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विडम्बनाः स्वामी रामतीर्थ को भूले लोग, रखरखाव के अभाव में मूर्ति खस्ताहाल

टिहरी झील के किनारे कोटी कॉलोनी के पास स्थित स्वामी रामतीर्थ की विशाल मूर्ति रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गई है. जिसकी कोई सुध नहीं ली जा रही है.

swami rama tirtha
स्वामी रामतीर्थ

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Published : Nov 26, 2019, 7:07 PM IST

टिहरीः कहते हैं कि उगते सूरज को सब सलाम करते हैं. कुछ ऐसा ही महान संत स्वामी रामतीर्थ के साथ भी हो रहा है. जिन्होंने 118 साल पहले पुरानी टिहरी में भागीरथी और भिलंगना नदी का संगम के पास सिमलासू के तट पर जल समाधि ली. लेकिन महान संत स्वामी रामतीर्थ की एक मूर्ति पुरानी जो पहले टिहरी में स्थित थी और बांध बनने के बाद इस मूर्ति को 2005 में नई टिहरी की कोटी कॉलोनी में स्थापित किया गया, लेकिन रखरखाव के अभाव में अब ये मूर्ति बदहाल स्थिति में है. जिसकी कोई सुध नहीं ले रहा.

रखरखाव के अभाव में स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति खस्ताहाल.

वर्तमान समय में टिहरी झील के किनारे कोटी-कॉलोनी के पास स्थित महान संत स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. जिससे आज यह पुरानी टिहरी की धरोहर टूटने की कगार पर है. इतना ही नहीं मूर्ति कई जगहों से क्षतिग्रस्त हो गई है. वहीं, वरिष्ठ पत्रकार महिपाल नेगी ने बताया कि यह हमारे समाज के लिए दुर्भाग्य की बात है कि हम लोग महान संत स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति का संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं. स्वामी रामतीर्थ ने गंगा और हिमालय पर कई ग्रंथ लिखे थे. आज उनकी सुध नहीं ली जा रही है.

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उन्होंने पुर्नवास विभाग और जिला प्रशासन पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है. उन्होंने पुर्नवास के समय इस मूर्ति को किसी समिति को नहीं सौंपा. पुरानी टिहरी से पुर्नवास विभाग ने इसे कोटी कॉलोनी में स्थापित कर अपनी बला टाल दी. साथ ही कहा कि जिला प्रशासन और नगरपालिका को मूर्ति की मरम्मत कर संरक्षण करना चाहिए. जिससे जो पर्यटक टिहरी झील देखने आ रहे हैं. वे भी महान संत स्वामी रामतीर्थ की मूर्ति के बारे में जान सकें.

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वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता राकेश राणा ने कहा कि महान संत स्वामी रामतीर्थ, देश-दुनिया में प्रसिद्ध हैं. जिन्हें आज भी हमारे ध्वज वाहक के रूप में अपना आर्दश मानते हैं. मामले में नगरपालिका और पुर्नवास विभाग की लापरवाही है. जो इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. ऐसे में मूर्ति नगरपालिका क्षेत्र में आने से उन्हें जल्द मूर्ति ठीक करनी चाहिए.

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