किच्छा:माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रोंदे मोय..एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौदूंगी तोय... कुम्हार को मिट्टी ने नहीं बल्कि आज सरकार की उपेक्षाओं ने रौंद दिया है, जिसके कारण कुम्हारों की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है, लेकिन उसके बाद भी शिल्प कला को बढ़ावा देने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करने वाली राज्य व केंद्र की सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही हैं, जिसके कारण कुम्हारों का व्यापार पूरी तरह से ठप हो चुका है.
'डिजिटल इंडिया' में कुम्हारों की जिंदगी 'अंधेरे' में, जी रहे अच्छे दिन की उम्मीद लगाए आज कुम्हारों की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि उनको दो वक्त की रोटी कमाने के लिए भी काफी परेशानी उठानी पड़ रही है. कुम्हारों की बदहाल स्थिति को देखकर उनके बच्चे भी इस काम को भविष्य में करने को तैयार नहीं है, क्योंकि मिट्टी के बर्तनों का कारोबार सिर्फ कुछ परिवारों तक ही सीमित रह गया है.
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देवभूमि में मार्च से ही गर्मी की शुरुआत होने से ऊधम सिंह नगर के कुम्हार काफी उत्साहित थे कि इस बार गर्मी में शायद मटकों की बिक्री पिछले वर्ष से अच्छी होगी, लेकिन इसके बाद भी मटकों की बिक्री ना होने से कुम्हारों में काफी निराशा है. कुम्हारों की मानें तो पिछले कुछ वर्ष में लोगों का मटकों से मोहभंग हो गया है, क्योंकि आज डिजिटल इंडिया का जमाना आ चुका है और लोग पानी को ठंडा करने के लिए नए-नए तकनीक के उपकरणों का प्रयोग कर रहे हैं.
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कुम्हार समाज की मानें तो अब मिट्टी के बर्तनों की ब्रिकी कुछ खास मौकों पर ही होती है. हालांकि, पिछले साल से लोग मिट्टी के बर्तन लेने में दिलचस्पी दिखा तो रहे है, लेकिन इतनी महंगाई में बर्तन को बनाने में काफी खर्चा आता है. जिसकी वजह से अब बर्तन दूसरे शहर से मंगाया जाता है. कुम्हारों का कहना है कि सुबह से शाम तक कभी पांच सौ तो कभी हजार रुपए मिल जाते हैं, लेकिन कभी खाली हाथ घर जाना पड़ता है. बावजूद अभी भी कुम्हारों को आस है कि उनके भी जल्द ही अच्छे दिन आएंगे.