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कभी टिहरी के राजा भी थे इस जंगल के मुरीद, कायदे और कानून आज भी हैं यहां की पहचान - oak tree forest in tehri

टिहरी के बमराड़ी गांव में 150 साल पुराने बांज के जंगल आज भी लहलहा रहा हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी पनपाये बांज के जंगल का ग्रामीण आज भी संरक्षण कर रहे हैं.

आज भी लहलहा रहे बांज के जंगल.

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Published : Sep 12, 2019, 8:08 PM IST

टिहरी: जनपद के थौलधार विकासखण्ड के बमराड़ी गांव में 150 साल पुराने बांज (ओक) के जंगल आज भी लहलहा रहा है. जो कि क्षेत्र में अपनी मिसाल कायम किए हुए है. पीढ़ी दर पीढ़ी पनपाये बांज के जंगल का ग्रामीण न केवल संरक्षण कर रहे हैं. बल्कि उनके प्रयासों से आज तक इस जंगल में आग नहीं लगी है. यहीं कारण है कि बांज का ये जंगल आज भी ग्रामीणों की जरूरतों को पूरा कर रहा है.

आज भी लहलहा रहे बांज के जंगल.

ऋषिकेश-गंगोत्री हाइवे से लगभग 12 किमी दूरी पर स्थित बमराड़ी गांव के ग्रामीण बताते हैं कि आज भी वे अपने बुजुर्गों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन कर रहे हैं. जिस कारण आज भी ये जंगल हरा-भरा है. ग्रामीण बताते हैं कि इस जंगल के बीच पंगल्थ में पानी का एक प्राकृतिक स्रोत है. जोकि यहां के राजा को काफी पसंद था. राजशाही के जमाने में राजा जब भल्डियाना होकर इस क्षेत्र में घूमने आते थे तो वे इसी स्रोत से पानी पिया करते थे. इस स्रोत के पानी और इस जंगल के राजा मुरीद थे. आज भी ग्रामीण इस स्रोत के पानी पर काफी निर्भर हैं.

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जंगल के लिए बनाए हैं सख्त कानून
ग्रामीणों का कहना है कि बुजुर्गों द्वारा बनाए गए नियमों के तहत चारा-पत्तियों के लिए इस जंगल को आज भी कुछ ही समय के लिए खोला जाता है. जिसके लिए गांव में बनाई गई समिति के अनुसार कुछ कायदे-कानून तय किए गए हैं. चारा पत्ती के लिए जंगल में गया कोई भी ग्रामीण पेड़ों की टहनी नहीं ला सकता. पकड़े जाने पर उसे तय कायदों के अनुसार दण्डित करने का भी प्रावधान है.

वहीं, एक दूसरे ग्रामीण का कहना है कि आज सरकार विभिन्न एनजीओ के माध्यम से जंगलों को बचाने की बात करती है. जिसपर भारी भरकम पैसा भी खर्च किया जा रहा है. लेकिन हमारे बुजुर्गों द्वारा बनाए गए कानून की मदद से इस धरोहर को आज भी हमारे गांव के लोग संजोकर रख पाने में सक्षम हैं.

गांव में नहीं हुआ पानी का संकट
ग्रामीण शम्भू प्रसाद का कहना है कि सूखा पड़ने के बाबजूद गांव में पानी का संकट नहीं होता. जंगल के नियम और कायदे के अनुसार किसी भी पेड़ के सूखने पर दूसरा पेड़ आरोपित किया जाता है. कुछ समय पहले जंगल में कुछ अन्य पेड़ भी लगाए गए थे. जिनमें काफल, बुरांस आदि मुख्य रूप से लगाए गए थे.

आग और सफाई का रखते हैं खास ख्याल
ग्रामीणों ने कहा कि जंगल में समय-समय पर सफाई अभियान चलाया जाता है. जिससे जंगल की सतह पर मशरूम व कपास के पौधे भी भारी मात्रा में दिखाई देते हैं. साथ ही कहा कि आस-पास फैले चीड़ के जंगल में आग लगने पर ग्रामीणों द्वारा मानव श्रृखंला बनाकर जंगल की रक्षा की जाती है.

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