टिहरी: उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में दुर्गम पहाड़ों के बीच बसे उदखंडा गांव के युवाओं ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का असाधारण उदाहरण पेश किया है. दशकों से धीरे-धीरे उदखंडा गांव के लोग अपनी बंजर जमीन के कारण पलायन कर महानगरों में चले गए थे. आज वही परिवार वापस अपने गांव लौट रहे हैं. आज उदखंडा गांव की बंजर जमीन पर फसलों लहलहा रही हैं. इस पूरे गांव का संघर्ष और उनकी सफलताएं उत्तराखंड राज्य में एक मॉडल के तौर पर देखी जा रही है.
ऐसे बदली तस्वीर
तीन साल पहले तक उदखंडा गांव के जमीन बंजर थे. जिनके पास उपजाऊ खेत भी थे, वे लोग कम आदमनी के कारण आजीविका चलाने में असमर्थ हो रहे थे. इस कारण गांव के लोग शहरों की तरफ पलायन करते गए और गांव के 130 परिवारों में महज 10 परिवार ही उदखंडा गांव में रह गए थे. लेकिन गांव में बचे 10 परिवारों ने सबको वापस बुलाने की ठानी.
साल 2017 में गांव के युवा विनोद कोठियाल ने एक मुहीम छेड़ी. उन्होंने अपने कुछ युवा साथियों के साथ आंदोलन किया और सबसे पहले गांव के लिए सड़क स्वीकृत कराई. साल 2018 तक उदखंडा गांव में सड़क भी पहुंच गई. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने विनोद कोठियाल को अपना प्रधान चुना.
इसके बाद गांव वालों ने दूसरे शहरों में बसे परिवारों से संपर्क कर उन्हें वापस लौटने के लिए समझाया. इस दौरान पूरे गांव ने पांच लाख का चंदा इकट्ठा कर 'हेंवल घाटी कृषि विकास स्वायत्त सहकारिता समूह' बनाया. सामूहिक खेती की योजना तैयार की गई, जिसमें बंजर जमीन को खेती के लिए फिर तैयार करना था. इसके बाद समूह ने पांच लाख रुपए से 30 क्विंटल अदरक और मटर के बीज खरीदे और उन्हें खेतों में बोया. इस दौरान समूह ने गांव के आठ परिवारों को बकरियां खरीद कर दी और उनके लिए फार्म भी बनाए गए. अदरक और मटर की पहली पैदावार समूह ने मंडियों में बेचा और 9 लाख का मुनाफा कमाया. जिसके बाद पूरे गांव के लोगों का जोश हाई है.
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