टिहरी: हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. उत्तराखंड अपनी अलौकिक खूबसरती, प्राचीन मंदिर और संस्कृति के लिए विश्वविख्यात है. यहां की लोक कलाएं और लोक संगीत बरसों से भारत की प्राचीन कथाओं का बखान करती आ रही हैं. पांडव नृत्य उत्तराखंड की ऐसी ही एक परंपरा है. उत्तराखंड में पांडव नृत्य पूरे एक माह के लिए आयोजित होता है. गढ़वाल क्षेत्र में अलग अलग समय पर पांडव नृत्य का आयोजन होता रहता है. गांव वाले खाली समय में पांडव नृत्य के आयोजन के लिए बढ़ चढ़कर भागीदारी करते हैं.
उत्तराखंड के टिहरी स्थित कंडारस्यूं गांव में हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन बड़े धूमधाम से किया गया. जिसमें प्रवासी ग्रामीण भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. भारतीय जनता पार्टी के जिला उपाध्यक्ष व ग्रामीण अनिल चौहान ने बताया भगवान हुणेश्वर और नागराज की धरती पर हर तीसरे वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया इस कार्यक्रम का आयोजन सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्र की खुशहाली और अन्न धन्न की वृद्धि के लिए मनाया जाता है. इस नौ दिवसीय आयोजन के बाद ही क्षेत्र में धान की कटाई मंडाई का कार्यक्रम किया जाता है.