उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति का प्रतीक है भैलो धनोल्टी:दीपावली के मौके पर पहाड़ों में भैलो का बड़ा ही क्रेज होता है. भैलो खेलने के लिए गांव से बाहर नौकरी, रोजगार के लिए गये लोग बड़ी संख्या में गांव पहुंचते हैं. भैलो उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति का प्रतीक है. भैलो खेलने के लिए ग्रामीण गांवों के पास खेतों में जमा होते हैं. जहां सभी जमकर भैलो खेलते हैं. इस दौरान वाद्य यंत्रों की थाप पर सामूहिक पारम्परिक लोक नृत्य भी किया जाता है.
ऐसे बनाया जाता है भैलो:भैलो चीड़ की लकड़ियों को चीरकर बनाया जाता है. भैलो बनाने के लिए लकड़ियों को लम्बाई में चीरा जाता है. इसके बाद घास की बेलनुमा रस्सी के एक सिरे पर बांधा जाता है. दीपावली के दिन सबसे पहले भैलो की पूजा अर्चना की जाती है. इसके बाद उसका तिलक किया जाता है. भैलो की पूजा के बाद घर आये मेहमानों, आगन्तुकों के साथ भोजन किया जाता है. उसके बाद सभी ग्रामीण वाद्य यंत्रों के साथ गांव में जाकर भैलो खेलते हैं.
पढे़ं-पहाड़ों में भैलो खेलकर मनाई जाती है दीपावली, 11वें दिन होती है इगास बग्वाल
पहाड़ी क्षेत्रों में भैलो का क्रेज: पहाड़ी क्षेत्रों में कार्तिक दीपावली बड़ी धूमधाम से मनाई गई. मैदानी क्षेत्रों में दीपावली में पटाखों का क्रेज दिखा. वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में भी अलग ही अंदाज से दीपावली मनाई गई. पहाड़ी क्षेत्रों में दीपावली को लेकर युवाओं और महिलाओं में विशेष उत्सुकता देखने को मिली. पहाड़ों पर दीपावली से पहले घर की सफाई, लिपाई, पुताई की गई. इसके बाद घरों को सजाया गया. दीपावली के दिन लोगों ने स्थानीय दाल के पकोड़े, गहत से भरी पूड़ी बनाई. इसके बाद घरों में पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की गई. इसके बाद सभी ने एक दूसरों के घरों में जाकर पकवानों का आदान-प्रदान किया.
पढे़ं-उत्तराखंड में बिखरी पहाड़ की परंपरा और संस्कृति की छटा, जगह-जगह खेला गया भैलो