रुद्रपुर: जंगलों में पाई जाने वाली मशरूम की गैनोडर्मा ल्यूसिडम प्रजाति अब कुमाऊं के किसानों की आय का साधन बनने जा रही है. वैज्ञानिक किसानों के साथ मिलकर कुमाऊं क्षेत्र में मशरूम की गैनोडर्मा ल्यूसिडम को कमर्शियल रूप से उगाने की तैयारी कर रहे हैं, जिससे किसानों की आय में बढ़ोत्तरी होगी.
मशरूम की गैनोडर्मा ल्यूसिडम प्रजाति पहाड़ में किसानों के लिए आय का एक नया साधन बन सकी है. इसका उत्पादन पर्वतीय किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है. कृषि विश्वविद्यालय के प्रसार निदेशालय और केवीके पिथौरागढ़ की ओर से क्षेत्रीय किसानों को गैनोडर्मा ल्यूसिडम के उत्पादन के गुर सिखाए जा रहे हैं.
इतना ही नहीं कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में हो रहे मशरूम की गैनोडर्मा ल्यूसिडम प्रजाति का उत्पादन को निजी कंपनियों तक पहुंचाने के लिए चेन भी तैयारी की जा रही है. मशरूम की गैनोडर्मा ल्यूसिडम प्रजाति का वैज्ञानिक ट्रायल भी कर चुके हैं. किसान मेले में इस मशरूम को प्रदर्शनी में रखा गया है.
किसानों को मालामाल करेगा औषधीय गुणों भरपूर गैनोडर्मा मशरूम कृषि विज्ञान केंद्र पिथौरागढ़ के विशेषज्ञ डॉ. अलंकार सिंह ने बताया कि मशरूम की गैनोडर्मा ल्यूसिडम प्रजाति के काफी औषधीय गुण हैं. यह जंगलों में प्राकृतिक रूप से लकड़ियों पर उगता है. इसका इस्तेमामल कैंसर, हार्ट, किडनी और त्वचा से संबंधित बीमारियों की दवा बनाने में किया जाता है.
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डॉ. अलंकार सिंह की मानें तो बाजार में मशरूम की गैनोडर्मा ल्यूसिडम प्रजाति की कीमत करीब 8 से 10 हजार रुपए प्रति किलोग्राम है. उन्होंने बताया कि निदेशालय की सह निदेशक डॉ. निर्मला भट्ट के निर्देशन में पिथौरागढ़ के क्षेत्रीय किसानों को मशरूम उत्पादन करवाया जा रहा है.जल्द ही कुमाऊं के अन्य किसानों के साथ मिलकर इस प्रजाति के मशरूम को उगाया जाएगा. डॉ.अलंकार सिंह ने बताया कि गैनोडर्मा ल्यूसिडम का प्रयोग ग्रीन टी के रूप में भी किया जा सकता है.
ऐसे तैयार की गई गैनोडर्मा ल्यूसिडम: वैज्ञानिकों की टीम ने बताया कि पॉपुलर की लकड़ी के छह इंच लंबे और तीन इंच व्यास के टुकड़ों को उपचारित करने के बाद लैब में लाकर उसमें बीज डालते हैं और एक हफ्ते में माइसिलिया (सफेद रंग की फंगस) विकसित होने के बाद मिट्टी और चूने के मिश्रण (एक किलो मिट्टी में दो ग्राम चूना) में डाल देते हैं. इसके बाद उचित तापमान वाली जगह में रखकर मशरूम पैदा किया जाता है. उन्होंने बताया कि बरसात का सीजन मशरूम के लिए सबसे उपयुक्त होता है. एक ठूंठ से छह से 10 ग्राम तक मशरूम मिलता है. इसका तीन महीने में दो बार उत्पादन किया जा सकता है.