टिहरी:जिले के चंबा मसूरी-मोटर मार्ग पर कद्दूखाल से डेढ़ किलोमीटर ऊपर करीब 3000 फुट की ऊंचाई सुरकुट पर्वत पर है मां सुरकंडा का मंदिर है. मां दुर्गा को समार्पित माता सुरकंडा का मंदिर 51 शक्ति पीठ में से एक है. इस मंदिर में काली माता की प्रतिमा स्थापित है. मान्यता है कि देवराज इंद्र ने यहां पर मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य हासिल किया था.
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पुराणों के अनुसार एक समय राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया. लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया. शिव के मना करने पर भी शिव की पत्नी व राजा दक्ष की पुत्री यज्ञ में चली गई. वहां उनका अपमान हुआ और वह यज्ञ कुंड में कूद गईं. जिसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर सती का शव उठाया और हिमालय की तरफ चल पड़े.
उसके बाद भगवान विष्णु के चक्र से सती का सिर कटकर यहां पर गिरा. तब से इस जगह का नाम सुरकंडा पड़ा. बाद में यह सिद्ध पीठ सुरकंडा के नाम से प्रसिद्ध हुई. दशहरे और नवरात्रि पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है. इन अवसरों पर मां के दर्शन करने से समस्त पाप मिट जाते हैं.
मंदिर तक कैसे पहुंचे ?
मां सुरकंडा मंदिर हर जगह से आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है. मंदिर के नीचे कद्दूखाल तक वाहनों से पहुंचना पड़ता है और उसके बाद करीब डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर मंदिर पहुंचते हैं, कद्दूखाल से मंदिर जाने के लिए घोड़े भी उपलब्ध हैं.
इसके साथ ही यहां आने वाले यात्री ऋषिकेश से चंबा और चंबा से कद्दूखाल तक वाहनों से पहुंचते हैं. इसके अलावा देहरादून से मसूरी होकर कद्दूखाल पहुंचा जा सकता है.
मां सिद्ध पीठ सुरकंडा का मंदिर वर्ष घर खुला रहता है. यहां कभी भी आ सकते हैं.
कैसा रहता है यहां का मौसम ?
यहां का मौसम हमेशा ठंडा ही रहता है, लेकिन दिसंबर, जनवरी और फरवरी माह में ठंड अधिक रहती है. मंदिर के पुजारी रमेश लिखवा का कहना है कि मां सुरकंडा के दर्शनों का विशेष महत्व है. मां सभी की मनोकामना पूरी करती हैं. नवरात्र और गंगा दशहरे के मौके पर मां के दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है.