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उत्तराखंड बजट पर AAP की प्रतिक्रिया, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर 'कंजूस' नजर आई त्रिवेंद्र सरकार - त्रिवेंद्र सरकार का बजट 2021

उत्तराखंड बजट पर आम आदमी पार्टी ने प्रतिक्रिया दी है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता का कहना है कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दों पर सरकार ने बहुत कम दरियादिली दिखाई.

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Published : Mar 6, 2021, 12:46 PM IST

काशीपुरः आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता मयंक शर्मा ने गैरसैंण सत्र के दौरान पेश बजट पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत पर हमला बोला है. उन्होंने इस बजट को महज चुनावी बजट बताते हुए कहा कि हर बार की तरह इस बार भी उतराखंड के लोगों को नाउम्मीदी ही हाथ लगी. उन्होंने मुख्यमंत्री का बजट भाषण सिर्फ अपनी पीठ थपथपाने तक ही सीमित बताया. इसके अलावा सीएम ने जोशीमठ आपदा में प्रशासनिक निकम्मेपन को भी आत्म प्रशंसा से ढकने की कोशिश की है.

प्रेस को जारी बयान में मयंक शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड सरकार ने शिक्षा के लिए कुल बजट का सिर्फ 16 प्रतिशत रखा. जबकि दिल्ली सरकार में शिक्षा के बढ़ावे के लिए कुल बजट का 24 प्रतिशत रखने का प्रावधान है. स्वास्थ के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा कुल बजट का 5 प्रतिशत बजट रखा गया. जबकि दिल्ली सरकार स्वास्थ्य पर कुल बजट का 13 प्रतिशत खर्च करती है. वहीं पिछले साल के बजट पर भी सवाल उठाते हुए मयंक शर्मा ने कहा कि अभी तक पिछले साल के बजट का उत्तराखंड सरकार महज 54 प्रतिशत ही खर्च कर पाई है.

ऐसे में 2021-22 का बजट सिर्फ भाषण तक ही सीमित दिखाई देता है. आप नेता ने कहा कि इन चार सालों में ऐसी कोई भी योजना सरकार परवान नहीं चढ़ पाई, लेकिन मुख्यमंत्री ने अपने पूरे बजट भाषण में उनका ही गुणगान किया है. जिन योजनाओं की पोल पूरे प्रदेश में आए दिन खुल रही है. कोरोना महामारी के बाद आए इस बजट से प्रदेश की जनता बड़ी उम्मीदें लगाए हुए थी, लेकिन जनता के हाथ एक बार फिर सिर्फ निराशा लगी है.

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उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी में प्रदेश के लाखों युवा बेरोजगार हुए हैं. पर्यटन, उद्योग समेत छोटे-बड़े उद्यमियों का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. ऐसे में सरकार से एक मरहम लगाने की उम्मीद इस बजट से थी, लेकिन इस बजट ने इस उम्मीद को ही तोड़ दिया है.

मयंक शर्मा ने कहा कि सरकार स्वरोजगार पर अपनी पीठ थपथपा रही है, पर आज भी प्रदेश में आठ लाख से ज्यादा युवा बेरोजगार हैं. आज भी उत्तराखंड की गर्भवती महिलाएं सड़क पर जच्चा-बच्चा सहित दम तोड़ने को मजबूर हैं. जो सरकार महिलाओं के सुरक्षित प्रसव की गारंटी नहीं दे पायी, उससे स्वास्थ्य पर क्या उम्मीद की जा सकती है? जबकि स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल हैं और त्रिवेंद्र सरकार सरकारी अस्पताल में सुविधा देने के बजाय इन अस्पतालों को प्राइवेट एजेंसियों को देने का काम कर रही है.

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