टिहरी:देवभूमि उत्तराखंड में नदियों की बात करें तो यहां नदियों को रिश्तों की डोर से बांधकर देखा जाता है. जिनकी लोककथा काफी रोचक हैं जिसे सुनकर हर कोई इनका दीदार करने के लिए लालायित रहता है. जहां मां गंगा के साथ ही अन्य सहायक नदियों का अपना विशेष महत्व है. इन्हीं में से एक अलकनंदा और भागीरथी नदी भी हैं, जिनकी रोचक कथा लोगों के मन में रची-बसी है.
गढ़वाल क्षेत्र में बहने वाली भागीरथी और अलकनंदा नदी को सांस-बहू भी कहा जाता है.भागीरथी के कोलाहल भरे आगमन और अलकनंदा के शांत रूप को देखकर ही इन्हें सास-बहू की संज्ञा दी जाती है. वहीं भागीरथी और अलकनंदा नदी देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है. भागीरथी नदी के रौद्र रूप को देखकर उसे सास और अलकनंदा के शांत स्वरूप के कारण उसे बहू कहा जाता है इससे यह सीख देने की कोशिश की गई है कि यदि बहू सर्वगुण संपन्न है तो बहू सास से मां जैसा वात्सल्य व्यवहार पा सकती है.
वहीं भागीरथी नदी की कोलाहल तेज आवाज के साथ आकर अलकनंदा के शांत स्वरूप में विलय हो जाता है और साथ ही कहा गया है कि बहू चाहे तो सास को अपने शांत स्वरूप से अपने मन में जगह बना सकती है जैसा कि देवप्रयाग में भागीरथी अलकनंदा में मिलकर शांत हो जाती है. मान्यता है कि जहां दो नदियों का संगम होता हैं वह स्थान हमेशा आध्यात्मिक उर्जा से भरपूर होता है. इसलिए इस स्थान का महत्व भी बढ़ जात है.