काशीपुर: कोरोना काल के बाद से लगातार बढ़ती महंगाई से जहां आम जनमानस का जनजीवन प्रभावित हुआ है, वहीं ढोलक का व्यवसाय भी इससे अछूता नहीं है. ढोलक व्यापारियों की दिलचस्पी भी अब इस व्यापार में कम हुई है. चैती मेले में जहां पहले 22 से 25 ढोलक व्यापारी पहुंचते थे, वहीं इस बार उनकी संख्या घटकर 8 रह गई है.
दो साल बाद लगा चैती मेला: बता दें कि काशीपुर में कुमाऊं के सुप्रसिद्ध चैती मेले में पिछले काफी समय से ढोलक बाजार लगता चला आ रहा है. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु मेला घूमते आते थे. वहीं, उत्तर प्रदेश के जिला अमरोहा से ढोलक व्यवसाई भी यहां व्यापार करने पहुंचते थे. मेले में आने वाले श्रद्धालु मेले से ढोलक खरीदकर ले जाते थे. बीते 2 सालों से कोरोना संक्रमण की वजह से सभी धार्मिक आयोजन और अन्य कार्यक्रमों पर रोक लगी थी. जिसके चलते ढोलक का क्रेज कम हो गया. वहीं, बढ़ती महंगाई ने ढोलक व्यवसाय की भी कमर तोड़कर रख दी है.
ये भी पढ़ें:बिना मिट्टी के साग-सब्जी उगा रहे अल्मोड़ा के दिग्विजय, हाइड्रोपोनिक तकनीक का कमाल
दुकान की जगह हुई महंगी: चैती मेले में 22 साल से ढोलक व्यापारी शकील अहमद लगातार अमरोहा से आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि वह काफी समय से अपने बुजुर्गों के साथ इस मेले में आते रहे हैं. अब ठेकेदारों ने काफी महंगाई कर दी है. पहले ढोलक की दुकान लगाने के लिए जमीन 200 से 300 रुपये फीट मिलती थी. अब वही जमीन दोगुने और तिगुने रेट पर मिल रही है. इस बार दुकानदारी बिल्कुल कम है. मेले में इस बार ढोलक, मंजीरे, इकतारा, डमरू, बोंगो, बच्चों के चकला और बेलन सहित अन्य सामान बाजार में देखने को मिल रहा है, लेकिन महंगाई की वजह से खरीदार कम देखने को मिल रहे हैं. कोरोना के साथ ही महंगाई ने व्यापारियों की कमर तोड़ दी है.
ढोलक बनाने का सामान हुआ महंगा: ढोलक व्यापारी मो. गुफरान ने कहा कि उन्हें 20 साल से अधिक यहां आते हुए हो गए हैं. जगह अब काफी महंगी हो गयी है. पहले दुकान के लिए जगह 8 से 9 हजार रुपये में मिल जाती थी. अब उतनी जगह दोगुनी कीमत में मिल रही है. अच्छी क्वालिटी की जो ढोलक पहले 400 से 500 रुपये में मिल जाती थी, वही ढोलक 800 से 1000 रुपये में मिल रही है. ढोलक में लगने वाला लोहा पहले 100 रुपये किलो मिल जाता था. वह अब 140 रुपये किलो में आ रहा है. ढोलक में इस्तेमाल होने वाली बकरे की खाल पहले एक ढोलक के निर्माण में 30 रुपये की मिलती थी. अब 50 रुपये में मिलती है. कुल मिलाकर कहा जाए तो ढोलक में लगने वाले लोहे का रेट दोगुना हो गया है. ढोलक में लगने वाला लकड़ी और चमड़ा भी महंगा हो गया है.
ये भी पढ़ें:हाइड्रोपोनिक तकनीक से उगाई जाएंगी सब्जियां, वर्ल्ड बैंक करेगा सेंटर की स्थापना
ठेकेदारों की है चांदी: चैती मेले में ढोलक लेने वाले ग्राहकों ने कहा कि बच्चों की जो ढोलक पहले 50 से 60 रुपये में मिल जाती थी. वह इस बार दोगुने रेट में 120 रुपये से लेकर 150 रुपये तक मिल रही है. वहीं, बड़ी ढोलक की कीमतों में भी तिगुने रुपये का इजाफा हुआ है. जो ढोलक पहले 300 आए 400 रुपये तक मिल जाती थी, वह अब 1000 रुपये से लेकर 1200 रुपये तक में मिल रही है. बीते दो वर्षों से कोई कार्यक्रम नहीं होने से लोगों की दिलचस्पी भी कम हुई है. वहीं ठेकेदारों की मनमानी और प्रशासन की अनदेखी के चलते दुकानदारों के साथ-साथ ग्राहकों की जेबों पर भी डाका डाल रहा है और ठेकेदार चांदी काट रहे हैं. कुल मिलाकर कहा जाए तो अब ढोलक का शौक महंगाई के चलते दम तोड़ने लगा है.