टिहरी: सोशल मीडिया किसी को भी अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर पहुंचाने का सबसे आसान जरिया बन गया है. चाहे वह विवादों में उपजा 'प्यारी पहाड़न' रेस्ट्रोरेंट को मिल रही ख्याति हो या फिर दिल्ली का 'बाबा का ढाबा' हो.
सोशल मीडिया पर जनता का मनपसंद कुछ भी वायरल बड़ी ही जल्दी हो जाता है. चाहे फिर उसमें आपका प्रेमभाव हो या फिर धर्म व आस्था का सवाल हो. ऐसा ही एक टिहरी का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है. वीडियो में मुस्लिम पहनावे में दिख रहे लोग पहाड़ की जागर शैली में नृत्य कर रहे हैं. यह नृत्य साधारण नहीं, बल्कि देवता अवतरण वाला नृत्य यानी मंडांण है.
जागर पर मुस्लिमों के नृत्य की सच्चाई सोशल मीडिया पर यह वीडियो सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने से संबंधित अफवाहों के साथ वायरल किया जा रहा है. हालांकि टिहरी पुलिस ने इस वायरल वीडियो पर बयान जारी किया है. टिहरी पुलिस ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि कुछ लोग वीडियो के बारे में गलत प्रचार कर रहे हैं. गलत प्रचार के साथ वीडियो वायरल करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.
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2017-18 का है वीडियोःवीडियो भरपूर गांव, प्रतापनगर, टिहरी गढ़वाल में आयोजित पीर बाबा के मंडांण का है. जिसमें नृत्य करने वाले सभी पश्वा हिंदू हैं. गांव के ही निवासी हिमांशु कलूड़ा नाम के युवक ने यह वीडियो 2017-18 में बनाई थी. हिमांशु ने 6 महीने पहले ही वीडियो अपने यूट्यूब चैनल में अपलोड की थी.
वीडियो की सच्चाईः वीडियो बनाने वाले हिमांशु कलूड़ा ने बताया है कि यह वीडियो 2017-18 में भरपूर गांव, टिहरी में बनाई गई थी. वीडियो में कोई भी शख्स मुस्लिम समाज से जुड़ा नहीं है. उन्होंने बताया कि 2017-18 में गांव में मंडांण का आयोजन किया गया था. वीडियो में नृत्य करते नजर आ रहे चारों लोगों पर मुस्लिम देवता आते हैं. हालांकि वह सभी लोग हिंदू हैं. हिमांशु ने साफ कहा कि गांव में कोई मुस्लिम परिवार नहीं रहता है और न ही यहां कन्वर्टेड मुस्लिम परिवार हैं. न ही हमारा गांव मुस्लिम धर्म को अपना रहा है और न ही मुस्लिम कल्चर को प्रमोट किया जा रहा है.
वीडियो किया डिलीटःसोशल मीडिया पर वीडियो गलत प्रचार के साथ वायरल होने पर हिमांशु कलूड़ा ने अब अपने यूट्यूब चैनल से वीडियो डिलीट कर दिया है. साथ ही एक वीडियो जारी कर वीडियो की सच्चाई बताई है. हिमांशु ने लोगों से अपील कि है कि गलत प्रचार के साथ वीडियो वायरल न करें.
गढ़वाल का मुसलमानों से संबंधः लोक साहित्यकार डॉ. वीरेन्द्र बर्त्वाल बताते हैं कि गढ़वाल से मुसलमानों का बहुत पुराना संबंध है. मुगलकाल में कुछ मुस्लिम उत्तराखंड आए थे. यहां उनकी मृत्यु हुई और वे हमारे देवताओं की तरह मानव देह पर अवतरित होने लगे. उन्हें अनिष्टकारी माना जाता है, लेकिन यह भी मान्यता है कि मनुष्यों पर प्रसन्न होने पर वे कल्याण भी करते हैं. उनके जागरों में अभी भी वही मुगल संबंधी शब्दों 'सलाम अलेकुम' का इस्तेमाल होता है.
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वीडियो के बारे में डॉ. वीरेन्द्र बर्त्वाल कहते हैं कि हो सकता है लोगों ने अपने भय को समाप्त करने के लिए यह प्रथा आरंभ की हो या यहां सदियों से रह रहे मुसलमानों ने हमारी देवता अवतरण की संस्कृति अपना ली हो.
डॉ. वीरेन्द्र बर्त्वाल कहते हैं कि वीडियो के मुताबिक पश्वाओं ने हाथ में कलावा, कड़ा, गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर तिलक लगाया हुआ है, जो सनातन के प्रतीक हैं. कोई कट्टर मुसलमान ऐसी चीजों को धारण नहीं कर पाएगा. माना जा सकता है कि यह परंपरा हिंदू-मुस्लिम की मिश्रित संस्कृति का हिस्सा है.
डॉ. वीरेन्द्र बर्त्वाल कहते हैं कि कि मुल्लादीन पीर का जागर भी गढ़वाल में प्रचलित है. यह एक प्रकार की प्रेम गाथा है. मुल्लादीन का प्रेमसंबंध अमोली गांव की लक्षिमा से था, जो उनकी मृत्यु का कारण भी बना. घड्याला पर उनका जागर गाया जाता है. गढ़वाल में मुस्लिम सदियों से रहते आ रहे हैं. उन्होंने यहां के अधिकांश रीति-रिवाज, भाषा, परंपराएं अंगीकार की हुई हैं.
पुलिस की चेतावनीःवहीं इस वीडियो के संबंध में टिहरी पुलिस ने चेतावनी जारी कर कहा कि कुछ लोग वीडियो के बारे में गलत प्रचार कर रहे हैं. सही तथ्य जानने के बाद ही इसे प्रसारित करें अन्यथा कड़ी कार्रवाई हो सकती है.