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धूमधाम से हुआ टिहरी झील महोत्सव का समापन, 24 देशों के प्रतिनिधियों ने की शिरकत

तीन दिन चले टिहरी महोत्सव का बुधवार को समापन हुआ. इस दौरान पर्यटकों ने जमकर कार्यक्रम का आनंद उठाया. साहसिक खेल के प्रति पर्यटक काफी आकर्षित दिखे.

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Published : Feb 27, 2019, 9:02 PM IST

टिहरी झील महोत्सव का समापन

टिहरी: उत्तराखंड समेत सात राज्यों की सांस्कृतिक झांकियों के साथ शुरू हुए टिहरी झील महोत्सव का बुधवार को धूमधाम से समापन हुआ. महोत्सव के तीसरे और आखिरी दिन मनोरंजन और कला का अनोखा संगम देखने को मिला.

देश के सबसे ऊंचे टिहरी बांध की 42 वर्ग किमी में फैली विशालकाय झील को पर्यटन से जोड़ने के लिए साल 2009-10 में सरकार ने टिहरी झील महोत्सव की शुरुआत की थी. इसके बाद 2014 से फरवरी माह में हर साल झील महोत्सव का आयोजन किया जाता है. महोत्सव में साहसिक खेलों के साथ मनोरंजन, कला और अध्यात्म का संगम होता है. टिहरी लेक महोत्सव झील के किनारे कोटी कॉलोनी में मनाया जाता है.

धूमधाम से हुआ टिहरी झील महोत्सव का समापन, 24 देशों के प्रतिनिधियों ने की शिरकत

टिहरी लेक महोत्सव पुरानी टिहरी शहर की याद में मनाया जाता है, जो विशालकाय झील में समा चुका है. साल 2005 में टिहरी डैम बनने से पुरानी टिहरी झील में समा गयी थी. इसकी वजह से पूरी एक संस्कृति, धरोहर और सभ्यता समाप्त हो गई थी. इसी संस्कृति को जीवित रखने के लिए उत्तराखंड सरकार ने टिहरी लेक महोत्सव मनाती है. पुरानी टिहरी के लोग आज भी इसकी याद में गमगीन हो जाते हैं.

बता दें कि कार्यक्रम के उद्घाटन के दिन सीएम त्रिवेंद्र ने कहा था कि उनकी सरकार नयी टिहरी को पर्यटन के रूप में विकसित करना चाहती है. इस दिशा में टिहरी लेक महोत्सव बहुत अहम कदम है. मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि विदेशीयों को भी टिहरी की ओर आकर्षित करने की शुरुआत इस साल 2019 के महोत्सव से कर ली गई है. टिहरी झील एक अनमोल धरोहर है जिसमें उत्तराखंड के बच्चों का भविष्य नजर आता है. उन्होंने बताया कि पिछले 13 सालों से राज्य के लोग ही टिहरी झील महोत्सव में आते थे लेकिन इस बार 24 देशों के प्रतिनिधि इस झील महोत्सव में आये हैं. प्रदेश सरकार 13 जिले 13 डेस्टिनेशन के लिए भी कार्य कर रही है.

जानें पुरानी टिहरी के बारे में-

पुरानी टिहरी की स्थापना 28 दिसंबर 1815 में राजा सुदर्शन शाह द्वारा की गई थी. यह पुराना टिहरी शहर पहले त्रिहरी के नाम से प्रसिद्ध था, जो तीन नदियों (भागीरथी, भिलगना व घृत गंगा) के किनारे बसा था. इसका स्कन्द पुराण के केदारखण्ड में भी उल्लेख है. 54वें राजा सुदर्शनशाह को गोरखा आक्रमण के चलते राज्य गंवाना पड़ा. सुदर्शनशाह के पुत्र 55वें राजा सुदर्शनशाह ने अंग्रेजों की सहायता से गोरखों को परास्त कर दोबारा यहां अपना राज कायम किया था.

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