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टिहरी के युवाओं ने आत्मनिर्भरता से गांव को किया आबाद, बंजर खेत में उगाया 'सोना'

टिहरी के उदखंडा गांव के युवाओं ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का असाधारण उदाहरण पेश किया है. आज पूरा गांव पलायन को ठेंगा दिखाते हुए विकास के रास्ते पर बढ़ चला है.

Tehri garhwal News
बंजर खेत में उगाया 'सोना'

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Published : Oct 24, 2020, 8:13 PM IST

टिहरी: उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में दुर्गम पहाड़ों के बीच बसे उदखंडा गांव के युवाओं ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का असाधारण उदाहरण पेश किया है. दशकों से धीरे-धीरे उदखंडा गांव के लोग अपनी बंजर जमीन के कारण पलायन कर महानगरों में चले गए थे. आज वही परिवार वापस अपने गांव लौट रहे हैं. आज उदखंडा गांव की बंजर जमीन पर फसलों लहलहा रही हैं. इस पूरे गांव का संघर्ष और उनकी सफलताएं उत्तराखंड राज्य में एक मॉडल के तौर पर देखी जा रही है.

टिहरी का उदखंडा गांव.

ऐसे बदली तस्वीर

तीन साल पहले तक उदखंडा गांव के जमीन बंजर थे. जिनके पास उपजाऊ खेत भी थे, वे लोग कम आदमनी के कारण आजीविका चलाने में असमर्थ हो रहे थे. इस कारण गांव के लोग शहरों की तरफ पलायन करते गए और गांव के 130 परिवारों में महज 10 परिवार ही उदखंडा गांव में रह गए थे. लेकिन गांव में बचे 10 परिवारों ने सबको वापस बुलाने की ठानी.

साल 2017 में गांव के युवा विनोद कोठियाल ने एक मुहीम छेड़ी. उन्होंने अपने कुछ युवा साथियों के साथ आंदोलन किया और सबसे पहले गांव के लिए सड़क स्वीकृत कराई. साल 2018 तक उदखंडा गांव में सड़क भी पहुंच गई. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने विनोद कोठियाल को अपना प्रधान चुना.

गांव में खेती करते युवा.

इसके बाद गांव वालों ने दूसरे शहरों में बसे परिवारों से संपर्क कर उन्हें वापस लौटने के लिए समझाया. इस दौरान पूरे गांव ने पांच लाख का चंदा इकट्ठा कर 'हेंवल घाटी कृषि विकास स्वायत्त सहकारिता समूह' बनाया. सामूहिक खेती की योजना तैयार की गई, जिसमें बंजर जमीन को खेती के लिए फिर तैयार करना था. इसके बाद समूह ने पांच लाख रुपए से 30 क्विंटल अदरक और मटर के बीज खरीदे और उन्हें खेतों में बोया. इस दौरान समूह ने गांव के आठ परिवारों को बकरियां खरीद कर दी और उनके लिए फार्म भी बनाए गए. अदरक और मटर की पहली पैदावार समूह ने मंडियों में बेचा और 9 लाख का मुनाफा कमाया. जिसके बाद पूरे गांव के लोगों का जोश हाई है.

उदखंडा गांव का समूह

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ईटीवी भारत से बातचीत में विनोद बताते हैं कि लॉकडाउन में कई युवा बेरोजगार हुए तो उन्होंने गांव का रूख किया. इन युवाओं को पांच-पांच हजार की मासिक तनख्वाह पर गांव में ही सामूहिक खेती की रखवाली के लिए तैनात किया गया और इन लोगों के लिए गांव में ढाबा खोला गया. विनोद कोठियाल के मुताबिक महज दो सालों में गांव में विकास के पंख लग आए हैं. गांव के लोग अब ऊंची उड़ान भरने के लिए तैयार है. यह बदलाव देख महानगरों से 45 परिवार गांव लौट आए हैं.

हर कोई दे रहा अपना योगदान.

रिटायर होकर लौटे तो काम मिला

रिटायर्ड पुलिस अधिकारी ऋषिराम कोठियाल उन लोगों में हैं, जो बड़े पदों से रिटायर होकर गांव लौटे हैं. उन्हें सामूहिक खेती में देखरेख का काम मिला है. रिटायर्ड सिंचाई अधिकारी बीआर कोठियाल को भी जिम्मेदारी दी गई है. वहीं, रत्नमणि कोठियाल को गोट फॉर्मिंग का इंचार्ज बनाया गया है. इन सभी को 5 से 10 हजार सैलरी दी जाती है.

खेती करते उदखंडा गांव के लोग.

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गांव में लग रहा प्रोसेसिंग प्लाट

अपनी सफलत के बाद उदखंडा गांव के लोगों ने गांव के लोगों ने तय किया है कि वो बाजारों में कच्चा माल नहीं बेचेंगे. बाजार में उत्पाद प्रोसेसिंग के जरिए बेचा जायगा. मसलन अदरक का पाउडर, आचार, बकरी के दूध के प्रोडक्ट आदि अच्छे तरीके से बाजार में बेचा जाएगा. इसके लिए गांव में लाखों रुपए का एक प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जा रहा है. प्रधान विनोद कोठियाल बताते है कि इस प्लांट के लिए समिति ने बैंक में लोन के लिए आवेदन किया था, जो स्वीकृत हो गया है.

गांव की बंजर जमीन को बनाया सोना.

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