बाजपुरः जहां एक ओर किसान कर्ज के तले दबे हुए अपनी जीवन लीला कर रहे हैं तो वहीं, जिला प्रशासन की मनमानी से किसान आत्म हत्या करने पर मजबूर हैं. ऐसा ही एक मामला इन दिनों सुर्खियों में है. 20 गांवों के एक लाख लोगों को प्रभावित करने वाले लगभग 6 हजार एकड़ भूमि मामले ने किसानों की रातों की नींद हराम कर दी है, जिसने अब राजनीतिक रूप धारण कर लिया है. सत्तापक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप मढ़ते नजर आ रहें हैं. ऐसे में जिलाधिकारी के आदेश के बाद पूरे क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है.
बता दें कि उधम सिंह नगर में 5,838 एकड़ भूमि की खरीद-फरोख्त पर लगी रोक के बाद क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है, जिससे किसानों की रातों की नींद हराम हो गयी है. वहीं, इस पूरे प्रकरण के बाद अब नेता अपनी अपनी राजनीति की रोटियां सेंकते नजर आ रहे हैं. सत्ताधारी नेता जनता को पूरा भरोसा देते हुए किसी की भी भूमि को नहीं छीनने का आश्वासन दे रहें हैं, तो विपक्षी दल बीजेपी पर गंभीर आरोप लगा कर अपनी राजनीति चमका रहे हैं.
कांग्रेस पार्टी मुद्दे को भुनाने के प्रयास में लगी है. अब कांग्रेसियों के बड़े नेताओं ने बाजपुर में अपना डेरा डाल दिया है, जहां पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मोर्चा संभाल लिया है और आलाधिकारियों से आदेश वापस लेने की मांग कर रहें हैं. इस दौरान कांग्रेसियों ने स्थानीय विधायक और कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के इस मामले पर चुप्पी साधने को लेकर सवाल उठाये. सूबे के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने कहा है कि विपक्ष को राजनीति करनी चाहिए लेकिन गलत राजनीति नहीं. उनका कहना है कि किसी को उजड़ने नहीं दिया जाएगा.
आखिर क्या है पूरा मामला
बता दें कि सन 1920 में लाला खुशीराम पुत्र प्रभुदयाल ने ब्रिटिश सरकार से 4805 एकड़ ( तहसील बाजपुर के 12 गांव में ) लीज पर ली, जोकि 93 वर्ष के लिये अर्थात 2013 तक थी. इसका उद्देश्य जंगल खत्म कर कृषि योग्य जमीन बनाना था. यह लीज मुकदमेबाजी अधिनियम में दी गयी थी. लीज की शर्तो में यह भी प्रावधान थे. यह लीज कुछ अन्य लीजों से अलग थी. इसमें जमीन बेचने का एवं किराए पर देने का अधिकार प्राप्त था. 1961 की प्रथम सीलिंग आने से पहले सभी पट्टे दिए जा चुके थे. यह की 1966 में सरकारी ठेकेदार एक्ट सेक्शन 3 के अधीन लीज निर्धारित की गयी 1967 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस एक्ट को अल्ट्रा विर्स घोषित किया.