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उत्तराखंड: CAB को लेकर बंगाली समुदाय में खुशी की लहर, कहा- अब हटेगा सिर पर लगा कलंक

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से उत्तराखंड में 3.50 लाख हिंदू बांग्लादेशी विस्थापित रहते हैं. इसमें करीब एक लाख 25 हजार अकेले उधम सिंह नगर में ही रहते हैं.

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Published : Dec 11, 2019, 9:00 PM IST

खटीमा: लोकसभा में मगंलवार को नागरिकता संशोधन बिल 2019 (Citizen Amendment Bill ) पास हो चुका है. इसके साथ ही उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में पूर्वी पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों में खुशी की लहर है. हिंदू शरणार्थियों को उम्मीद है कि बिल जल्द ही राज्यसभा से भी पास हो जाएगा और लंबे संघर्ष के बाद उन्हें नागरिकता मिल जाएगी.

बता दें कि उधम सिंह नगर जिले के शक्ति फार्म, सितारगंज और दिनेशपुर सहित पूरे जिले में लगभग एक लाख 25 हजार से अधिक बंगाली परिवार रहता है जो पूर्वी पाकिस्तान वर्तमान में बंग्लादेश से विस्थापित होकर यहां आए थे.

बंगाली समुदाय में खुशी की लहर

वहीं पूरे उत्तराखंड की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के हिसाब से राज्य में 3.50 लाख हिंदू बांग्लादेशी विस्थापित रहते हैं. इसमें करीब एक लाख 25 हजार अकेले उधम सिंह नगर में ही रहते हैं. पूर्व में यह मामला संसद में भी उठता रहा है. लेकिन अब लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल 2019 पास होने के बाद इन शरणार्थियों को उम्मीद जगी है कि अब उन्हें भी भारत की नागरिकता मिलेगी.

पढ़ें- CAB: हरिद्वार के हिंदू शरणार्थी परिवार ने जताई खुशी, रुंधे गले से कहा- अब मिलेगा सम्मानजनक जीवन

गौर हो कि देश के विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान से लाखों हिंदू भारत में शरण लेने को मजबूर हुए थे. पश्चिम बंगाल में शरणार्थियों को ठहराने की जगह नहीं बची तो उन्हें असम, उड़ीसा, त्रिपुरा, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और अंडमान व निकोबार सहित करीब 26 राज्यों में बसाया गया था.

साल 1951-52 में सबसे पहले तत्कालीन नैनीताल जिले वर्तमान में उधम सिंह नगर के दिनेशपुर में हिंदू बांग्लादेशियों को बसाया गया. इसके बाद रुद्रपुर, सितारगंज, शक्ति फार्म और गदरपुर में इन्हें जगह दी गई. साल 1971 में पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो बांग्लादेश में रहने वाली बंगाली मुस्लिम आबादी भी बड़ी सख्या में भारत आ गई. इन्हें अभी तक शरणार्थी का दर्जा दिया जाता रहा है. साल 1948-1952 के दौरान आए विस्थापितों को आठ एकड़ जमीन देकर बसाया गया था. वर्ष 1971 के बाद आने वाले बंगाली हिंदुओं को यह सुविधा नहीं दी गई. इन लोगों के दस्तावेज पर पूर्वी पाकिस्तान ही लिखा रहता था.

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