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समय के साथ बदलता गया चुनाव, Etv Bharat से टिहरी के बुजुर्गों ने बयां किया दर्द - टिहरी न्यूज

नागरिक मंच के बुजुर्गों का कहना है कि आज के चुनाव में हर तरह का छल-दल-बल व धन का उपयोग किया जा रहा है. ईटीवी भारत ने लोकसभा चुनाव को लेकर टिहरी की जनता से उनकी राय जानी. जनता ने चुनाव से जुड़े अनेक यादगार अनुभव साझा किए.

टिहरी की जनता से राय मांगी

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Published : Mar 31, 2019, 6:46 PM IST

टिहरीः एक समय था जब आपसी भाई चारे को नेता और कार्यकर्ता समझते थे और चुनाव तक ही द्वंदता रहती थी. उसके बाद एक रहते थे, लेकिन आज के चुनाव में पार्टियों के समर्थक कई वर्षों तक आपस में बात नहीं करते हैं व द्वेष भावना रखते हैं. आज एक-एक वोट के लिए पार्टी के कार्यकर्ता मरने मारने तक उतारू हो जाते हैं. आज के चुनाव में हर तरह का छल-दल-बल व धन का उपयोग किया जा रहा है. ईटीवी भारत ने लोकसभा चुनाव को लेकर टिहरी की जनता से उनकी राय जानी. जनता ने चुनाव से जुड़े अनेक यादगार अनुभव साझा किए. खासकर बुजुर्गों ने.

बुजुर्गों ने कहा कि पुराने समय के चुनाव और अब के चुनाव में बहुत अंतर आ गया है. आज के चुनाव में नैतिकता खत्म हो गई है. एक समय था जब इंद्रमणि बडोनी, जिन्हें उत्तराखंड का गांधी कहा जाता था और ब्रह्मदत्त टिहरी लोकसभा चुनाव के लिए चुनाव लड़े, उस दौरान पूरा जनसैलाब इंद्रमणि बडोनी की तरफ था और रात तक इंद्रमणि बडोनी आगे चल रहे थे और जब सुबह परिणाम आया तो ब्रह्मदत्त जीत गए.

नागरिक मंच के बुजुर्गों ने चुनावों से जुड़े अनेक अनुभव ई टीवी भारत से साझा किए


इसको लेकर समर्थकों ने इंद्रमणि बडोनी से कहा कि हम लोग हार नहीं सकते हैं कुछ गड़बड़ है इसलिए कोर्ट जाना चाहिए तो इंद्रमणि बडोनी ने अपने समर्थकों को समझाते हुए कहा कि चुनाव में एक की जीत और एक की हार होती है, इसलिए ऐसा नहीं करूंगा.

वहीं, नागरिक मंच के बुजुर्गों का कहना है कि जब से हम मतदान करते आए हैं तब से लेकर आज तक की लोकसभा सीट का नामांकन से लेकर परिणाम तक कार्य टिहरी में ही किया जाता था, लेकिन इस बार की लोकसभा सीट का नामांकन देहरादून में किया जा गया है जो अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है. जब लोकसभा सीट का नाम टिहरी है तो फिर देहरादून में नामांकन करने का कोई औचित्य नहीं है.

सबसे बड़ा अंतर तो यही देखने को मिला जब लोकसभा टिहरी का नामांकन टिहरी में होता था तो अब देहरादून में क्यों नामांकन किया जा रहा है और अगर देहरादून में ही नामांकन हो रहा है तो फिर इस लोकसभा सीट का नाम देहरादून रखा जाता.
स्थानीय लोगों के अनुसार सब नेता मैदानों की तरफ भागने में लगे हैं और टिहरी लोकसभा को सुन्नता पर लाने का काम कर रहे हैं. वे नाम ही मिटाना चाह रहे हैं, जो कि दुखद है. बुजुर्गों का कहना है कि आज का नेता पहाड़ में काम करना ही नहीं चाहता है. सभी नीचे की तरफ जाना चाहते हैं, जिस कारण पहाड़ से पलायन हो रहा है और पहाड़ों में विकास रुका हुआ है. सभी नेताओं का नीचे की तरफ चले जाने के कारण पहाड़ों की तरफ उनका रुझान नहीं है.


नई टिहरी में रह रहे बुजुर्गों ने कहा कि आज के दलों के नेता चुनाव के समय गांव में आते हैं और चुनाव जीतने के बाद वह पांच साल तक धन्यवाद देने तक नहीं आते, जबकि पहले के चुनाव में जो भी उम्मीदवार जीतने वाला हो या हारने वाला वह चुनाव खत्म होने के बाद सबको धन्यवाद देने जरूर आते थे. जिससे आपसी भाई चारा बना रहता था.

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पुराने चुनाव में लोगों का आपस में इतना प्रेम रहता था कि हारने वाले उम्मीदवार ओर जीतने वाला उम्मीदवार चुनाव के बाद एक साथ आते जाते और खाना रहना होता था, लेकिन आज के चुनाव में यह देखने को नहीं मिलता है.

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