उत्तरकाशी: पहाड़ों में आजीविका का मुख्य साधन भेड़ पालन अब सिमट रहा है. इस वजह से ऊन का उत्पादन भी कम हो रहा है और इस ऊन के दम पर पनपने वाले कुटीर उद्योग जमीन पर टिक ही नहीं पा रहे हैं. हाल ये है कि एक समय में सबसे अधिक ऊन का उत्पादन करने वाले उत्तरकाशी में ही आठ गुना ऊन उत्पादन कम हो गया. ऊन का प्रयोग केवल दरियां और कालीन बनाने तक ही रह गया है.
कभी पहाड़ों में हर घर में बुजुर्ग के हाथ में तकली घूमा करती थी. इनके हाथों से तकली गायब हो गई है. उत्तराखंड के 6 जिलों में करीब 17 हजार परिवार ही भेड़पालन व्यवसाय से जुड़े हैं. चारे की समस्या और ऊन के सही दाम न मिलने की वजह से नई पीढ़ी पुश्तैनी व्यवसाय अपनाने में रुचि नहीं दिखा रही है. उत्तरकाशी जिले में अकेले 1200 मीट्रिक टन ऊन का उत्पादन होता था. जो महज 180 मीट्रिक टन पर सिमट कर रह गया है.
भेड़ और बकरी पालन से जुड़े लोगों का कहना है कि पशुपालन विभाग का ध्यान मात्र दुधारू पशुओं तक केंद्रित हो गया है और फाइलें दफ्तरों की चक्कर काटते-काटते कहीं गुम हो गईं हैं. उत्तरकाशी बगोरी गांव के नारायण सिंह का कहना है कि आज भेड़ का ऊन 40 रुपए प्रति किलो बाजार में मिल रहा है. जिसमें सिर्फ 15 रुपए ही भेड़ पालकों को मिलता है, जिसकी वजह से अब पहाड़ों में भेड़ और ऊन उद्योग दम तोड़ रहा है.