रुद्रपुरःउत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने बिना मिट्टी के स्टॉबेरी की फसल उगाने में सफलता हासिल की है. स्ट्रॉबेरी को पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाने वाली चीड़ के पत्तों और नारियल की छाल की मदद से उगाया जा रहा है.वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक से स्ट्राबेरी की खेती करने से तराई के साथ-साथ पहाड़ों के किसानों की आर्थिकी को बढ़ाया जा सकता है. अभी तक स्ट्रॉबेरी की खेती महाराष्ट्र और हिमाचल के किसान करते आये हैं. लेकिन पहली बार उत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने पन्तनगर के हल्दी क्षेत्र में हाड्रोपोनिक विधि से इस फसल को उगाने में सफलता हासिल की है.
यहां के कृषि वैज्ञानिकों ने कर दिखाया कमाल, बिना मिट्टी के उगा दी स्ट्रॉबेरी की फसल
क्या कभी आप बिना मिट्टी के खेती की कल्पना कर सकते हैं. अगर आपका जवाब ना है तो ये गलत है. पंतनगर के हल्दी क्षेत्र में कृषि वैज्ञानिकों ने ये कारनामा कर दिखाया है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ी जिलों में किसान सितम्बर से मार्च तक स्ट्रॉबेरी की खेती कर सकते हैं. साथ ही हाइड्रोपोनिक विधि से तैयार की गई स्ट्रॉबेरी की फसल के बाजार में भी अच्छे दाम मिलते हैं.
वहीं, चीड़ के पत्तों और कोकोनट की छाल में फसल उगने के पीछे वैज्ञानिकों का तर्क है कि कम पानी वाले क्षेत्रों में इस तकनीक को अपनाकर कॉमर्शियल खेती को बढ़ाया जा सकता है. ऐसे में पहाड़ी जिलों जहां पानी की कमी से किसान खेती छोड़ रहे हैं. वहां हाड्रोपोनिक तकनीक रामबाण साबित हो सकती है. इस विधि में पौध को सिर्फ नमी देने के लिए ही पानी के साथ पोषक तत्व मिलाकर दिए जाते हैं, ताकि अधिक से अधिक उत्पादन हो सके.
बहरहाल, उत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने हाड्रोपोनिक तकनीक से पहली बार स्ट्राबेरी की खेती कर दिखाई है. हालांकि, अभी इस तकनीक से कॉमर्शियल खेती नहीं की जा रही है. लेकिन भविष्य में हाड्रोपोनिक तकनीक अपनाकर किसान अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं.