उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

नई तकनीक के 'चक्की' में पिस गई घराट, विलुप्त होने के कगार पर 'विरासत'

राज्य बनने के बाद घराटों के सरंक्षण के लिए बनी उत्तराखंड विकास समिति सिर्फ कागजों तक सिमटकर रह गई.

घराट
घराट

By

Published : Feb 9, 2020, 5:49 PM IST

Updated : Feb 9, 2020, 7:48 PM IST

टिहरीः सदियों से पहाड़ी इलाकों में पनचक्की से चलने वाले घराट के आटे को भूल चुके हैं. अब घराट संस्कृति अपने संरक्षण के आखिरी सांसे गिन रही है. उत्तराखंड के पहाड़ी व दूरस्थ क्षेत्रों में घराट संस्कृति अपने अंतिम क्षणों में है, क्योंकि भौतिकतावाद के कारण यह अब विलुप्ति के कगार पर है. गेहूं पीसने के सैकड़ों घराट अब उजड़ चुके हैं और जो बचे हैं उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है. घराटों का घरों से उजड़ने का सबसे बड़ा कारण आधुनिक दौर और बेतहाशा बिजली परियोजना है. उत्तराखंड के टिहरी जिले में प्रताप नगर, घनसाली इत्यादि दूरस्थ इलाकों में हमारे बुजुर्ग इन घराट से गेहूं पीसकर जीवनयापन करते थे.

नई तकनीक के 'चक्की' में पिस गई घराट

लेकिन, नई पीढ़ी को इसमें बिल्कुल भी रुचि नहीं है. इन घराटों को बिजली परियोजना में बदलने की कई बार मांग उठी, निजी स्तर पर कुछ प्रयास भी हुए. लेकिन इस पर कोई भी पहल आगे नहीं बढ़ पाई. अब यह घराट देखने भर के लिए ही रह गए हैं. घराट को चलाने के लिए न तो जनरेटर की जरूरत पड़ती है, न बिजली की न टनल की न डीपीआर की और न ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होता है. ये एक ऐसी मशीन है जो सिर्फ पानी से चलती है. लोगों को स्वावलंबी बनाती थी. घराट का पहाड़ी लोगों से गहरा संबंध था. घराट का पहाड़ी लोक जीवन और परंपराओं से भी गहरा जुड़ाव है. घराट वास्तव में अनाज पिसाई की पुरानी चक्की ही है जो सिर्फ पानी से चलती है. पानी का बहाव जितना तेज होगा, चक्की उतनी ही तेज घूमेगी.

पढ़ेंःअंग्रेजों के जमाने का पारंपरिक घराट आज भी कर रहा काम, कभी इसके इर्द गिर्द घूमता था पहाड़ का जीवन

घराट में ऐसे पिसता है अनाज
घराट बाहर से दिखने में कोई झोपड़ीनुमा ही लगता है. इसकी दीवारें मिट्टी व पत्थर की होती हैं. इसकी छत पत्थरों या टिन से बनी होती हैं. अंदर पांच फीट गहरा गड्ढा बनाया जाता है, जिसके ऊपर की तली में पत्थर का एक गोल पत्थर स्थापित किया जाता है. इसकी तली स्थिर होती है, पर नीचे लगी पुली पानी के बहाव से घूमती है. पानी का गति घटाने व बढ़ाने के लिए गुल पर मुंगेर का इस्तेमाल किया जाता है. पानी घाट के निचले हिस्से में लगी पुली पर डाला जाता है. ऊंचाई से पानी गिरने पर घराट घूमने लगती है.

पढ़ेंः कवायद: पारंपरिक घराटों में जान फूंकेगी त्रिवेंद्र सरकार

पुली के घूमने से घराट के भीतर स्थित अनाज पीसने वाला गोल पत्थर भी घूमने लगता है. बट के ऊपर गोलुआ तिकोने आकार का बांस व लकड़ी से बना डिब्बा लगा रहता है. इसे स्थानीय भाषा में ओन्ली कहा जाता है. इस डिब्बे में पीसने वाला अनाज डाला जाता है. ओन्ली के नीचे एक छोटा सा लकड़ी का डंडा लगा रहता है, जो बार-बार बट को छूता रहता है. आज गांवों में बिजली व डीजल से चलने वाली चक्की स्थापित हो गई है. जिससे इन घराटों के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है.

उत्तरकाशी और टिहरी जिले की सीमा पर स्थित कोडार गांव के राम सिंह आज भी घराट चलाते हैं. उनका कहना है कि वो घराट का प्रयोग करते हैं. इसी से अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं. आज भी उनके गांव के लोग घराट से गेहूं पिसवाने उनके पास आते हैं. कुछ लोग बदले में पैसे दे जाते हैं तो कुछ लोग आटा. उनका मानना है कि इससे पिसा हुआ आटा ज्यादा पौष्टिक और स्वादिष्ठ होता है. उत्तराखंड सरकार ने राज्य बनने के दो वर्ष बाद घराट के नवीनीकरण के लिए उत्तरा विकास समिति का गठन तो जरूर किया लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी ये समिति सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर रह गई.

Last Updated : Feb 9, 2020, 7:48 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details