल पास ट्रैक को सफलतापूर्वक तिरंगा लहराया और इस पास को पार करने वाली दूसरी टीम बनी.

क्रिस्टल एडवेंचर के पांच सदस्यीय दल ने गुप्तखाल पास को फतेह किया.

गत 2 जून को उत्तरकाशी के क्रिस्टल एडवेंचर के गाइड विनोद पंवार के नेतृत्व में 5 सदस्यीय पर्वतारोही दल ने सुबह 7.30 पर इस पास पर तिरंगा लहराया और उसके बाद माणा होते हुए बदरीनाथ पहुंचे. पर्वतारोहियों के इस दल ने इस ट्रैक में 10 से 12 दिन की कैंपिंग की. इससे पूर्व इस ट्रैक को दिल्ली के आशुतोष मिश्रा की टीम ने एक्सप्लोर किया था और इस दल के विनोद पंवार गाइड रहे.

क्रिस्टल एडवेंचर के गाइड विनोद पंवार ने बताया कि इस वर्ष उनके पांच सदस्यीय दल जिसमें भूपेंद्र पुंडीर, सूरज कुमार, युधिष्ठिर जगाधीश, अनुदित काला, गौतम बालिगा ने जोशीमठ के घमसाली से अपना अभियान शुरू किया. 12 दिन के अभियान में उन्होंने रताबन, नीलगिरी, बांक कुंड आदि ग्लेशियरों को पार किया.

उन्होंने बताया कि सबसे मुश्किल तब था, जब गुप्तखाल को पार करने के अंत में 350 फीट ऊंची बर्फ की दीवार जो कि 80 डिग्री पर थी उसे रोप लगाकर पार किया गया. अंततः टीम ने 2 जून को सफलतापूर्वक गुप्तखाल पास पर तिरंगा लहराया और इस पास को पार करने वाली दूसरी टीम बनी.

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गाइड विनोद पंवार ने Etv bharat को बताया कि इससे पूर्व 2010 में आशुतोष मिश्रा की टीम ने गुप्तखाल ट्रैक को एक्सप्लोर किया था. जिसके टीम के गाइड भी स्वयं विनोद पंवार थे. पंवार ने बताया कि उसके बाद कई पर्वतारोही दलों ने गुप्तखाल पास को ट्रैक करने की कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो पाए.

गत वर्ष 2018 में दोबारा गाइड विनोद पंवार के नेतृत्व में एक दल ने गुप्तखाल पास को ट्रैक करने की कोशिश की लेकिन खराब मौसम के कारण उन्हें भी निराश लौटना पड़ा फिर इस वर्ष पांच सदस्यीय दल गुप्तखाल पास को ट्रैक करने के लिए निकला और सफलता हासिल की. पंवार ने बताया कि कहा जाता है कि करीब 1937 में एक रूसी दल ने भी इस पास को ट्रैक किया था लेकिन उनके कोई साक्ष्य नहीं है.

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