टिहरी:आजादी के बाद 1 अगस्त को 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय हो गया था. जिसके बाद 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में राज परिवार की राजमाता कमलेंदुमति शाह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में टिहरी से महिला सांसद चुनी गई. ईटीवी भारत आपको टिहरी लोकसभा सीट पर राज परिवार के दबदबे की पूरी कहानी बता रहा है. पढ़िए खास रिपोर्ट...
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टिहरी राजशाही के अंतिम राजा मानवेंद्र शाह थे. जो साल 1957 में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे. जिसके बाद 1962 से लेकर 1967 तक वे इस सीट पर काबिज रहे. जबकि, साल 1971 में कांग्रेस से टिकट से परिपूर्णानंद टिहरी लोकसभा सीट पर विजय हुए. 1980 से 1997तक त्रेपन सिंह नेगी इस सीट से सांसद रहे. जबकि,1984 से 1989 तक कांग्रेस उम्मीदवार ब्रह्मदत्त को इस सीट का प्रतिनिधित्व किया.
साल 1991 में मानवेंद्र शाह बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े और पहली बार टिहरी लोकसभा सीट में कमल खिला. मानवेंद्र शाह 1991 से 2004 तक इस सीट से सांसद रहे. साल 2007 में टिहरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा को जीत मिली. 2009 के चुनाव में विजय बहुगुणा इस सीट से सांसद रहे. वहीं, साल 2012 के उपचुनाव में इस सीट पर माला राज्य लक्ष्मी शाह ने बीजेपी को जीत दिलाई और 2014 के चुनाव में यहां कमल खिलाया.
लोकसभा चुनाव में राजशाही का रहा दबदबा
टिहरी रियासत के राजा मानवेंद्र शाह ने टिहरी लोकसभा सीट पर 9 बार कांग्रेस और 7 बार बीजेपी के टिकट से जीत हासिल की थी. जिससे पता चलता है कि इस सीट पर राज परिवार से जुड़े लोगों का ही दबदबा रहा है. वहीं, स्वर्गीय मानवेंद्र शाह के नाम सबसे ज्यादा 8 बार टिहरी लोकसभा सीट पर सांसद रहने का रिकॉर्ड है.
बहरहाल, टिहरी लोकसभा सीट पर निवर्तमान सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह सामने भी इस बार जीत की हैट्रिक लगाने की चुनौती है. आजादी के बाद अब तक इस सीट पर लोकसभा के लिए दो उपचुनाव सहित 18 बार चुनाव हुए है. जिसमें 9 बार कांग्रेस तो 7 बार बीजेपी को जीत हासिल हुई है. जबकि, इस सीट से एक बार निर्दलीय को तो एक बार अन्य दल का का नेता सांसद रहा है. ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में माला राज्य लक्ष्मी शाह बीजेपी के टिकट से एक बार चुनाव मैदान में है. अब देखना है कि टिहरी की जनता राज परिवार पर कितना विश्वास जताती है.